विश्व पर्यावरण दिवस

रेत,खेत की जोतें
सड़क पर मौतें
पृथ्वी की बढ़ती तपिश से कई नदियां सूख गई और कई सिकुड़ते हुए सिमट रही है।उस पर निर्भर जीवों का जीवन भी पानी की कमी में सिमटता जा रहा है । संकट की घड़ी में खुद पर मंडराता खतरा दूसरों के लिए भी खतरा बन गया है। सूखे की मार विश्व में इसका संकेत है ।अरबों जीव जंतुओं का टैटूआं सूखा पड़ा है। प्यास की तड़प में पौधे और जन्तु विलख रहे है। अपनी आवाज उठाने में असमर्थ असक्षम पौधे और जंतु प्रकृति और मानव की दोहरी मार झेल रहे हैं। पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान प्राणी होने के नाते मनुष्य ने अपने सुख और सुकून की खातिर वृक्षों को काटा, हटाया,घर की दीवारों में चिनवाया,आरी की धार चलवाई और फर्नीचर में जड़ दिया,जरूरत नहीं रही तो जलवा भी दिया,ठूंठ ठूंठ तक नहीं छोड़ा। विकास की तेज दौड़ और होड़ में जंगल खत्म कर दिए। प्राणियों को शुद्ध हवा और भोजन देने वाले। आज खुद अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं कुछ प्रजातियां तो इस अस्तित्व की लड़ाई में विलुप्त हो गई ।वे जड़े  खत्म हो गई जो मिट्टी को बांधने में सक्षम थी।विकास की दीवारें ,चादरें बनाने में रेत की जरूरत पड़ी तो नदियों में उतरे। मशीनों ने नदियों की रेतीली नाड़ीओं को जोत डाला ।जोत से बने गड्ढों में आज  ना रेत है ना पानी। खनन माफिया हल्के फुल्के मुनाफे के चक्कर में दिन दहाड़े रेत ढ़ों रहे है ।वो ना ही  जानना चाहते है ना समझना कि समुदाय के साथ साथ पर्यावरण पर इसका कितना बुरा प्रभाव पड़ता है । सरकारें मौन बनी रहती है ।नदी का पूरा पारिस्थितिक तंत्र तो उजड़ता ही है ।उस पर  निर्भर  रहने वालो का जीवन  भी आपात स्थिति में आ जाता है ।उसके आस पास के जंगलो के विनाश का अनुसरण कर मरुस्थल भी पैर पसार रहा है ।जंगलो के विनाश,शहरीकरण,औधौगिक और वाहनों से निकले वाला धुंआऔर मानव हस्तक्षेप से आज पृथ्वी आग की भट्टी बन गई है । भट्टी से  निकले आग के अंगारो से वातावरण तप गया है ।तपते वातावरण में असहनीय गर्म हवाओं ने लू का रूप धारण कर लिया है ।ये वो हवाएं है जिन्हें हम आने वाली पीढ़ी को उत्तराधिकारी के रूप में देकर जाएंगे।विरासत में गर्म हवा पाने वाली पीढ़ी  अपने पूर्वजों से पूछेगी हमारे पूर्वज इसे लेकर चिंतित क्यों नहीं थे?।सरकार और समुदाय दोनों को  विकास का पैमाना बच्चों की भलाई और उनका स्वास्थ्य रखना होगा।ना कि शौचालय। शौचालय स्वच्छता का पैमाना हो सकता है समुचित विकास का नहीं । विकास का मूल्य खतरों के रूप में अब और मंजूर नहीं करना चाहिए ।शौचालयो में मल के अपघटन से निकली गैस वायु को दूषित कर रही है ।इस बात को गटर सफाई के दौरान दम घुटने से हजारों सफाईकर्मियों की मृत्यु से समझ सकते है ।इसके अलावा जल के साथ मिलकर मल नदियों में जाता है ।जिससे पीने युक्त पानी प्रदूषित हो रहा है ।नाला शब्द सुनते ही काला बदबूदार वहता दूषित मल युक्त जल की तस्वीर ही सब के मन में उभरती है ।आज के ये नाले कभी प्रवाहित स्वच्छ जल के  मार्ग रहे थे ।सरकार को मिक्स मलजल के साथ खेल खेलना होगा ।समाधान निकालना होगा ।मल का रिसाइक्लिंग कर कैसे बेहतर ढंग से इसके तत्वों को पुनः मिट्टी में लौटाया जाए ।वैसे इसका प्रयोग  रेगिस्तान के रेत में डालकर धूब व पेड़ पौधों के लगाने में कर सकते है ।यहाँ से उठने वाली  गर्म हवा को कुछ हद तक शांत किया जा सकता है ।शहरों से निकले नालों के पानी को नदी में मिलने से पूर्व धूब रेत पेड़ पौधों से गुजारकर नदियों को दूषित होने से बचाया जा सकता है ।सरकार के साथ साथ समुदायआज चिंतित नहीं हुए तो आने वाले समय में बाढ़, आंधी, तूफान ,लू, बर्फ का पिघलना प्रचंड शक्ल लिए होगा ।प्रकृति की कोख पर चले हलो ने रेत के खेत और कृषि के विस्तार ने हरियाली का परपटा कर दिया ।सरकारें  प्राकृतिक संसाधनों को ट्रस्ट समझकरअतिदोहन कर  रहीं है । ।बढ़ते समय के साथ साथ पृथ्वी के मुंह से निकली ये दहकती आग पूरी दुनिया के सामने चिंता का सवाल है ।फिर चाहें अमेरिका जैसा विकसित देश ही क्यों ना हो ।ताप के थर्मामीटर से निजात एयर कंडीशनर से पा सकते है।इनका अधिक उपयोग ओजोन होल की समस्या खड़ी कर सकता है । पर उसका समाधान  क्या  करेगा? जब भू प्लेट्स खिसकेगी ।जैसा सभी जानते है ताप बढ़ने से प्रसार होता है ।भू प्लेट्स खिसकने से पूरी दुनिया का वातावरण परिवर्तन होगा ।इस पर कोई नियंत्रण नहीं कर सकता। ग्लोबल वार्मिंग को कम कर इससे बचा जा सकता है ।आज विश्व पर्यावरण दिवस पर ऐसे कारक जो बढ़ती जलवायु परिवर्तन के जिम्मेदार है। उन्हें कम से कम करना है ।अन्यथा रेत खेत की जोते सड़क पर मौतों के ढ़ेर में होंगी। जिसमें पूरी मानव सभ्यता समाप्त हो सकती है।

लेखक
आनंद जोनवार

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