नेताओं का सामूहिक रखरखाव अपराध की श्रेणी में आए
निर्वाचित प्रतिनिधियों को विशेष जगह रखना
अपराध क्यों नहीं?
सत्ता कुर्सी के लिए जब राजनीतिक दलों में उठापटक होती है तब जनता द्वारा निर्वाचित सदस्यों को बिभिन्न दल बंधक बना लेता है ।या यूं कहे उन्हें कहीं रिसोर्ट या दूसरे राज्य में ले जाया जाता है ।इन्हें यहाँ इतनी गोपनीयता के साथ ले जाता है कि कभी कभी पता भी नहीं पड़ता ।मीडिया स्रोतों से इनकी गोपनीयता भंग हो जाती है।और इनकी बंधक स्थिति उजागर हो जाती है ।परिन्दों की तरह इनकी आवाजाही बनी रहती है ।अपारदर्शी कांच के चार्टेट प्लेन और चारपहिये के वाहनों में यहां तक पता नहीं चल पाता कि सफेदी पहना कौन सा नेता इसमें मौजूद है । कभी कभी तो ये उठापटक इतनी गोपनीय हो जाती है कि सदस्यों के चाहने वाले उनके अपने घर वालों तक पता नहीं होता जैसा हाल ही में मध्यप्रदेश में हुआ ।घर वालों को इनकी जानकारी ना होना, क्या इस गोपनीयता को बंधक अपहरण समझकर कानून के कठघरे में खड़ा नहीं करती ।लाखों लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करता प्रतिनिधि की आवाज गले में ही दबा दी जाती है ।उसको रिसोर्ट में बंद कर उसके साथ कैदी की तरह व्यवहार किया जाता है।रिसोर्ट में उनसे किसी को मिलने नहीं दिया जाता जबकि रिसोर्ट एक सार्वजनिक संपत्ति होती है।उनकी सीसीटीवी कैमरों जैमर के बीच निगरानी चाक चौबंद देखरेख क्या उनकी निजता के साथ उनके अपने ही बिरादरी के शीर्षस्थ नेताओं के द्वारा की जा रही खिलवाड़ नहीं है।भले ही कहा जाता है कि राजनीति में सब कुछ जायज है पर जायज इतना कितना उचित है कि निजता का ही उलंघ्घन हो । जबकि नेता से पहले ये भारतीय नागरिक है ।और भारतीय नागरिक होने के नाते संविधान ऐसा किसी को करने की इजाजत नहीं देता ।वहीं विरोधी नेताओं को उस रिसोर्ट में न घुसने देना मौलिक अधिकार का हनन है।यह सब सत्ता की खातिर व कुर्सी के लालच में एक तानाशाह दूसरे तानाशाह का कर रहा है जिसमें निजता ,सार्वजनिक जगह जैसे मौलिक अधिकारों के साथ पुलिस की अनदेखी और अपहरण जैसे कानूनों को ताक पर रख दिया जाता है।या फिर इनके सामूहिक बंधीकरण को इसलिए छूट, इज्जत और मीडिया पहिचान दी जाती है कि ये सरकार चलाते है ।सत्ताधारियों की स्मार्ट किडनैपिंग को इतनी छूट देना जनता ,कानून के साथ धोखा है । बदलते दौर के साथ इस पर सवालियां निशान छोड़ना चाहिए ताकि देश ख़रीद फ़रोख की राजनीति से छुटकारे के साथ साफ स्वच्छ पॉलिटिक्स और स्वस्थ जीवित लोकतंत्र को मजबूती मिल सके ।आपको अपने निर्वाचित सदस्य पर भरोसा नहीं है तो उसे दल बदल कानून के अंतर्गत बाहर का रास्ता दिखाए।एक देश एक चुनाव की बात करने वाले लोगों का चुनाव में अधिक धन खर्च का तर्क इस कसौटी पर कितना खरा उतरता है जिसका आप इस बात से अंदाजा लगा सकते है क्या ऐसी परिस्थितियों में यह संभव हो पाएगा। जबकि खरीद फ़रोख ,आवाजाही,में अरबों रुपए चट हो जाते है। इस पर कानूनविद और देश के शुभचिन्तकों को विचार करना चाहिए।और तकनीक के दौर में हरेक सदस्य की उपस्थिती सदन में सुनिश्चित करनी चाहिए । ग्रुप किडनैप की इजाजत मीडिया खबरों के लिए सत्ता लालचों को यूं ही नहीं दी जानी चाहिए।
लेखक व चिंतक
आनंद जोनवार
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