खामोशी में खुशी कहां

खुश रहो ,खामोशी भगाओ

खामोशी  में खुशी  सो जाती है । किसी की खामोशी दर्द भरी होती है तो किसी की खामोशी दर्द भरी पीड़ा के कारण होती है ।खामोश होना अच्छी बात है तभी तो कहा गया है अच्छा श्रोता एक अच्छा वक्ता होता है । लेकिन खामोशी को  हमेशा अपने जिंदगी में बनाए रखना , जो फितरत बन जाए । इसकी वजह अनेक हो सकती है किसी की चिंता और किसी कारण से चिंता , चिंता की लकीरें उस खामोशी को प्रदर्शित कर देती  है । और यही चिंता  खामोशी का रूप लिए  दीमक की तरह मनुष्य ओर उसे अमूल्य  जीवन को खत्म कर देती है ।किसी के अत्यधिक चाहने वाले का दूर होना और अधिक लगाव वाले का इस दुनियां से परलोक गमन भी उसकी याद जिस पर वो अधिक विश्वाश उस पर निर्भरता गम में डूबा देती है , निर्भर व्यक्ति मन ही मन ये सोचने लगता है अब उसका क्या होगा , यहीं सोचकर वह अपने ख्यालों में खोया रहता है तथा सब से बाते, चर्चा  करना बंद कर देता है उसका यू खामोश होना समाज से दूरी बनने का जरिया बन जाता है । समाज से दूरी सामाजिक विकार को जन्म देती है । विकार से पीड़ित  अकेलेपन का एहसास कराता है जहां वह अंदर ही अंदर दर्द को छिपाने लग जाता है जिंदा दर्द उसके जीने की जिंदगी  का मकसद हो जाता है । इस प्रकार की सोच से वह ना तो किसी की सहायता लेना चाहता है , ना करना । ऐसी खामोशी मेरा कोई नहीं है ,का आधार बन जाती है ।

लेखक
आनंद जोनवार

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