CAA का कम NPR और NRC का है मुख्य विरोध

नागरिकता संशोधन कानून 2019 भले ही सत्तापक्ष की निगाहों में नागरिकता छिनने वाला कानून नहीं है ।लेकिन जब से यह कानून संसद से पारित हुआ है लोग भारी तादाद में सड़कों पर आने लगे हैं।सड़क पर प्रदर्शन करने वाली जनता में ज्यादातर मुस्लिम हैं।ऐसा सत्ता  पक्ष की सरकार मानती है। सरकार का ऐसा मानना  है कि जनता में नागरिकता छीनने का भ्रम और अफवाहें विपक्ष द्वारा फैलाई जा रही है। इसी कारण गुमराह और भ्रमित होकर लोग सड़क पर प्रदर्शन कर रहे हैं प्रदर्शनों में कहीं-कहीं पुलिस की बर्बरता भी सामने आई। युवाओं की शक्ति वाले भारत में कई जगह  छात्र-छात्राओं को पुलिस के डंडों का शिकार भी होना पड़ा। कई निजी चैनलों का मानना है कि पुलिस जिस तरह डंडों का उपयोग कर रही है वह न्यायसंगत और सुरक्षात्मक की अपेक्षा  योजनात्मक अधिक लग रहा है। सड़क के कोने से गूंजती महिलाओं  ,युवा छात्र -छात्राओं और युवकों की आवाज ठंड में शीतलहर की तरह फैल रही है। जिसमें सरकार की दम घुट रही है। सरकार  इस विरोधी आवाज के विरोध में जन जागरूकता अभियान चला रही है जो प्रदर्शन के बिल्कुल विपरीत है। डोर टू डोर लोगों को समझाने का प्रयास किया जा रहा है । सड़क पर प्रदर्शन घर पर समझाइश ।घर पर समझाइश सरकार के लिए कहाँ तक उचित है ।समर्थन और विरोध की परस्पर टकराती इस राजनीति के बीच आंदोलन के जो मूल मुद्दे हैं- वे या तो खो गए हैं या फिर लगभग अप्रासंगिक हो चले हैं।सरकार कहती है- और ठीक ही कहती है- कि नागरिकता संशोधन क़ानून से किसी भारतीय की नागरिकता नहीं जाएगी और एनआरसी- यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को असम के बाहर लागू करने का अभी कोई प्रस्ताव नहीं है।
सरकार को सड़क पर आकर प्रदर्शनकारियों को  समझाना होगा । सरकार को उनसे रूबरू होना चाहिए। सरकार प्रदर्शन का भले ही  विरोधी पार्टियों पर आरोप लगा रही है लेकिन लोगों का सड़क पर जमावटा स्वतः स्फूर्ति है इसका नेतृत्व कोई नेता ना होकर  जनता स्वयं में है। स्वतः स्फूर्ति से सड़क पर कानून वापस लेने की जनता की आवाज सरकार की तरह ही अपने कदम वापस नहीं खींच रही । सरकार और जनता दोनों टस से मस नहीं हो रही है ।सरकार दावा  कर रही है कि CAA कानून किसी  की भी नागरिकता नहीं छीनेगा । लेकिन सरकार को यह भ्रम है कि जनता सी ए  ए का विरोध कर रही है। वैसे तो संसद में तीखी बहस के बाद CAB  पारित हुआ लेकिन बहुमत होने के कारण इन बहसों का कोई औचित्य नहीं रहा । संसद द्वारा मौलिक और मानव अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।इंटरनेशनल ह्यूमन राइट कमीशन को साइन करने वाले दुनिया के किसी भी देश की संसद को यह अधिकार नहीं है कि वह मानव अधिकारों का उल्लंघन कर ऐसा कोई कानून बनाये जो मानव अधिकारों के खिलाफ हो संविधान के अनुसार संसद को कानून और नागरिकता कानून बनाना का अधिकार है  लेकिन मूलभूत अधिकारों के उल्लंघन के बिना ।  नागरिकता संशोधन कानून 2019 अफगानिस्तान ,पाकिस्तान बांग्लादेश से धार्मिक आधार पर पीड़ित  6 धर्मों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देगा क्योंकि इन धर्मों के लोग इन देशों में पीड़ित हैं। उन्हें यहां की पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए भारत में नागरिकता दी जाएगी मुस्लिम धर्म को इसमें शामिल इसलिए नहीं किया गया क्योंकि मुस्लिम धर्म पहले से ही  हैं ।मौलिक अधिकार के अंतर्गत धार्मिक आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा वहीं मानव अधिकार कहता है किसी भी मानव के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा ।यहाँ मानव और नागरिक दोनों शब्दों में अंतर है किसी भी देश में उसके नागरिको को वे अधिकार प्रदत्त होते हैं जो देश के संविधान द्वारा दिए जाते हैं ।इनमें संवैधानिक अधिकार और मौलिक अधिकारों को  सम्मिलित किया जाता है । नागरिक की नागरिकता संवैधानिक अधिकार है मौलिक अधिकार नहीं ।  मानवाधिकार नागरिकता को नहीं रोकता ना ही  किसी देश की नागरिकता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर सकता है जब लोगों की   नागरिकता चली जाएगी तो मानव अधिकार तो मिलते रहेंगे मौलिक अधिकार और संवैधानिक अधिकार  नहीं है ।जनता  (सीएए) CAA का विरोध नहीं कर रही है।वह  एन पी आर और  एन आर सी का विरोध कर रही है CAA  की तरफ इसलिए ध्यान भटकाया  जा रहा है ताकि  एनपीआर और NRC से ध्यान  हटाया जाए क्योंकि  NPR और NRC को संविधान संशोधन द्वारा मनमोहन  सरकार लेकर आई थी। NPR और NRC पर सत्ता पक्ष अलग-अलग बयानबाजी कर रही है लेकिन बिना किसी कमेटी की जांच अनुशंसा और सहमति के धड़ल्ले से पारित कानून लोगों को संशय की स्थिति में डाल रहे हैं ।संसद में विशेषाधिकार के चलते दोनों पर बयानबाजी हो  चुकी है । NPR और NRC के चलते CAA के तहत करोड़ो अशिक्षित ,भूमिहीन,माइग्रेट, आदिवासी ,मजदूर ,प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित जनता में  नागरिकता खोने का डर है।इसमें अकेले मुस्लिम ही नहीं है ।करोड़ो हिन्दू और बौद्ध जैन सिख के साथ आदिवासी भी है ।NPR और NRC जिनमें उनसे दस्तावेज मांगे जाएंगे । दस्तावेज की अनुपलब्धता में नागरिकता  नहीं मिल पाएगी ।इसमें आप के दादा दादी नाना नानी भी हो सकते है । लेकिन नागरिकता संशोधन कानून देने वाले 6 धर्मो से यदि ये हुए तो नागरिकता मिलने में कामयाब  हो जायेगे ।इन धर्मो के अलावा जो भी होगा वह अपनी  नागरिकता खो देंगा।फिर चाहे वो नास्तिक ,अशिक्षित ,भूमिहीन  मजदूर ,माइग्रेट ,प्राकृतिक आपदा से प्रभावित भारतीय भी हो । सड़क से NPR और NRC को लेकर गजट में प्रकाशित करने की मांग उठ ही रही थी ।कि सरकार ने  सीएए को  गजट में प्रकाशित कर दिया लेकिन NPR और NRC संबधी किसी भी बात बयान चर्चा को प्रकाशित नहीं किया ।
CAA का ये विरोधाभाषी  कानून मानव अधिकार और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के चलते नहीं टिक पाएगा क्योंकि बहुत से लोग किसी भी प्रकार के धर्म पर विश्वास नहीं करते बहुत से ऐसे धर्म भी है जो इन 6 धर्मों के और मुस्लिम धर्म के अलावा भी हैं। यदि सत्ता पक्ष जनता के प्रदर्शन से छुटकारा पाकर और भरोसा फिर कायम करना चाहती है तो NPR  और NRC  को गजट में प्रकाशित कर  ये लिखे की भारत के नागरिक से किसी प्रकार के डॉक्यूमेंट नहीं मांगे जाएंगे।या फिर CAA को वापस ले ।यदि वास्तव में CAA और  करोड़ो धार्मिक भारतीय नागरिकों  के प्रति  सरकार की मंशा  स्पष्ट हो।
 नागरिकता और NPR को लेकर सरकारें हर दशक में इसलिए मुद्दा बनाती है ताकि जाति आधारित जनगणना की ओर जनता का ध्यान ना जाए।हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा द्वारा पारित जाति आधारित जनगणना बिल भारत के इतिहास में  अपनेआप में पहला सुनहरा कदम होगा । जो केंद्र  सरकार के लिए सबक का केंद्र बिंदु होगा।कांग्रेस शासित राज्य जातिगत जनगणना कानून को अपनी  अपनी विधानसभाओं से पारित कर  3 दिसम्बर 2004 को  संविधान संशोधन कर (NPR) नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर लाकर जो ऐतिहासिक भूल की उसे सुधारने का जोखिम भरा प्रयास करेंगी । महाराष्ट्र के बाद अब मध्यप्रदेश ,राजस्थान ,छत्तीसगढ़ में ये देखने को जल्द ही मिलेगा ।
 52 प्रतिशत से अधिक (OBC)अन्य पिछड़ा वर्ग की सरकारी दफ्तरों ,उच्च अधिकारियों में स्थिति ,सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में बच्चों की हालत ,भूमिहीन और उद्द्योग जगत में जाति आधारित भेदभाव की स्थिति स्पष्ट हो पाएगी ।  सरकार को जाति आधारित जनगणना के आधार पर  विकास योजना बनाने में सहूलियत भी होगी  और परेशानी भी। इस से स्पष्ट होगा 70 सालों में देश की मलाई किस जाति वर्ग ने अधिक खायी। किस जाति का सामाजिक आर्थिक स्तर क्या है ।ये आंकड़ा देश देश चिल्लाने वाले देशभक्तो के सामने सरकार को लाना चाहिए ।तभी  सरकार देश भक्त सरकार कहलाएगी ।आज भी 55 प्रतिशत भूमिहीन लोग है ।50 प्रतिशत जनता देशभक्ति के नारों के साथ अपनी स्थिति पर भी गौर कर पायेगी । सरकारें  जातिगत जनगणना से ध्यान हटाने के चलते नागरिकता कानून और NPR जैसे मुद्दें ढूंढ कर लाती है । 52 प्रतिशत से अधिक  OBC जनता को सोचना होगा कि उसे आरक्षण 27 प्रतिशत ही क्यों मिल पाया ।
CAA माइग्रेशन से अन्तर्गमन पापुलेशन को बढ़ावा मिलेगा जिससे एक विशेष क्षेत्र में संसाधनों का दोहन बढेगा जिससे वहां पहले से  मौजूद नागरिकों को समस्या आ सकती है ।वो भी ऐसे दौर में जब हमारे देश के युवा खुद  बेरोजगार  है ।जो अपने आप में जिंदगी और देश की सबसे बड़ी पीड़ा  है । भूख भेदभाव  शिक्षा आर्थिक  सुधार स्तर पर हम पहले ही अपने पड़ोसी  मुस्लिम मुल्को से पीछे है।।

लेखक व चिंतक 
आनंद जोनवार

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