त्रासदी का दंश कब तक झेले पीड़ित

कहा जाता है पीड़ित को जानना समझना हो तो उसकी पीड़ा को महसूस कीजिए ।रोगी के रोग का इलाज कीजिये उसकी सेवा कीजिए ।वह आपसे  जरूर प्रभावित होगा इंसान को इंसानियत के नाते  ये सेवा जरूर करनी चाहिए ।बीमारी का बोझ झेल रहा रोगी सेवा करने वाले को दुआएं जरूर देगा ।ये दुआएं उसकी अंतरात्मा से निकली होगी ।राजधनी भोपाल में स्वास्थ्य समस्याओं  के साथ लाखों लोग मौत से जूझ रहे है। जिसकी वजह 35 साल पहले हुई खौफ़नाक गैस मिक (मिथाइल आईसोसायनाइड ) बनी हुई है।पेस्टिसाइड बनाने वाली यूनियन कार्बाइड फैक्टरी  जिसने लाखों लोगों को  निगल लिया ।दुर्घटना के कारण फैक्ट्री का काला पड़ा चेहरा आज भी राक्षस की तरह इलाके की जनता को खा रहा है।यूका का जमीन में  जमा कचरा जिसका सरकारें अब तक निराकारण नहीं कर पाई है वह कचरा जल जमीन हवा को अभी भी दूषित कर  रहा है ।कचरे के निराकारण में नाकाम रही सरकारें आखिर पीड़ितों की पीड़ा समझने में आनाकानी करती नजर आती है। देश के दिल के फेफड़े कब तक इस जहरीली हवा को अपने अंदर भरते रहेंगे ।तालाबों के शहर भोपाल में कब से पीड़ित लोग दुषितरहित साफ पानी पियेंगे। आखिरकार जब तक लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलेगी तब तक गैस राहत अस्पतालों में  पीड़ित लोगों की भीड़ की लाइन कम होती नजर नहीं आएगी। पूरे प्रदेश की  समस्याओं की गूँजने वाली आवाज में दशकों से पीड़ा झेलने वाले इलाके की आवाज कचरे के ढ़ेर में क्यों दबी रह जाती है।कई जीभ पलट नहीं पाती अनेकों मुखों की आवाज मुँह में रह जाती है।कई जमीन पर रेंगती घिसटती जिंदगियां तो कई वैसाखियों  के बल पर पीड़ा से भरा जीवन जीने को मजबूर हैं। ऐसी जिंदगियों  के साथ कर्तव्यपूर्ण सहयोग सेवा सुविधा न्याय करने में  समुदाय सत्ता शासन संसद सुप्रीम कहीं नजर नहीं आते।

लेखक
आनंद जोनवार

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