पंचायतों को मिले स्पेशल पॉवर

पंचायती राज शासन का विकेन्द्रीयकरण सुनिश्चित करने की एक व्यवस्था है । आजाद भारत में इसकी शुरुआत 24 अप्रैल 1993 से हुई ।वैसे भारत के प्राचीन इतिहास में पंचायत कीव्यवस्था थी ।संविधान के भाग 9 अनुसूची 11 अनुच्छेद 243 में त्रिस्तरीय पंचायत राज का उल्लेख है । जिस उद्देश्य के साथ इसकी शुरुआत की गई उसे पाने में आज भी पंचायते और सरकार फिसड्डी साबित हुई है ।इसमें ग्राम पंचायत ,ब्लॉक,जिला स्तरीय पंचायत शामिल है ।पंचायत उन शक्तियों का उपयोग कर सकती है जिन्हें राज्य विधानमंडल बनाएगा। इसलिए  पंचायत शासन व्यवस्था का हिस्सा होते हुए भी राज्य सरकार की वैसाखी के भरोसे  चलना पड़ता है । यदि पंचायतों के द्वारा ग्रामीण विकास को बुलेट रफ्तार से दौड़ाना हो तो उन्हें स्पेशल पॉवर देने की जरूरत है ।जिनमें बीमार स्वास्थ्य सेवाओं सुविधाओं का कारगर इलाज और नागरिकों की देखभाल ।स्वास्थ्य व्यवस्था और सेवाओं में सुधार करना है तो गांधी के ग्राम स्वराज के मॉडल को अपनाना होगा।ताकि हर गरीब तबके को सुविधाओं  का लाभ मिल सके। इसके अंतर्गत स्वास्थ्य सेवाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी और अधिकार पंचायती संस्थाओं को सशक्त बनाकर दी जा सकती है ।हमारे जीवन की गुणवत्ता के लिए हमारे स्वास्थ्य से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। स्वास्थ्य खराब रहने से सब कुछ मुश्किल हो जाता है ।काम पढ़ाई सफर फिरना खेलना दोस्ती मस्ती। स्कूल के बच्चों को अधिकतर वो पढ़ाया जाता है  जो उसके  व्यवहार के काम में नहीं आती ।मलेरिया से कैसे बचे या स्वास्थ्य कैसे रहे इस तरह की जानकारी नहीं दी जाती। दुनिया के कई देशों में स्वास्थ्य विधाओं को एक सार्वजनिक सेवा माना जाता है और स्वास्थ्य को हर नागरिक का अधिकार माना जाता है.
प्रत्येक पंचायत में बच्चों के जीवन को बेहतर सुरक्षित स्वस्थ्य बनाने के लिए ग्राम पंचायतों में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित कराने हेतु बाल पंचायत का गठन करने। प्रत्येक पंचायत में बच्चों के मुद्दों पर बात करने के लिए साल में दो बार ग्राम सभा की विशेष बैठक बुलाने ।और उनकी मांगों को शामिल  कर शासन से  निपटारे की जरूरत है। बाल श्रम हमारे बचपन को हमसे छीनने वाली एक बुराई है पंचायतों में बालमित्र ग्रामसभा बनाने की जरूरत है।  बाल श्रम ना हो इसकी रोकथाम के उपाय पंचायत को करने चाहिए ।बच्चों की जीवन शैली में पॉजिटिव बदलाव लाकर उन्हें कई तरह की परेशानियों से बचाया जा सकता है । बच्चो को क्षेत्रीय प्रोडक्शन एजुकेशन का दारोमदार पंचायत लेवल हो ना कि राज्य स्तरीय । आज भी कई बच्चे गुम हो जाते है जिनकी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हो पाती ।बच्चों की खरीद फरोख्त के अनेक मामले  पुलिस की मिलीभगत से  सरकार  की पहुँच से कोसों दूर  छूट जाते है । बच्चो में जागरूकता फैलाने, स्वास्थ्य स्वच्छ पानी सुरक्षा की जिम्मेदारी पंचायत स्तर पर सुनिश्चित करनी होगी ।

लेखक व चिंतक
आनंद जोनवार

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