कुपोषित विकास
डरा -सहमा,बेखबर, बेहद कमजोर,ठिठुरता हुआ सीधा- साधा बच्चा जिसके रूखे बाल, सूखे होंठ, बहते हुए नम आंसू और कोमल मुट्ठियों की गुहार विकास की आड़ में धरी रह जाती है। उसकी जिंदगी के पैरो ने विकास की चकाचौध में घुटने मोड़ दिए। दो वक़्त की रोटी और महगांई का विकास इन नन्हें परिंदों को भिक्षावृत्ति,ठेला ढोना, ढाबों पर बर्तन धोना जैसे बालश्रम करने को मजबूर कर देता है बालश्रम बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा का लक्ष्य यहां ढ़ेर हो जाता है । शिक्षा की टांगे अकड़ी हुई इन बच्चों को विकसित समाज आइना दिखाकर दुत्कारता है।नंगे बदन डर से कांपते हुए बालश्रम बच्चों का भविष्य रोजगार, समाज और परिवार से जुड़ा मुद्दा है जो हमारे कुपोषित सामाजिक विकास को दर्शाता है।देश की दो तिहाई भूमि आज भी असिंचित है। साल दर साल जमीनी पानी का स्तर लगातार गिर रहा है ।देश के कई इलाके सूखे की मार झेल रहे है जहां पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। सरकार आज भी रिवर्स ऑस्मोसिस से समुद्रीय पानी को पीने योग्य करने का प्रबंधन नहीं कर पाई । जबकि विश्व बैंक रिपोर्ट ने खुलासा किया है जलवायु परिवर्तन का असर भारत पर अधिक पड़ेगा।2050 तक देश की आधी आबादी को पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा । कृषि में सिंचित पानी की किल्लत से देश की जीडीपी में 2.8 प्रतिशत की भयावह गिरावट आएगी। देश की एक तिहाई महिलाएं आज भी शिक्षा से दूर है।देश में मां बनने की उम्र में महिलाओं की आधी आबादी रक्त की कमी से जूझ रही है। जो शिक्षा,स्वास्थ व्यवस्था, पोषक युक्त पोषण की कमी का कारण है ।विकास के नाम पर जड़ और जंगल से दूर विस्थापित आदिवासियों को पुनर्वास करने का आंकड़ा बेहद निराशाजनक है । लोकतंत्र और विकास को ना समझने वाले,प्रकृति के नियमों से रहने,उसे पूजने,पर्यावरण को स्वच्छ,सुरक्षित,सरंक्षित रखने वाले आदिवासियों को जल,जंगल और जमीन से विकास के नाम पर बेदखल कर देना जिससे पूरी जैवविविधता खतरे में पड़ सकती है। आज भी देश में अनेक बड़ें बूढ़े,बच्चे,महिलाएं भूख लिए सो जाते है। सीमेंट कंक्रीट का ये कुपोषित विकास कभी भी लड़खड़ा सकता है ।
लेखक
आनंद जोनवार
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