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Showing posts from May, 2020

तीसरी तस्वीर जो सत्ता से सीधे सवाल करती है स्क्रीन से नदारद

कोरोना का कहर विश्वभर में छाया हुआ है ।भारत में भी इसका बुरा प्रभाव दिखाई दे रहा है ।दिन प्रतिदिन बढ़ते संक्रमण केसों की संख्या दुःख का विषय है ।चिंता की इस घड़ी में केंद्र  सरकार के साथ साथ  राज्यों  की  सरकार कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।स्वास्थ्य सुविधाओं सेवाओं में कोई कसर नहीं छोड़ रही है ।लेकिन कोरोना डर ,पेट की भुख कि पुकार ,रोजगार ठप्प होने से घर जाने की इच्छा ने देश की सत्तर साल की पूरी फिल्म ही दिखा दी है ।यह मूवी किसी सिनेमा के पर्दे पर संचालित नहीं हो रही बल्कि सड़क ही पर्दा बन गया ।यहां किसी चश्में ,कैमरा की जरूरत नहीं पड़ रही । जो कैमरा आपको टेलीविज़न की स्क्रीन पर समाचार के रूप में दिखा रहा है वह विज्ञापन स्वार्थ और चैनल चलाने की मजबूर नीतियों के कारण एडिटिंग  करके दिखा रहा है । यहां चुनींदा केरेक्टर को ही दिखाया जा रहा है । जबकि सड़क पर बिना बिजली पानी की उम्मीद लिए हुए यह निरंतर 24 घण्टे चल रही है ।हालांकि इस पर लॉकडाउन सील जैसे नियमों की सीमाएं लगी है पर मजबूत हौसला इरादा रखने वाले मजदूर  मजबूरी में सीमाओं का पालन करते हुए राज्यों की सीमाओं को पैदल ही नाप रहे है एक मजदूर कै

लोकल से ग्लोबल तक आत्मनिर्भर भारत !

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह साल बाद भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए नई पहल की शुरुआत की है । बास्तव में इसका आरभ्भ स्वदेशी आंदोलन से ही शुरू हो चुका था ।मोहनदास गांधी का खादी समय का चक्र इसकी नीव रही है ।गांधी जी हमेशा से ग्रामीण विकास और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बल देते थे।उनका मानना था कि हमारे देश की 70 प्रतिशत आबादी गांवो में रहती है ।इसलिए हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थायी व मजबूत बनाना चाहिए ।जिसके लिए हमें स्वदेशी बस्तुओं पर अधिक फोकस करना चाहिए ।लेकिन पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जे एल नेहरू जी ने पंचवर्षीय योजनाओं से पश्चिमी विकास को देश में रफ्तार दी ।हालांकि आजादी के इस दौर में  ऐसे ही विकास की जरूरत थी ।क्योंकि भले ही देश आजाद हो गया था लेकिन अभी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था अंग्रेजों के हाथों में सिमटी हुई थी।बस केवल हाथों का शरीर नेहरू जी का था । आजाद कुपोषण देश में गरीबी भुखमरी चरम सीमा पर थी । पंचवर्षीय योजनाओं से परिवर्तित करने का प्रयास किया गया ।लेकिन उसके बाद कि सरकारों ने समाज से सिर्फ वादे ,और वादे, और सिर्फ झूठे वादे किए। वैश्वीकरण क