तपस्वी सिध्दार्थ से तथागत सम्यक संबोधि
जब से मानव सभ्यता शुरू हुई है, तब से अब तक मानव ने जीवन के हर क्षेत्र में बहुत उन्नति की है. जिससे अनेक मुश्किलें आसान हुई है. और लोगों की भौतिक सुख सुविधाओं में वृध्दि हुई है. परन्तु इस चहुंमुखी विकास के बावजूद हमारे मन के मौलिक स्वभाव में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ. सब जगह राग द्वेष है जो एक दूसरे से टकराहट का कारण बनती है.गौतम बुद्ध की शिक्षाओं का मूल उद्देश्य इसी राग और द्वेष की समस्या का निराकरण करके टकराहट को समाप्त करना है . भारतवर्ष सदैव बुध्दों की पुण्य भूमि रहा है .यहाँ अनेक बुध्दों का प्रादुर्भाव हुआ हैlसिद्दार्थ गौतम बुद्ध अट्ठाइसवें बुध्द थे. गौतम ने गलत बहुमत के आगे झुकने के बजाय पवज्या का जीवन व्यतीत करने का निर्णय लिया. और अपनी जिज्ञासा पूरी करने के लिए घर छोड़ दिया.लौकिक सुख अपार संपदा वैभव का त्याग कर सन्यास लेने वाले सिध्दार्थ इतिहास में अभूतपूर्व इंसान है. जो राजा से फकीर बन कर सम्यक संबोध बने. उनकी संपूर्ण शक्ति सत्य की खोज पर केंद्रित थी.राज गृह त्याग कर गौतम ने हाथ में भिक्षा पात्र लेकर गली-गली घर घर द्वार द्वार भिक्षा मांगी.लोग उन्हें भिक्षामुनी कहकर पु