विज्ञापनों से हिंदी को बढ़ता खतरा

विज्ञापन की भाषा सरल और सटीक होती है। इसमें भाषा के शब्दों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है। विज्ञापन की भाषा में भाषा की कृति और गुण को ध्यान में नहीं रखा जाता । हिंदी के स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली भाषा के विज्ञापनों में अंग्रेजी शब्दों का उपयोग किया जाता है जैसे स्कूल चले हम! भारत की शिक्षा का नारा है जबकि हमारे बच्चे इंग्लिश कम ही पढ़ पाते हैं।फिर भी यह संगीत रूप में  बच्चों को याद है।बच्चे अब हिंदी का विद्द्यालय शब्द भूल गए । हम अपनी मुख्य भाषा को छोड़कर अन्य भाषा का उपयोग ज्यादा कर रहे हैं। हिंदी के अतिरिक्त  उर्दू ,अंग्रेजी  शब्दों का  तोड़ मरोड़ कर उन्हें मिलाकर प्रस्तुत किया जाता है क्योंकि विज्ञापन में स्थान कम रहता है। मीडिया के बदलते दौर और माध्यमों ने भाषा को भी कार्टून बना दिया ।भाषा को कार्टून की तरह उपयोग किया जाने लगा । टीवी पर प्रदर्शित होने वाले विज्ञापनों में अपार संभावना मौजूद है।  विज्ञापन एक रचनात्मक माध्यम है जिसमें दृश्य ,श्रव्य, रंग तथा गति और संगीत  संयोजन से विशेष प्रभाव उत्पन्न किया जाता है ।विज्ञापन के विशेष प्रभाव के कारण इसका भाषा पर अधिक प्रभाव पड़ता है।विज्ञापन लेखनकर्ता को लेखन की सामान्य प्रवृत्ति और सिद्धांतों की जानकारी नहीं होती, होती भी है तो उसे नजरअंदाज करना पड़ता है। जिसके विज्ञापन लेखन में  भाषा की आत्मा को पहचानने की क्षमता नहीं होती ।इस प्रकार के लेखन से भाषा की  आत्मा  खो जाती है और धीरे धीरे भाषा मर जाती है ।
समाचार पत्र,रेडियो ,दूरदर्शन और अब न्यू मीडिया वेब  के  विज्ञापनों में  लेखन की अधिकांश विशेषता तो समाहित रहती है । लेकिन बदलते दौर और विभिन्न माध्यमों का भाषा  लेखन में माध्यम का अंतर साफ नज़र आता है। समाचार पत्रों में भाषा एवं क्षेत्र विशेष का प्रभाव अधिक पड़ता है। इसके बावजूद भी आज के समाचार पत्रों में टीवी रेडियो की भाषा के साथ अन्य भाषायों के साथ प्रस्तुत किया जाता है ।ऐसी गठजोड़ भाषा का आज के समय में अधिक प्रयोग किया जाने लगा है ।इस दौर की यह भाषा गतिशीलता के साथ जीवंत होती है और जीवंत बनती भी जा रही है ।ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि यह भाषा दर्शकों के मानस को मथने के साथ साथ उस पर गहराई तक प्रभाव छोड़ती है ।जो उसके दिल और दिमाग पर लंबे समय तक बनी रहती है । परन्तु इससे हिंदी भाषा के साहित्य का गुण ,कृति, रचना ,व्याकरण और उसका मिठासपन खत्म होता जा रहा है । हिंदी भाषा के रेडियो और दूरदर्शन  के विज्ञापनों में ध्वनि और दृश्य का प्रभाव अधिक रहता है जिससे बच्चों में लिखने की शैली कमजोर पड़ती जा रही है ।  रेडियो के विज्ञापन लेखन में बोलचाल भाषा और आवाज का प्रभाव प्रमुख है जबकि टीवी विज्ञापनों  की भाषा  चित्रात्मकता दृश्यों, अभिनय एवं व्यक्तिगत  प्रभाव  छाप छोड़ने वाली होती चली जा रही है ।मीडिया के बदलते नए दौर में भाषा को  नाटकीय अंदाज में प्रस्तुत कर  गतिशीलता प्रदान की जा रही है ।जिसके चलते भाषा अपना स्थानीय मूल रूप और  प्रभाव  खोती जा रही है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण विज्ञापन बनाने वाली कंपनी या संस्था का स्थानीय ना होना है ।इसके अतिरिक्त उसे व्यापक जनसंख्या को ध्यान में रखकर विज्ञापन बनाना होता है ।
समाचार पत्रों में विज्ञापन को उपलब्ध स्थान को ध्यान में रखकर तो वहीं रेडियो टीवी में समय की कमी के चलते व्याकरण रहित  भाषा के छोटे छोटे गतिशील शब्दों और अन्य भाषा के शब्दों को मिलाकर उपयोग किया जाता है ।विज्ञापनों का अपना  अलग महत्व  होता है ।शब्द और संगीत के संयोजन से प्रस्तुत विज्ञापन श्रोताओं और दर्शकों पर विशेष प्रभाव उत्पन्न करता है। विज्ञापनों में मनोरंजन को प्रधानता  दी जाती हैं। इससे विज्ञापन काफी लोकप्रिय हो जाते है। तथा कई विज्ञापन तो फिल्मी गीतों की भांति श्रोताओं दर्शकों  की जुबान पर चढ़ जाते हैं रेडियो विज्ञापन मनोवैज्ञानिक ढंग से श्रोताओं से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करता है।यही से भाषा  का प्रभाव कम होने लगता है साथ ही लुप्त होने की सीढ़ियों पर चलना शुरू कर देती है ।आज भारत में लाखों बोलियां और क्षेत्रीय भाषाएं लुप्त हो गई क्योंकि उनके प्रचार प्रयोग पर ध्यान नहीं दिया गया ।सरकारी विज्ञापनों में भी विभिन्न भाषायों के शब्दों को काट छांट कर  प्रचार किया जाता है ।जैसे स्कूल चले हम!।भाषा का यह प्रभाव विज्ञापनों में ही नहीं शिक्षा पद्धति में भी नजर आता है ।
एनुअल एजुकेशन स्टेटस ऑफ रिपोर्ट  बताती है कि 3वी कक्षा में पढ़ने वाले करीब आधे छात्र हिंदी नहीं पढ़ पाते ।उनके सीखने समझने की क्षमता लगातार गिरती जा रही है ।इसके पीछे एक ही कारण मिलता है ।स्कूलों में  बच्चों की पढ़ाई उनकी अपनी मातृ भाषा ,उसकी अपनी बोली में नहीं होती। यही चीज विज्ञापनों से होती है
हिंदी भाषा के साथ खिलवाड़ इन विज्ञापनों से समझ सकते हैं पेटीएम करो ओला बुक करो s.m.s. करोन्यूज़ फटाफट, डाटा सेव करो इन सब विज्ञापनों में प्रयुक्त शब्दों का सार्थकपूर्ण मतलब कम ही जानते है । प्रचलन और बढ़ती उपयोगिता के कारण  हरेक इनका इस्तेमाल करता है ।pay tm करो ।विज्ञापनों का ऐसा दौर शुरू हुआ जिसमें  हिंदी विज्ञापनों में इंग्लिश शब्दों का भरपूर इस्तेमाल  किया जा रहा है । pay tm का अंग्रेजी में विस्तार payment  trough mobile होता है । देश के कई हिस्सों के करोड़ो लोग इसका अर्थ नहीं जानता फिर भी धड़ल्ले से उपयोग कर रहे है । बढ़ते उपभोक्ता उपयोगकर्ता के चक्कर में ऐसे विज्ञापन अन्य विज्ञापन बनाने का जरिया बनते हैं ।पेटीएम करो विज्ञापन में प्रयुक्त 3 शब्द अंग्रेजी के है ।ठीक इसी प्रकार sms करो में संदेश शब्द का प्रयोग नहीं किया जबकि इसमें संदेश ही किया जाता है ।डाटा सेव करो  ये शब्द जनता के सिर चढ़ कर बोलते है ।ये सभी अंग्रेजी शब्द है जिन्हें हम हिंदी में लिखकर  उपयोग करते है । इससे हिंदी हिंदी ना रहकर हिंगलिश बनती जा रही है ।यही दौर चलता रहा वो दिन दूर नहीं जब हिंदी अपना मूल रूप खो बैठेगी ।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

रंगहीन से रंगीन टीवी का बदलता दौर और स्क्रीन

विकसित भारत का बीज बच्चों की बेहतर शिक्षा और सपने

हर गुलामी और साम्प्रदायिकता से आजादी चाहते: माखनलाल