अवसरों पर टिकी है सम्मान सुरक्षा और अधिकार

अतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सभी देशवासियों को शुभकामनाएं।
आजादी के आठवें दशक में असभ्य समाज को सभ्य समाज बनकर महिलाओं की प्रगति के लिए  सभी रास्ते प्रदत्त करने होंगे।सामाजिक शैक्षिणिक राजनीतिक आर्थिक मार्ग में कहीं कोसों दूर पिछड़ी  महिलाओं को आगे आने का अवसर देना होगा। ये अवसर समाज को मन बुध्दि व्यवस्था से देने चाहिए ।ताकि घर में कोल्हू के बेल की मानिद पर खटकती महिला रसोई में बेलन चलाने को छोड़कर सरकार चलाए और व्यवस्था में अपनी हिस्सेदारी दर्ज करें। जो कहते है आज महिला पुरुष बराबर है वो समाज में महिलाओं को गुमराह कर रहे है ।क्योंकि देश में 32 मुख्य सचिवों में से केवल 1 महिला है ,केंद्रीय सरकार में 88 सचिव रैंक के अधिकारियों में से केवल 11 महिलाएं है।।न्यायपालिका में सत्तर सालों के सम्पूर्ण इतिहास में सुप्रीम कोर्ट में केवल 8 महिला जस्टिस अभी तक बन पाई है ।देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों की संख्या  73 है जो 11 परशेंट  से भी कम है।केंद्र की मोदी सरकार में महिला मंत्रियो की संख्या 58 में से 6 है । मध्यप्रदेश राज्य सरकार में  28 मंत्रियो में से महिला मंत्रियो की संख्या केवल 2 है ।जो महिलाओं की बहुत नाजुक स्थिति को दर्शाता है।पूरे देश की आवाज गूँजने वाले संसद सदन में महिला सांसदों की संख्या 78है ।दहाई के आंकड़े में फंसी महिला संसद कैसे आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व कर सकती है।महिलाओं को सोचना होगा ,और अपने वोट की ताकत पहचान कर ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को  संसद में पहुँचने का मौका दे ।सरकार को जेंडर इक्वलिटी अधिकार के तहत महिलाओं को हर शासन व्यवस्था में ,नौकरियों में पुरुषों के बराबर मौका मिले ।ताकि सभी के जीवन में उजाला करने वाली  नारी अपने जीवन में भी उजाला कर सकें।शाहीनबाग उदाहरण है उस आवाज का  जो दब जाया करती है घर के किसी कोने  में पल्लू का एक छोर दबाए ।असभ्य समाज के लोग इस आवाज को चार दिवारी में ही  दफना देना चाहते है ।वरना दिवस बनाने की जरूरत ही ना पड़े । आस्था के नाम पर सदियों से धर्म की आड़ में इनका मानसिक शोषण होता चला आ रहा है।सफेद लाल पोशाकों ने इन्हें इस चंगुल से निकलने ही नहीं दिया ।महिलाओं को आस्था की झूठी जंजीरो को तोड़कर विज्ञान के घर आकर ऐसा सभ्य विकसित सोच के घर का निर्माण करना होगा जहां वो सम्मान के साथ सुरक्षित समान व्यवहार अधिकार में अपना जीवन खुशहाल से बिता सके । सरकार प्रशासन को भी महिलाओं के चहुँमुखी विकास के लिए योजनाओ के साथ साथ महिलाओं को सुरक्षित मौके  प्रदान करने चाहिए।ग्रेट लीडर एशिया का पैग़म्बर,सुकरात पेरियार ,महात्मा फुले ,सावित्री फुले , आधुनिक भारत के राष्ट्रपिता डॉ बाबा साहेब अंबेडकर ,बापू महात्मा गांधी ,दयानंद सरस्वती ने महिलाओं के हक अधिकार की अनेक लड़ाईया लड़ी है।डॉ अम्बेडकर  ने तो यहाँ तक कह दिया कि किसी देश के विकास का पैमाना महिलाओं के विकास उनके जीवन स्तर से तय होना चाहिए।

लेखक 
आनंद वाणी (असिस्टेंट प्रोफेसर)
वरिष्ठ उपसंपादक 
दैनिक भास्कर 

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