बुखार वातवरण का
लू की लपेट से बचे
बढ़ते जलवायु परिवर्तन से तापमान में बेरुखी बदलाव देखने को मिल रहे है ।फिर बात चाहे कहीं की भी हो ।
ताप की तपस ,शीत का कहर ,बरसात में बाढ़ो की मार और लपटों के थपेड़ें मानव को झेलने पड़ रहे है ।उसे इनसे सामना करना स्वभाविक है क्योंकि इन सब का जिम्मेदार भी वह खुद है ।समुद्र किनारे बसे केरल को हर साल किसी ना किसी प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ता है ।135 सालों के इतिहास में इस राज्य ने अनेक बार बाढ़ ,सूखे की मार झेली है ।साथ ही कई बार शीत लहरों के प्रकोप के साथ 20 से ज्यादा बार लू की चपेट में आया है। है ।कई लोगों को लू ने कोमा में पहुँचा दिया तो कईयों के सिर और कंधे झुका दिए । गर्म हवायों से शरीर का निर्जलीकरण का होना आम बात हो गयी है ।सरकार ने इससे बचने के लिए एक कदम बढ़ाया ।सुबह 10 बजे से 3 बजे तक घर से बाहर ना निकलने की हिदायत दी है । देश के दिल में बसा मधयप्रदेश भी मौसम में मासूम हो जाता है ।बरसात के मौसम में बारिश नहीं होती । सर्दियों का अंतराल बर्ष दर वर्ष बढ़ रहा ।और ठंड में बेमौसमी बरसात तो गर्मियों में ताप का पारा आसमान में पहुँच जाता है ।चिलचिलाती धूप की चुभन ततैया के डंक सी लगती है ।मौसम का बदलता बेरुखी रूप बहुत भयानक सा लगता है ।इन सबका जिम्मेदार विकास की ओट में जंगलों का उजाड़ना और शहरीकरण है । चादर के रूप में सड़क का बिछना और पेड़ पौधों की हरी भरी चुनरी का वाहनों और कारखानों के धुएं में उड़ कर छिप जाना ।वातावरण के बुखार का जिम्मेदार है ।केमिस्ट्री में बॉयल के नियमानुसार ताप के साथ साथ दाब बढ़ता है ।जो बेमौसमी बरसात ,बाढ़ों और धूल भरी आंधी तूफान,और लू की वजह बनता है ।अभी आग जैसी लू के थपेड़े गालों को लाल कर देती है ।शरीर को ढंक कर चले ,बराबर पानी पीते रहे और हो सके तो दोपहर में घर से ना निकले ।लू से बचने का मार्ग अख्तियार करे।
लेखक
आनंद जोनवार
Comments
Post a Comment