व्यक्तिगत भावना से ऊपर उठकर सामूहिक और राष्ट्रीय भावना का नेता मोदी
एक कतार कातर कमजोर कुपोषित सा दिखने वाला, जिसे लोग महात्मा मान बैठे ,जिसकी परछाई के पीछे एक टाइम में समय समाज और राजनीति चली ।उनके इशारों पर इन तीनों का दौर चलता था ।वहीं दौर उन्हें आज अप्रांसगिक तथा अनुपयोगी मान रहा है।जिसे राजनीति के चलते अपने अपने तरीके से आज उपयोगी मान कर वर्चस्व बढ़ाने और वोट पाने के लिए इस्तेमाल कर रहे है।उस महान देवत्त्व समान व्यक्ति के अंतिम दिनों में उसके अपने लोग समाज साथ छोड़ गए उन्हें अनसुना कर रहे थे।।जीवन के अंतिम पड़ाव में वे अकेले तन्हाई के साथ बैठे रहे क्योंकि वह उस समय की तत्कालीन राजनीति से कदमताल करने को तैयार नहीं थे ।इस ग्रेट मैन ने जब जीवन की सांसें धड़ल्ले से चल रही थी तब कहा था, मैं कुछ दिनों का मेहमान हूं ,कुछ दिनों बाद मैं यहाँ से चला जाऊँगा ।पीछे आप याद किया करोगे कि बूढ़ा जो कहता था वह सही बात है ।इस लाचार बेचार वेवश ने यह बात अपने समाज समय सत्ता असमझदारों से कही ।यह व्यक्ति और कोई नहीं महात्मा गांधी थे । आप सोच रहे होंगे उस समय की बात आज क्यों कि जा रही है।क्योंकि जिस प्रकार गांधी को उनके अपने चाहने वालो ने धोखा दिया ठीक उसी प्रकार दिल्ली चुन