समाज सुधार आंदोलन के पिता -पेरियार

ज्ञान विज्ञान के घर दिमाग में काल्पनिक भगवान की कोई जगह नहीं -पेरियार         
तमिल भाषा में पेरियार का अर्थ सम्मानित व्यक्ति और पवित्र आत्मा होता है। सम्मानित व्यक्ति वही हो सकता है जिसके पास तर्क,बुद्धि,वैज्ञानिक सोच हो । जो पाखण्डवाद,पूजा रूढ़ीवादी परम्परा से दूर रहता हो।और दूसरों को भी रूढ़ीवादी,आडंबर,काल्पनिक जैसी चीजों से दूर रखने का सुझाव देता हो ।जो साइंस पर विश्वास रखता हो जिसकी सोच वैज्ञानिक हो उसे समझता हो ।उसे समझकर  जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करते हुए सत्यता वास्तिवकता की कसौटी पर खरा उतरता हो । वास्तविकता सत्यता साइंस पर खरा उतरते हुए दूसरों को भी  स्वयं ज्ञान बुध्दि से सोचकर निर्णय लेने को  प्रेरित करता हो, उनका कहना था किसी भी चीज, विचार को स्वीकार करने से पहले उस पर विचार करो, तुम समझते हो कि इसे तुम स्वीकार सकते हो तभी इसे स्वीकार करे अन्यथा इसे छोड़ दे।ऐसे महान क्रांतिकारी तर्कवादी समाजसुधारक सम्मानित व्यक्ति का जन्म   तमिलनाडु में 17 सितम्बर 1879 को एक सम्पन्न घर में हुआ। जिनका नाम ई वी रामास्वामी नायकर था ।सर्व सुविधाओं से सम्पन्न पेरियार जी ने सत्य का साथ देते हुए पिताजी के दोस्त पंडित के भाई को गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होने के कारण गिरफ्तार करवाया ।इसके बदले में उनके पिताजी ने अधिक पीटा और घर से बाहर  भगा दिया ।भूखे पेट सूखे होंठ वाला ये नवयुवक काशी की गलियों में दर दर भटकता रहा ।भूख से तड़पते हुए गरीब लोगों के धन से संचालित एक पंडाल में खाना खाने के लिए पहुंचे। जहाँ से ब्राह्मणों द्वारा  दुत्कार दिए गए। जहाँ लाखों टन भोजन नदियों में फेंक दिया जाता है । दूषित खाने को पशुओं द्वारा खाने पर उनकी मृत्यु हो जाती है ।नदी में फेंकने से नदी प्रदूषित हो जाती है।अथक प्रयास के बाद भी भूख से बिलखता बालक तड़पता रहा । यहाँ से उन्होंने धर्म के ठेकेदारों  द्वारा बनाये  काल्पनिक भगवान  का नकाबपोश उठाने के लिए तार्किकता का सहारा लिया ।तर्क और  विज्ञान के आधार पर ना दिखाई देने  वाले काल्पनिक रचित भगवान की पोल खोल दी ।गरीबों को समझाया कैसे तुम्हें धर्म के ठेकेदार  झूठ डर लालच भय  स्वर्ग का सपना दिखाकर दैवीय शक्ति  के सहारे लूटा रहे है।तुम्हें लूटकर  पेट पेटियां तिजौरी भरी जा रही है। पेरियार के अनुसार समाज में निहित अंधविश्वास और भेदभाव की वैदिक हिन्दू धर्म में अपनी जड़ें है जो समाज को जाति के आधार पर बांटता है ।वो जाति प्रथा  और ब्राह्मणवाद के घोर विरोधी थे ।अज्ञानता,अनुष्ठान,अंधविश्वास, असमानता, अस्पृश्यता,बेकार की रीतिरिवाज के विरोधी थे।वो धार्मिक संगठनों के भी खिलाफ थे,जो एक दूसरे का शोषण असम्मान लड़ाई के लिए जिम्मेदार होते है। वो वयक्तिगत स्वतंत्रता पर अधिक भरोसा रखते जिससे वयक्ति  चौतरफा विकास कर सके। उनका कहना था स्वाभिमान तथा बुध्दि का अनुभव होना जनता में जागृति का संदेश है ।वो विचारों से क्रांतिकारी और तर्कवादी थे।तभी तो यूनेस्को ने उन्हें नए युग का पैगम्बर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात ,और समाज सुधार आंदोलन का पिता कहा है ।पेरियार जी विचार तर्क साइंस शिक्षा पर बल देते थे ।ऐसे भगवान पर भरोसा मत करो जो खुद छिपकर डरा सहमा बैठा है ।उनके आचरण,विचार ,विश्वास ,दृढ़ता ,वैज्ञानिकता, बुद्धिमता, बौद्धिकता, तर्क से मानव जाति ओत प्रोत थी । जिससे स्थानीय लोग उन्हें स्थानीय भाषा में पेरियार कहते थे। ऐसे काल्पनिक भगवान पर जो दिखता नहीं ,जो अपनी रक्षा नहीं कर सकता ,जो आपस में एक दूसरे से लडवाता हो, जो कुछ लोगों के द्वारा विशेष तौर पर बनाया हुआ है,ऐसा मानते थे ।पेरियार जी जीवन पर्यंत दूसरों को शिक्षा, तकनीक के लिए प्रेरित करते रहे ।उनके दिमाग सोच से पाखंडवाद और पूजा कोसों दूर थी । दिमाग को सदैव ज्ञान  विज्ञान सही सोच का घर मानते थे।उस बनाए गए काल्पनिक भगवान की इस घर में कोई जगह नहीं है। ना ही जरूरत वह अपना घर खुद ढूंढ ले ।वो सर्वसम्पन्न है तो उसे इस दिमाग रूपी घर में डर भय लालच का सहारा लेकर रहने की जरूरत ही क्यों है।वो कट्टर भगवान विरोधी तो थे ही उसके साथ साथ सक्रिय स्वाधीनता ,प्रखर समाजवादी चिंतक ,नशाबंदी के घनघोर समर्थक, क्रांतिकारी समाजसुधारक थे।उन्होंने  अस्पृश्यता, जमींदारी, सूदखोरी, स्त्रियों के साथ भेदभाव तथा हिंदी भाषा के साम्राज्यवादी फैलाव के विरुद्ध आजीवन पूरे दमखम के साथ संघर्ष करते रहें। वो तर्क- बुध्दिवाद के अनन्य प्रचारक व प्रसारक थे।पेरियार जी शादी को इसमें निहित पवित्रता की जगह पार्टनशिप के रुप में लेने की बात कहते थे ।वो महिलाओं को शिक्षा पाकर आत्मनिर्भर  बनने  का विचार देते थे ।जिसके लिए उन्होंने अनेक सभाएं की और आंदोलन  भी चलाये।वो विश्वासोत्पादक,विज्ञान, तार्किकता पर फोकस करते थे। वर्तमान समय में भी उनका हिंदी विरोधी आंदोलन सार्थक सिध्द हो रहा है जब केंद्रीय शिक्षा नीति में हिंदी को अनिवार्य कर दिया है ।जबकि नीति  बनाने वालों की संताने अंग्रेजी मीडियम वाले सर्व सुविधा युक्त स्कूल में शिक्षा पा रहे है ।जबकि सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले गरीब छात्रों को सुविधाविहीन ,कहीं स्कूल नहीं, तो कहीं पढ़ाने वाला अध्यापक नहीं,90 प्रतिशत प्राइमरी सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी अध्यापक नहीं है। कम्प्यूटर तकनीकी युग में 99 प्रतिशत ग्रामीण स्कूलों में कंप्यूटर जैसी तकनीको का अभाव है ।जिससे सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की वो नींव कमजोर पड़ जाती है ।वर्तमान समय में कुल ग्रेजुएट विद्यार्थियों में दलित केवल 3प्रतिशत है ।गांव में बसने वाले गरीब भारत कि शिक्षा हांसिएं पर चली गई है ।पेरियार जी इस शिक्षा की मजबूती के लिए आंदोलन चलाते रहे । हमेशा लड़ते रहे । पेरियार को समझना हो तो उनके विचारों पर चलना होगा ।ग्रामीण भारत की दम तोड़ती शिक्षा तंत्र को समान सुविधा व्यवस्था,अनुभवी शिक्षक, विकासोत्पादक के साथ साथ बढ़ते गतिशील संसार के समानांतर तकनीक  शिक्षा उप्लब्ध होना चाहिए जिसकी लड़ाई पेरियार समर्थकों को सदैव करना चाहिए।

लेखक 
आनंद जोनवार

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