रंगहीन से रंगीन टीवी का बदलता दौर और स्क्रीन

अंग्रेजी के टेलीविजन शब्द का ओरिजिन ग्रीक शब्द टैली और लैटिन शब्द विजन से मिलकर हुआ है टैली का अर्थ है दूरी पर  (फॉर ऑफ) विजन  का अर्थ है देखना अर्थात जो दूर की चीजों का दर्शन कराएं वह टेलीविज़न  जिसके जरिए दूर घटित घटनाओं को घर बैठे देख पाना ही टीवी का कमाल है..टेलीविज़न से हम घर के कोने में बैठकर दुनिया के किसी भी कोने में घटी घटना का प्रत्यक्षदर्शी बन जाते है। ये संचार का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम है जिसका आविष्कार 26 जनवरी 1926 को स्कॉटलैंड के जॉन लोगी बेयर्ड ने किया । टेलीविज़न शब्द का सर्वप्रथम उपयोग रशियन साइंटिस्ट कांस्टेंटिन परस्कायल  ने किया ...टेलीविज़न से विश्व पर पड़ने वाले प्रभाव और उसके बढ़ते योगदान से होने वाले परिवर्तन को ध्यान में रखकर ..17 दिसम्बर 1996 को  सयुक्त राष्ट्र सभा ने 21 नवम्बर को  वर्ल्ड टेलीविज़न डे  के रूप मनाने  की घोषणा की ...वैसे तो   अमेरिका में 1941से टीवी प्रारंभ हुई  जो ब्लैक एंड व्हाइट थी...इसके एक दशक बाद 1953 में संयुक्त राज्य अमेरिका में  सबसे पहले कलर टेलीविजन की शुरुआत हुई  जबकि भारत में पहली बार टीवी की शुरुआत  15 सितंबर 1959 को हुई ..इस  ब्लैक एंड व्हाइट स्क्रीन वाली टीवी का प्रारंभ में उपयोग स्कूली शिक्षा एवं ग्रामीणों के विकास को ध्यान में रखकर किया गया ...आरंभ में इसका नाम टेलीविज़न इंडिया रखा गया ।1975 में टेलीविजन इंडिया का नाम बदलकर दूरदर्शन कर दिया गया जो इतना लोकप्रिय हुआ कि  टीवी का हिंदी पर्याय बन गया ...11 जुलाई 1962 से  सेटेलाइट प्रसारण की शुरुआत हुई जिससे अमेरिका और यूरोप के बीच  लाइव कार्यक्रम का आदान प्रदान हुआ... 15 अगस्त 1965 को दूरदर्शन से सर्वप्रथम समाचार बुलेटिन की शुरुआत हुई .. अगस्त 1975 में भारत में सेटेलाइट की सहायता से 2400 गांवो में सेवा आरंभ की....  15 अगस्त 1982 को भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कर कमलों से कलर टेलीविजन की शुरुआत हुई ... भारत में दूरदर्शन के विकास के साथ-साथ धारावाहिकों के प्रकाशन ,उनकी प्रस्तुतीकरण में काफी  तेजी आई ..ब्लैक एंड व्हाइट टीवी से कलर टेलीविजन ..केबिल टेलीविजन से सेटेलाइट ब्रॉडकास्टिंग  से लेखकों के विकास में अभूतपूर्व योगदान हुआ... इससे लेखकों को पर्याप्त मौके मिले और उनकी एक नई जमात उभरकर सामने आई  सेटेलाइट प्रसारण से लेखकों के लिए अपार संभावनाओं के नए द्वार खुल गए ... कई प्रोग्राम  एक निश्चित दिन ,निश्चित समय, निश्चित शीर्षक के अंतर्गत प्रसारित होने लगे ... बाजारों में ना बिकने वाली अनेकों पटकथा लिखने लगी ...जो दर्शकों को टीवी देखने के लिए उत्साहित माहौल से अपनी ओर खींच लाती ..दीवारों की खिड़की से चिल्लाते हुए चेहरों को देखने के लिए घरों के चौपट में अनेकों सिर  इकट्ठे हो जाते थे...समय के साथ साथ  तकनीकी परिवर्तन से मोटी भारी भरकम टीवी  हल्की पतली  होती चली गई और स्क्रीन बढ़ती चली गई ...एलईडी, एलसीडी, प्लाज्मा  टीवी  के ही रूप है ... आज के दौर में समाचारों  को देखने सुनने के साथ-साथ पढ़ भी सकते है ।घर बैठे दर्शक खबरों के जरिए सारे संसार .सारे समाज से समस्त घटनाओं से अपने आप को जुड़ा हुआ महसूस करता है दूरदर्शन के दौड़ते भागते बनते बिगड़ते चित्र प्रभावित  प्रेरित करते हुए ...मन मस्तिष्क पर  छाप छोड़ जाते है

लेखक
आनंद जोनवार

Comments

Popular posts from this blog

हर गुलामी और साम्प्रदायिकता से आजादी चाहते: माखनलाल

ब्रिटिश भारत में लोकतंत्र के जन्मदाता, मॉडर्न इंडिया के सबसे महान शूद्र महात्मा फुले-डॉ आंबेडकर