अंडा परोसने में सरकारें कतराती है ?
सबसे पहले यह जानना जरूरी है किअंडे क्यों खिलाना चाहिए ।
कई बीमारियों का ताल्लुक आहार से होता है ।ऐसे में प्रोटीन युक्त संतुलित आहार देकर बच्चों को कुपोषित बीमारियों से बचाया जा सकता है । मिड डे मील में अंडे शामिल करने से बच्चों की उपस्थिति में इजाफा होता है। अंडे खिलाना अन्य खाद्य पदार्थो से सुरक्षित भी है।इसमें फूड प्वाइजनिंग जैसी समस्या नहीं होती ।अंडे बांटने में भी आसान होते है। और खराब होने के चांस नहीं होते। भारत में कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे अधिक है ।अंडा खाने से कुपोषित दूर होने के साथ साथ बच्चे का विकास भी होता है ।इससे बच्चे के स्वास्थ्य ,मानसिक और शारीरिक विकास में सहायता मिलती है। पिछले साल सरकारी संयुक्त समीक्षा मिशन कह चुका है कि हमारे देश में 40 प्रतिशत बच्चे खाली पेट स्कूल जाते हैं । मिड डे मील ही ऐसे बच्चों का पहला भोजन होता है ।इसलिये मिड डे मील को पौस्टिक और प्रोटीन युक्त सतुलित होना चाहिए । बच्चो के विकास के साथ साथ अंडे से पोल्ट्री रोजगार भी बढ़ता है । स्थानीय पंचायत ग्राम स्तर पर परिवार की स्थितियां मजबूत होगी ।लेकिन सरकारें बच्चों की थाली में अंडा परोसने में सिसकती ही नहीं हाथ भी पीछे खींच लेती है ।जो बच्चों के सतुलित खाने पर सोचने के लिए संकोच में डाल देती है।आखिरकार सरकार के हाथ पीछे खीचने की क्या वजह होती है।
" कहाँ अटक जाता है अंडा ,और किस क्लास का चलता है फंडा"
जब इस पर गहनता से सोचा तो अंडा भी राजनीति का शिकार निकला। वैसे तो अंडा वोट नहीं डालता लेकिन सरकार के वोटो पर प्रभाव डालता है। मशहूर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने अपने लेख कास्ट क्लास एंड एग्स में लिखा है अंडा खिलाने से परहेज करना जाति और वर्ग से भी ताल्लुक रखता है और उस पर पाबंदी लगने से एक तरह से जाति व्यवस्था मजबूत होती है जो ऐसी पाबंदी लगाता है खुद प्रीवीलेज्ड क्लास का होता है उसका फायदा इसी में होता है कि जाति व्यवस्था कायम रहे। मजबूत धार्मिक आस्था और प्रभावी वोट बैंक के चलते सरकार अंडे पर प्रतिबंध लगा देती है । कोई सरकार परोसने का प्रयास भी करें तो धार्मिक गुरु सांस्कृतिक संस्थाये सरकार के खिलाफ बच्चो की थाली में अंडा देने से सड़क पर विरोध प्रदर्शन कर सरकार पर दवाब बनाती ही और परोसने से रोकती भी है । अभी हाल ही में यह छत्तीसगढ़ राज्य में जैन और कबीर गुरुओं द्वारा वीरोध देखने को मिला ।भले ही बच्चे कुपोषित और अस्वस्थ बने रहे पर उनका धर्म भ्र्ष्ट ना हो। आखिर बच्चे के अंडे खाने से धर्म कैसे भ्रष्ट होते है ये तो वो ही अपने अपने तरीके वचनों से से बता सकते है ।यहाँ बच्चो की अपेक्षा वचन और धर्म महत्त्वपूर्ण हो जाता है । मानवीय धर्म को भुलाने वाले ये कौन से धर्म है।इसे बच्चो का भाग्य कहे या सरकार की पीड़ा कि आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद भी कुपोषण अपने पैर लगातार पसारते जा रहा है ।फिर चाहें बच्चो के मामा शिवराज की सरकार हो या फिर हाथ वाले कमलनाथ की । दोनों ने ही बच्चों की थाली में अंडा नहीं दिया ।पिछली सरकार ने धार्मिक गुरुओं के दवाब में तो वहीं वर्तमान सरकार ने बजट की कमी का बहाना बताकर मध्याह भोजन में अंडे की कटौती कर दी। और अंडे को योजना में अटका दिया।
सरकारों को कम से कम अंडा राजनीति से बच्चों के स्वास्थ्य को तो दूर रखना चाहिए।ये बात सरकार को वोट बैंक और धार्मिक गुरुओं को अपने प्रभावी वर्चस्व को भूलकर कमजोर कुपोषित बच्चो की हालत पर सोचकर रहम करना चाहिए। उन्हें सोचना होगा धर्म मानव के लिए बना है ना कि मानव धर्म के लिए। ये बात सरकार तक पहुँच वालो को सोचना चाहिए कि सरकार के हाथ अंडा परोसने से ना रोके और ना रुके ।और बच्चो की खातिर बुलंद आवाज कर सरकार के कानों को खड़ा करे।चूंकि बच्चे वोट बैंक का हिस्सा नहीं होते और सड़क पर आकर धरना प्रदर्शन कर पेट की खातिर अपनी मांगे नहीं मांग सकते। इसलिए सरकार से कमजोर बीमार कुपोषित बच्चों को थाली में अंडा परोसवाने की जिम्मेदारी कर्तव्य के साथ साथ सभी नागरिकों का उत्तरदायित्त्व बनता है ।तब जाकर कहीं कुपोषण कम होगा।
कहीं कहीं जगह पानी में दूध परोसकर दूध की सफेद ईमानदारी दिखाई जाती है। केंद्र की सत्ता का रास्ता जिस राज्य से होकर जाता है वहाँ तो नून रोटी खिलायी जाती है। मध्य प्रदेश की पिछली सरकार ने जैन संतों के दवाब में बच्चों की थाली में अंडे परोसने से अपने हाथ पीछे खींच लिए थे। 15 साल का वनवास काटकर आई हाथ की कांग्रेस सरकार धर्म के लफड़े में नहीं पड़ना चाहती इसलिए सरकार ने कम बजट का चालाकी से बहाना लगा दिया । वह नहीं चाहती किसी प्रकार के धार्मिक किच किच बाजी में पड़े। आज अंडा पूरी तरह से राजनीतिक हथकंडा बन गया है सदियों से मांसाहार शाकाहार समुदाय की गोलबंदी की जा रही है ।धार्मिक आस्था के नाम पर लोगों को अंधकूप में अंधमुँह धकेला जा रहा है। इसलिए कई राज्यों की स्कूल मिड डे मील से अंडा गायब है। भले ही शाकाहारी मतदाताओं की संख्या 21% है जिसे सरकार इनका ख्याल कर वोट पाने में कामयाब हो पाती है। कई फ़ूड डाइटिशियन के साथ सर्वोच्च न्यायालय भी मिड डे मील में अंडे देने की सिफारिश कर चुका है। लेकिन सरकार वोट खिसकने के चक्कर में बच्चों की थाली में अंडा नहीं परोसना चाहती।अंडा परोसकर सरकार किसी परेशानी में नहीं पड़ना चाहती।
मशहूर कवि केदारनाथ अग्रवाल की अंडे पे अंडा कविता उस समय की सरकार की ताकत आजमाइश पर एक व्यग्यं था।तब उन्होंने कहां सोचा होगा कि अंडा सचमुच राजनीति हथकंडा बन जाएगा। जो बना हुआ है।
लेखक व चिंतक
आनंद जोनवार
बहुत अच्छा
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