गैस त्रासदी की पीड़ा आज भी जिंदा है।

भोपाल गैस त्रासदी

3 दिसम्बर 1984
आधुनिक युग की दुनिया के इतिहास में काली परेड के यूनियन कार्बाइड कारखाने द्वारा कीड़े मकोड़ों को मारने वाले रसायन मिथाइल आइसोसायनाइड के खौफनाक रिसन से भोपाल गैस त्रासदी काले पन्नों में दर्ज हुई है ।

दुर्घटना गैर जिम्मेदारी, लापरवाही, लोभ,लालच और अनदेखी का परिणाम था। जिसका खामियाजा निर्दोष नागरिकों बच्चों और महिलाओं को भुगतना  पड़ा, आज भी पीड़ा का यह सिलसिला जारी है। यह सब छोटी कमियों का कमजोर विश्लेषण ,प्रबंधन और सुरक्षात्मक उपायों की कमी थी। जो सावधानियां बरतनी थी वे सावधानीपूर्वक नहीं बरती गई ।

टैंक E 610 में मापदंड के अनुमान 50% (30 टन)से अधिक 75%(45टन) मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का भरना और उसे रखना लालच और साजिश को दर्शाता है ,रखे होने से गैस दूषित हो गई ,साथ ही टैंक में पानी और जंग की पपड़ी चले जाने से पॉलीमराइजेशन की क्रिया शुरू हो गई थी जिसके कारण तापमान  व दबाव खतरे के निशान से कई गुना बढ़ गए, जिसकी वजह से मिक का  द्रव गैस में परिवर्तित हो गया ,गैस बनने के कारण टैंक में दबाव और अधिक बढ़ने से गैस बाहर आने लगी ,इस खतरे की सूचना देने के लिए जो  मापक यंत्र लगे वो खराब थे ।टैंक E 610 को शून्य  रखने वाला रेफ्रिजरेशन साल भर से बंद पड़ा था । टैंक  नंबर  E610 से  खाली टैंक  E619 तक गैस पहुंचाने वाले पाइप के वाल्ब के अलावा  परिशुद्ध  टावर व ज्वलन टावर ख़राब  पड़े थे।
उपरोक्त कारणों से जहरीली गैस का खौफनाक रिसाव  भोपाल में जहरीले बादल के रूप  में   छा गया ।जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड ,हाइड्रोजन क्लोराइड ,कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन सायनाइड ,मिथाइल आइसोसाइनेट, फॉसजीन गैस  थी । इनके  संपर्क में आने पर घुटन, आंखों में जलन ,उल्टी ,पेट फूलना ,सांस लेने में दिक्कत, फेफड़ों में  पानी भर जाना आदि  समस्याएं आने लगी जिसका परिणाम ह्रदय विदारक है। जिससे हजारों की संख्या में जाने चली गई, लाखों लोग प्रभावित हो गए ,परिवार के परिवार पतझड़ में झड़ने वाले पत्तों की तरह झड गए। श्मशान में दृश्य इस कदर था जैसे   लकड़ी के गट्टे की तरह  लाशें लाई जा रही थीं ।

आधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2259  बताई जा रही थी ।जबकी मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3787 लोगों की मौत होने की पुष्टि की जबकि अन्य अनुमानों से 8000 से ज्यादा लोगों की मौत 2 सप्ताह के भीतर ही हो गई थी।

2006 में सरकार द्वारा कोर्ट में प्रस्तुत  हलफनामा में गैस के कारण  कुल  5,58,125 जख्मी हुए ।उनमें से 38,478 आंशिक  विकलांग और 3900 स्थाई रूप से विकलांग होना दर्शाया गया। समस्या दुर्घटना के समय तक ही सीमित नहीं थी। बल्कि अब तक उसका असर पड़ रहा है ।पैदा होने वाले बच्चों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं  देखने को मिल रही है।

कल तक तालाबों का शहर भोपाल ,आज अस्पतालों का शहर बन गया ।
दिन   व दिन मरीजों की बिगड़ती माली हालात और डॉक्टरों की बेरुखी ने हालत  से मजबूर लोगों को खुदखुशी का रास्ता अख्तियार करने को मजबूर कर दिया ,सरकारी अस्पतालों में रोजाना 4000 से 5000 लोग इलाज के लिए पहुंचते हैं। लेकिन इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि इस इलाज का उनके स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ा।गैस राहत के अस्पताल भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं। हांफते - कांफते मरीजों की लंबी लाइन आज भी देखने को मिल जाती है। 33 बरसियो में  जुलूस निकालने या पुतले जलाने के अलावा हमने शायद हमेशा भोपाल गैस त्रासदी से कुछ नहीं सीखा ।आओ सीखें कुछ..
1...   भारत सरकार खतरनाक रसायनों की सूची हर महीने की 3 तारीख को प्रत्येक समाचार पत्र में प्रकाशित करें
2....   समुदाय जानकारी अधिकार कानून बनाए जिससे किसी भी खतरनाक रसायन के बारे में जानकारी मिल सके।
3...सरकार विकास का मूल्य खतरों के रूप में चुकाने जैसा लेनदेन अब और मंजूर ना करें।
4..  जहरीले रसायनों के  प्रतिरोधक की व्यवस्था सुनिश्चित  करें ।

फैक्ट्री में जमा रसायन अवशेष हवा ,पानी ,जमीन को प्रदूषित कर रहे हैं इनकी मात्रा टनो में है। यूनियन कार्बाइड प्लांट में पड़े घातक रसायनों को अब तक ठिकाने नहीं लगाया ,इन रसायनों ने कारखानों के आसपास हवा, पानी ,मिट्टी में जहर घोल दिया है।

40 मीट्रिक  टन कचरा इंदौर के समीप पीथमपुर और 350  मीट्रिक टन अंकलेश्वर गुजरात ले जाकर नष्ट किया जाएगा। कचरे को साफ करने की जिम्मेदारी मध्य प्रदेश सरकार की है ऐसा यूनियन कार्बाइड की वेबसाइट पर कहा है ।
इस घटना का मुख्य  आरोपी वारेन एंडरसन को ठहराया गया जिसकी 29 सितंबर 2014 को मौत हो गई ।भारत सरकार इस को भारत लाने में नाकाम रही।

अब केवल गैस पीड़ितों को ही नहीं बल्कि भोपाल के प्रत्येक नागरिक को इंतजार है कि कब उन्हें जहरीले रासायनिक कचरे से मुक्ति मिले और भोपाल की आबोहवा  प्राणियों के लिए  जीवनदायक बने।

लेखक आनंद जोनवार

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