विश्व विद्यालय और महाविद्दालय में राजनीति मैदान से ना हो नियुक्ति

वैसे तो हरेक को जीवन में  सहारा सहायता सेवा  समर्थन की जरूरत पड़ती है बात  टैलेंटेड की हो वो भी युवा के ,तो बाबा साहेब को मानने वाले युवाओं को बाबा साहेब की बात सदैव याद रखनी होंगी जिसमें उन्होंने कहा था युवाओं को राजनीति में आने से पहले अपना पूरा फोकस पढ़ाई पर केंद्रित करें। नेता बनकर भी छात्र समाज  कुर्ते के पिछलग्गू कोने को पकड़ा हुआ रहता है ।  पार्टियों के दोनों पलड़े एक समान है ।एक छिनने वाला और दूसरा ना देने वाला ।  इन शब्दों में छात्र समाज की सतायी और तबाही आवाज के सुर है ।  कुछ नए नए  नेता  छिटपुट भैया इंटरव्यू लेने को तैयार है।उन्हें क्यों नहीं ये बात समझ में आती  की पढ़ने वाला छात्र  को  पढ़ने दिया जाए ।भारत के वर्तमान उपराष्ट्रपति  भी यह बात कह चुके है कि शैक्षणिक संस्थाओं को राजनीति विघटनकारी विचारधारा से दूर रखना होगा । उनका कह देना ही पर्याप्त नहीं है ।उन्हें  और उनकी सरकार को इस बात पर अमल भी करना चाहिए और स्वयं इस  बात को संज्ञान में लाकर शैक्षणिक संस्थानों में नियंत्रित प्रशासनिक पदों पर नियुक्तियों को राजनीति के मैदानी मोड़ से हटाकर सिविल एग्जाम के मैदानी अधिकारी के हाथों में दे दिया जाना चाहिए । ताकि छात्र  समाज को पढ़ने लिखने  के एक  साफ स्वच्छ  प्रदूषितरहित प्लेटफार्म  पर खड़ा कर दिया जाए ।जहाँ धरने और प्रदर्शन  की जरूरत ही ना पडे ।
 छात्रों के नाम पर और छात्रों के द्वारा बूढ़े बूढ़े अपनी राजनीति चमका रहे है ।छात्रों को राजनीति नहीं रिसर्च पर फोकस करना चाहिए ।और राजनेताओं को भी छात्र राजनीति से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए ।जहाँ छात्र राजनीति होती है वहाँ राजनेता के बेटे बेटियां नहीं  पढ़ते हैं।आपका उद्देश्य वही है जो आप  मानते हैं ।आपका उद्देश्य वही है जो आप खुद को देते हैं ।आपके जीवन में ऐसा ही होगा जैसा आप इसे बनाएंगे और कोई भी इसका मूल्यांकन करने के लिए कभी खड़ा नहीं होगा।

लेखक व चिंतक 
आनंद जोनवार

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