व्यक्तिगत भावना से ऊपर उठकर सामूहिक और राष्ट्रीय भावना का नेता मोदी
एक कतार कातर कमजोर कुपोषित सा दिखने वाला, जिसे लोग महात्मा मान बैठे ,जिसकी परछाई के पीछे एक टाइम में समय समाज और राजनीति चली ।उनके इशारों पर इन तीनों का दौर चलता था ।वहीं दौर उन्हें आज अप्रांसगिक तथा अनुपयोगी मान रहा है।जिसे राजनीति के चलते अपने अपने तरीके से आज उपयोगी मान कर वर्चस्व बढ़ाने और वोट पाने के लिए इस्तेमाल कर रहे है।उस महान देवत्त्व समान व्यक्ति के अंतिम दिनों में उसके अपने लोग समाज साथ छोड़ गए उन्हें अनसुना कर रहे थे।।जीवन के अंतिम पड़ाव में वे अकेले तन्हाई के साथ बैठे रहे क्योंकि वह उस समय की तत्कालीन राजनीति से कदमताल करने को तैयार नहीं थे ।इस ग्रेट मैन ने जब जीवन की सांसें धड़ल्ले से चल रही थी तब कहा था, मैं कुछ दिनों का मेहमान हूं ,कुछ दिनों बाद मैं यहाँ से चला जाऊँगा ।पीछे आप याद किया करोगे कि बूढ़ा जो कहता था वह सही बात है ।इस लाचार बेचार वेवश ने यह बात अपने समाज समय सत्ता असमझदारों से कही ।यह व्यक्ति और कोई नहीं महात्मा गांधी थे ।
आप सोच रहे होंगे उस समय की बात आज क्यों कि जा रही है।क्योंकि जिस प्रकार गांधी को उनके अपने चाहने वालो ने धोखा दिया ठीक उसी प्रकार दिल्ली चुनाव में भाजपा को उसके अपनो ने धोखा दिया । विकास के एजेंडे से पूरे देश में परचम लहराने वाली बीजेपी बहुमत के बाद जिस तरीके से राष्ट्रवाद के नारों के साथ कानून ,ऐतिहासिक कानून ,संशोधन कानून लाई उनका उपयोग चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए करना चाहती थी जो राष्ट्रवाद की भाजपा की भावना और उसके हुक्मरानों द्वारा लाये गए कानून के पर्दे के पीछे की चुनावी कहानी को क्या दिल्ली की जनता ने समझा।? और इस विकास , राष्ट्रवाद का ढ़ोल पीटने वाली पार्टी को विकास और राष्ट्रवाद दोनो की नई परिभाषा गढ़ने का मौका दिया है ।जो सड़क पर दिखाई भी दे और बोले भी ।
जिस प्रकार गांधी के सहारे नेहरू ने अपना चेहरा चमकाया ठीक उसी प्रकार अण्णा हजारे की हलवा पुड़ी खा कर दिलेरी दिल्ली की सत्ता पर तीसरी बार काबिज होने वाला अरविंद केजरीवाल शिक्षा ,शाहीनबाग, स्वास्थ, फ्री किराया बिजली के दम पर उस विचारधारा को शिकस्त देने में कामयाब हुआ जो गलियों के गले में गाली ,गोली ,बोली का संयोग और प्रयोग कर रहीं ।जिसे दिलेरी दिल्ली ने समझा ।खासतौर से उस वर्ग ने जो बीजेपी का कट्टर वोट बैंक था।जो राष्ट्रवाद को भी समझता पर मानवीय मूल्यों का साथ । 41 प्रतिशत बीजेपी का ये कट्टर वोट अपर कास्ट ने बीजेपी को कम वोट दिया ।इसके पीछे वजह चाहें जो माने जाया चाहें फिर झाड़ू का विकास या गंदी राजनीति ।पर राष्ट्रवाद के बराबर नारे लगाने वाले इस पढ़े लिखे अमीर 41 प्रतिशत उच्च वर्ग ने मुफ्त के चलते राष्ट्रवाद को नकार दिया यह हज़म नहीं होता ।इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग का आरक्षण ।क्योंकि विज्ञान ज्ञान बढ़ाता है जीवन दर्शन जीवन ।दिल्ली के लोगो ने ये दोनों पढ़े है।जीवन ज्ञानी यह समझता है कि आर्थिक रूप से समानता लाई ही नहीं जा सकती ।यदि सबको आर्थिक स्तर पर समान कर दे तो आलसी निष्क्रिय तो फायदे में रहेगा उसे सब कुछ बिना किए मिल जाएगा।वो ये भी जानते है कि किसी भी तरह आर्थिक बराबरी आ भी जाए तो आलसी और आलसी हो जाएगा। और मेहनती फिर से उसे अपने कुशल कार्य,बुध्दि, मेहनत से फिर हड़प लेगा। दिल्ली की पढ़ी लिखी सम्पन्न अपर कास्ट ने आर्थिक रूप से आरक्षण को साजिश, दिखावा, छल, असंवैधानिक समझा।जिसके चलते उन्होंने राष्ट्रवाद की उस प्रखर विचारधारा के साथ केजरीवाल की मुफ्त सत्ता सेवा उपभोग को समझा और उसका भरपूर साथ दिया।और बीजेपी की प्रयोगवाद राष्ट्रवाद को सिरे से खारिज कर दिया।राष्ट्रवाद के नाम पर राम राजनीति को विकासवाद की हनुमान राजनीति ने मात दे दी।
चेहरे पर चुनाव लड़ने पार्टी सिर्फ मोदी के दम पर बिना स्थायी चेहरे के चुनाव लड़ना और कांग्रेस का पूरी दमखम से चुनाव ना लड़ना ।बीजेपी की हार और आप की हैट्रिक के पीछे की कहानी है।
एक वो दौर था जब गुलामी की जंजीरों को तोड़कर नए राष्ट्र का निर्माण हो रहा था जो बापू और बाबा साहेब के सपनों का देश था ।लेकिन सत्ता भोगी राजनैतिक नेताओं ने ऐसा नहीं होने दिया ।बिल्कुल ऐसा ही दौर आज है एक बापू फकीर था जिसे हमेशा देश की चिंता सताए रहती थी ।और आज मोदी फकीर यदि देश को सामूहिकता राष्ट्रीयता को एक सूत्रधार में पिरोना चाह रहा है तो उसके अपने मुफ़्तभोगी उसे शर्मिदा कर रहे है ।पूरे भारत को चाहे वह किसी भी समाज को एक बात सदैव याद रखना चाहिए की अखंड भारत क्यों बिखर गया ।वो 6 वी सदी में 6 हजार लोग के साथ आए और एक हज़ार साल तक इस देश को गुलाम रखा ।उनमें यदि इस धरती माँ के प्रति इतनी प्रेम भावना थी तो लाखों लाशो के साथ तीन देश क्यों ले गए।
यदि 20 वी सदी के इस फकीर की बात नहीं मानी तो 19 वी सदी के उस फ़कीर की बात फिर कौंचती रहेंगी।
लेखक व चिंतक
आनंद जोनवार
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