तीसरी तस्वीर जो सत्ता से सीधे सवाल करती है स्क्रीन से नदारद


कोरोना का कहर विश्वभर में छाया हुआ है ।भारत में भी इसका बुरा प्रभाव दिखाई दे रहा है ।दिन प्रतिदिन बढ़ते संक्रमण केसों की संख्या दुःख का विषय है ।चिंता की इस घड़ी में केंद्र  सरकार के साथ साथ  राज्यों  की  सरकार कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।स्वास्थ्य सुविधाओं सेवाओं में कोई कसर नहीं छोड़ रही है ।लेकिन कोरोना डर ,पेट की भुख कि पुकार ,रोजगार ठप्प होने से घर जाने की इच्छा ने देश की सत्तर साल की पूरी फिल्म ही दिखा दी है ।यह मूवी किसी सिनेमा के पर्दे पर संचालित नहीं हो रही बल्कि सड़क ही पर्दा बन गया ।यहां किसी चश्में ,कैमरा की जरूरत नहीं पड़ रही । जो कैमरा आपको टेलीविज़न की स्क्रीन पर समाचार के रूप में दिखा रहा है वह विज्ञापन स्वार्थ और चैनल चलाने की मजबूर नीतियों के कारण एडिटिंग  करके दिखा रहा है । यहां चुनींदा केरेक्टर को ही दिखाया जा रहा है । जबकि सड़क पर बिना बिजली पानी की उम्मीद लिए हुए यह निरंतर 24 घण्टे चल रही है ।हालांकि इस पर लॉकडाउन सील जैसे नियमों की सीमाएं लगी है पर मजबूत हौसला इरादा रखने वाले मजदूर  मजबूरी में सीमाओं का पालन करते हुए राज्यों की सीमाओं को पैदल ही नाप रहे है

एक मजदूर कैरेक्टर, गरीबी में विभिन्न रूपो में दिखाई दे रहा है ।आपको  टीवी की स्क्रीन दो तस्वीर तो बखूबी दिखा रहा है ।लेकिन एक वो तीसरी तस्वीर नहीं दिखा रहा जो सीधे सत्ता से सवाल कर रहीं है ।सत्ता मालिक की मिलीभगत से चल रही दूर दर्शन की स्क्रीन दिखाना भी नहीं चाहती ।फिर चाहे सत्ता मोदी की हो या सत्तर साल की । 

कोरोना काल में तीन तस्वीर ,एक जो घर बैठी है ,दूसरी जो निरंतर चल रही है,तीसरी वो जो सरकार की आंखों के सामने लाइन लगाकर भरी दोपहरी धूप में खड़ी है ।घर बैठी हुई तस्वीर को रोटी का अधिक इंतज़ार व मशक्कत नहीं करनी पड़ रही है ।लेकिन उनकी जो दिनचर्या थी उसके अनुरूप नहीं चलने से परेशान है । लेकिन कोरोना योद्धाओं का लगातार सम्मान बढ़ा रहे है ।उनको हौसलाअफजाई कर रहे है ।सरकार की एक अनुशंसा पर पथगमन मजबूर मजदूरों का जगह जगह सहयोग दे रहे है ख्याल रख रहे है ।वो परिचित करा रहे है भारत की अमूल्य सेवा श्रेष्ठ संस्कृति की ,पदयात्री भी उन्हें खूब दुहायें दे रहे है ।शायद संकट के समय में इसी सेवा सहयोग भाव की जरूरत भी है ।

दूसरी तस्वीर निरन्तर सड़क के पर्दे पर चल रही है ।जिसमें गरीबी  की पीड़ा के इतने रोल है कि पर्दे पर कोई केरेक्टर रिपीट नहीं होता । पैदल साइकिल बाइक  जुगाड़ की यात्रा के साथ ट्रक टैक्सी मेटाडोर टेम्पो में भूसे की बोरियों की तरह भारत का ग्रामीण नागरिक लदा हुआ है । टकटकी निगाहों से सड़क को मापते हुए मंजिल तक पहुँचने के लिए वेताब है।  जिसका खाकी वर्दी से तिकीनोंक झोंक और सफेद कोट के सवाल जवाबों से सामना हो रहा है । गरमी और हालात के चलते अर्धनग्न गरीबी का शरीर जिसके मुँह पर सत्ता का मास्क लगा है । असल में यह मास्क आज के समय का नहीं बल्कि सत्तर साल की सत्ता का बनाया हुआ है जो समय के साथ साथ बढ़ता गया  जिसके कारण गरीबी का मुंह बढ़ता गया और उसकी आवाज मुँह से निकली नहीं।पेट की भूख मिटाती यह आवाज आज महामारी में सड़क पर दौड़ रही है ।गरीबी की यह दैत्यकारी भूख आजकल की नहीं  बल्कि सत्ता  के जरिए दशकों में पैदा की गई है।सत्ता ने कभी इसे स्वावलंबी स्वदेशी स्थायी स्थानीय आत्मनिर्भर  बनाया नहीं ,ना ही बनाना चाहा।  


देश का नायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर समस्या हर परिस्थिति से सबक लेते हुए समाधान करने में पीछे नहीं हट रहे है । तीक्ष्ण तीव्र तत्काल  डिसीजन ले रहे है ।जो देश हित में है ।लोकल से ग्लोबल तक आत्मनिर्भर भारत बनने का विचार देश को महामारी से उभारने के साथ साथ अर्थव्यवस्था में स्थायी मजबूती प्रदान करेगा । जो काफी हद तक भूख की गरीबी  के लिए सार्थक निर्णय साबित होगा ।


सत्ता पर सवाल दागने वाली तीसरी तस्वीर जो स्क्रीन से गायब है । अपनी बारी  के इंतज़ार में इतनी लंबी है कि किसी  कैमरे की नजर इस पर नहीं टिक रही या त्रिस्तंभ रुककर  देखना नहीं चाहता ।उसका देखना ही उसकी आंखों का ककरा बन जाएगा ।यह तीसरी तस्वीर अस्पतालों के सामने लगी लंबी लाइन है ।जहाँ ना 2 गज दूरी का पालन हो रहा है ,ना सही से परीक्षण ।सिर्फ फॉर्मलटिज की जा रही है । सरकारों ने इतने लंबे समय अंतराल में स्वास्थ्य सेवाएं इतनी पुख्ता नहीं कि आम आदमी उन पर गर्व कर सकें।सत्ता ने संस्थाओं के जरिए सिर्फ सील ठोकने का काम किया है ।एक सत्ता ने निजीकरण के द्वार खोल दिये तो दूसरी सत्ता ने निजीकरण के लिए सरकारी खजाना खोल दिया ।महामारी की भयावह स्थिति में भी सरकारी खजाना निजी हाथों में पहुँच रहा है ।जो निश्चित रूप से  देश के लिए नुकसानदायक  है । 


पीएम मोदी जी जिनको हमेशा देश की चिंता सताती रहती है देश हित में उन सभी योजनाओं पर क्या विचार करेंगे जो निजी हाथों के लिए बनाई गई है ।ऐसी योजनाओं पर प्रतिबंध लगाकर सरकारी तंत्र को मजबूत करना ही देशहित में सार्थक कदम  होगा। 

प्रकाशनार्थ लेख 
प्रेषक 
लेखक 
आनंद जोनवार
मुरैना 
8770426456
anandjonwar@gmail.com

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