लोकल से ग्लोबल तक आत्मनिर्भर भारत !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह साल बाद भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए नई पहल की शुरुआत की है । बास्तव में इसका आरभ्भ स्वदेशी आंदोलन से ही शुरू हो चुका था ।मोहनदास गांधी का खादी समय का चक्र इसकी नीव रही है ।गांधी जी हमेशा से ग्रामीण विकास और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बल देते थे।उनका मानना था कि हमारे देश की 70 प्रतिशत आबादी गांवो में रहती है ।इसलिए हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थायी व मजबूत बनाना चाहिए ।जिसके लिए हमें स्वदेशी बस्तुओं पर अधिक फोकस करना चाहिए ।लेकिन पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जे एल नेहरू जी ने पंचवर्षीय योजनाओं से पश्चिमी विकास को देश में रफ्तार दी ।हालांकि आजादी के इस दौर में ऐसे ही विकास की जरूरत थी ।क्योंकि भले ही देश आजाद हो गया था लेकिन अभी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था अंग्रेजों के हाथों में सिमटी हुई थी।बस केवल हाथों का शरीर नेहरू जी का था । आजाद कुपोषण देश में गरीबी भुखमरी चरम सीमा पर थी । पंचवर्षीय योजनाओं से परिवर्तित करने का प्रयास किया गया ।लेकिन उसके बाद कि सरकारों ने समाज से सिर्फ वादे ,और वादे, और सिर्फ झूठे वादे किए।
वैश्वीकरण के दौर में देश की फिर आजादी जैसी हालात बनी ।बड़ी मुश्किल से पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की अर्थशास्त्री बुद्धिमता, दूरदर्शिता सोच से लड़खड़ातते भारत ने उदारीकरण निजीकरण ग्लोबलाइजेशन में अपने आपको विकासशील देशों की कैटेगरी में लाकर खड़ा किया ।
कोरोना महामारी में दुनियां संकटमय है । अर्थव्यवस्था ठप्प हो गई है ।जिससे कई देश की बुरी हालत बन गई है ।जिनका जीवन अन्य देश की सहायता राशि पर टिका हुआ है । स्वास्थ्य,
अर्थव्यवस्था ,रोजगार,भुखमरी, व्याप्त भ्रष्टाचार,शिक्षा विज्ञान की सूक्ष्मदर्शी दृष्टि से देखे तो भारत की भी यही स्थिति है ।
स्वदेश के दम पर सत्ता पर काबिज हुई मोदी सरकार पहले से ही यह अभियान चला रही थी ।सीमित व्यवस्था और पुराने संरचनात्मक ढांचे के चलते इस पर बार बार ब्रेक लग रहा था ।
जब से देश में कोरोना ने प्रवेश किया है तब से विकास की गहरी खाई दिन प्रतिदिन दिखाई दे रही है ।जो बिना सूक्ष्मदर्शी दूरदर्शी के दिख रही है ।यह उनको भी दिखाई दे रही है जो देख नहीं पाते , या जानबूझकर देखना नहीं चाहते है ।कुछ भक्त कंपनी के उस चश्में को हटाना ही नहीं चाहते जिससे कंपनी का चिल्लाता हुआ स्मार्ट डेवलपमेंट सड़क पर दिखे ।
कोरोना ने दुनियां को दिखा दिया कि विकास प्राकृतिक स्थायित्त्व समानता लिए हुए होना चाहिए ।अन्यथा छिटक विकास सिर्फ खाइयां पैदा करता है ।जो विपरीत परिस्थितियों महामारियों में सड़क पर टहलता है ।जो सबके लिए नुकसानदायक है ।
कोरोना संकटकाल में बेघर मजबूर मजदूर सड़क पर भूखा प्यासा बिलखता हुआ,कोसों दूर अपने घर की राह पकड़ा हुआ है ।
असल में यह राह कथित विकास पकड़ा हुआ था जिसने इतनी मजबूरियां पैदा कर दी कि गांधीजी का ग्रामीण विकास उठकर चलकर दौड़कर भागकर शहर आ गया ।जहां इसे ना शिक्षा,ना स्वास्थ्य ,ना शारीरिक,ना स्थायित्त्व विकास का ख्याल रहा ,यहां तो यह सिर्फ दो वक्त की रोटी पर सिमटा हुआ है।आज जब इसकी रोटी पर कोरोना का कब्जा हो गया है तब इसने गांव की ओर रुख किया है ।रोजगार की रोटी बेरुखी होकर सड़क और पटरी पर पड़ी हुई है।
आज फिर जरूरत आ पड़ी गांव के घर की रोटी की ।सरकार को गांधी जी के घर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देनी होगी ।
मैं अपने लेखों में बार बार इस बात को लिखता रहा हूँ कि सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अधिक फोकस करें ।बात अब इस बात की है क्या यह सब कह देने या संकल्प लेने से हो जाएगा ।जबकि पहले से ही हम आर्थिक संकट से जूझ रहे थे । महामारी ने यह सवाल पैदा कर दिया है कि अब किस तरह का विकास होना चाहिए ।
इस कधर होगा विकास तब ही बनेगा आत्मनिर्भर भारत -
गांधी जी के घर में नेहरू जी की योजनाओं की प्लांनिग के साथ डॉ बी आर आंबेडकर की अद्वितीय श्रेष्ठ अर्थव्यवस्था अपनानी होंगी ।जो विकेंद्रीकरण के साथ साथ सामाजिक आर्थिक राजनीतिक सांस्कृतिक आधार युक्त है।जो कार्ल मार्क्स की आर्थिक नीतियों से भी श्रेष्ठ है । राज्य और केंद्र सरकार को पंचायत तहसील स्तर पर विकास करना चाहिए ।अधिक से अधिक औद्योगिक संस्थाएं उत्कृष्ट शिक्षण संस्थायें तृतीय स्तर पर हो जिससे नागरिकों को लोकल में ही रोजगार शिक्षा मिल सकें ।उन्हें रोजगार व शिक्षा के लिए बोरी बिस्तर सहित दर दर ना भटकना पड़े ।जिससे भटकता विकासशील भारत आत्मनिर्भर बन सकें ।
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