घर की मालकिन, सत्ता की मालकिन बने


सत्ता में बढ़े नारी शक्ति

लोकतंत्र पर्व मनाते मनाते करीब 70 साल गुजर गए । इतने साल निकल जाने के बाद भी सत्ता के गलियारों में चिंतित नारी सहमी,डरी, छिपी हुई  बैठी  है। इनकी चिंता सत्ता में बैठे नेताओं को नहीं होती?जो चिंता हुई वह आरक्षण के फंदे में फंस गई या फंसा दी गई। आजादी के समय हमारे संविधान निर्माताओं ने नारी को अधिकार पुरुष समतुल्य ही दिए । फिर  क्यों, और कैसे,इस पल्लू के छोर से सत्ता को भांपने वाली शक्ति  नारी ने घर की रसोई में उठने वाले धुएं से खांसते- खांसते ,घुटते -घुटते  दम तोड़ दिया और उसका सत्ता की सरकारी कुर्सी पर बैठने का सपना घूंघट में रह गया।कुछ जो पढ़ लिखकर देहरी से बाहर आई ,वो डिग्री लेकर सरकारी कार्यलयों में फ़ाइलो में दब गई । पुरुष प्रधान समाज में शिक्षित,धनवान, सम्पन्न बुद्धिमती नारी शक्ति घर की चार दीवारों का प्रतिनिधित्व करते हुए ,झोंपड़ी और खप्पर में रहने वाली अशिक्षित बेपढ़ नारी साथी के आशियाने पर उनकी  नजर ना पड़ती है, ना टिकती है , ना ठहरती है। ये नारी शक्ति यहीं दब जाती है ,विकास के झूठे पकवानों में। 

 चुनाव में याद आती है मतदान महिला शक्ति

  सत्ताधारियों को महिला शक्ति चुनावी वोट में याद  आती है.  जिसमें नारी  गर्व से चलती है वोट रूपी दीया लिए लोकतंत्र का त्यौहार मनाने । आज भी अधिकतर महिलाएं  पुरुष की इच्छा को अपनी इच्छा समझकर मतदान करती है.आज तकरीबन  बराबर होते हुए भी महिलाएं राजनीति में  समान भागीदारी  में संकोच करती  है. जिसका मुख्य कारण  देश में पुरुष प्रधान समाज  राजनीति का जानबूझकर किया गया माहौल और   अज्ञानता का होना है। आधी जनसंख्या होने के बावजूद राजनीति में ना के बराबर प्रतिनिधित्व  है।आधी जनसंख्या में  33प्रतिशत महिला आरक्षण जुमले भरा हुआ है।  सभी पार्टियां  महिलाओं को प्रत्याशी बनाने से झिझकती है । मध्यप्रदेश  लोकसभा 2014 के चुनावों में  महिला प्रत्याशियों की संख्या 37 जबकि  पुरुष प्रत्याशियों की संख्या 341 थी । इस संख्या के सापेक्ष में महिला प्रत्याशियों की संख्या बहुत कम थी। लेकिन सबसे अधिक 466901 मतों से विजयी  महिला ही हुई थी और सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाली भी महिला ही थी। प्रतिशत मतों में सबसे अधिक जीत दर्ज करने में महिला ही थी। महिला प्रत्याशियों की संख्या,महिला मतों के आधार पर देखा जाए तो यह आंकड़ा बहुत छोटा  नजर आता है ,जो महिलाओं के प्रति पुरुष  प्रभावित समाज की सोच को दर्शाता है। समझदार,शिक्षित,सम्पन्न महिलाओं को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि अपनी भागीदारी कैसे बढ़ाई जाए। वैसे पार्टियों द्वारा प्रत्याशी घोषित करना भी इसका कारण है और उससे भी बड़ा कारण पार्टियों के प्रत्याशियों को मतदान करना जिससे पार्टी का बलवत हो जाना, बलवत पार्टी अक्सर पुरुष को ही  टिकिट देती है। अब प्रश्न हमारे सामने यह है कि नारी भागीदारी को राजनीति में कैसे बढ़ाएं ?  ले

लेखक

आनंद जोनवार



Comments

  1. 33 percent reservation ki baat hai women ke liye.Tuksh spelling galat hai.Last wali lines thoda negative hai.

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