हौसलों व विचारों की आंधी -कांशीराम
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का सच्चा उत्तराधिकारी
दलित उभार की राजनीति का चेहरा
बामसेफ ,डी एस4 ,बसपा के संस्थापक
बसपा के साहेब
हरेक राज्य में चाहते थे क्षेत्रीय मुलायम सिंह
उत्प्रेरक महापुरुषों के को-एंजाइम
राजनीतिक सत्ता से
चाहते सामाजिक आर्थिक समानता
बहुजनों की सोशल डिपेंडेंसी का हो अंत
बहुजनों को आत्मसम्मान आत्मनिर्भर स्वाभिमान से जीना सिखाया
बाबा साहब की "पॉलिटिक्स की" है मान्यवर की" मास्टर की "
हौसलों और विचारों की आंधी कांशीराम
कार्य करो जैसा जिससे बहुजनों का बढे हौसला
गठबंधन के बजाय समझौते पर करते विश्वास
डॉ मनमोहन सिंह ने कांशीराम को हमारे समय की राजनीति का प्रबल प्रखर राजनितिज्ञ और सामाजिक विचारक कहा
मान्यवर कांशीराम का जन्म पंजाब प्रांत के रोपड़ जिले के गांव ख़्वासपुर जन्मस्थान पिरथीपुर तोंगा- बोंगा साहब में रामदसिया जाति में 15 मार्च 1934 को हुआ ।उनकी जयंती पर पूरा बहुजन समाज उन्हें दिल से नमन करता है ।उनके पिताजी का नाम हरि सिंह तथा माताजी का नाम बिशन कौर था ।
कांशीराम एक सामाजिक आंधी जिसने बीएसपी से भारतीय समाज के वट वृक्ष को झकझोर दिया । कांशीराम ने कक्षा 4 तक कि पढ़ाई सरकारी प्राइमरी स्कूल मलकपुर से की जो उनके गांव से दो किलोमीटर की दूरी पर था। पांच से आठवीं तक इस्लामिया स्कूल रोपड़,9 से 10 डीबीए पब्लिक स्कूल तथा1956में ग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज रोपड़ से पूरी की । तत्पश्चात 1957 में सर्वे ऑफ इंडिया की परीक्षा पास की जिसे प्रशिक्षण के दौरान बांड भरने को लेकर नौकरी छोड़ दी । इसके बाद पूना के रक्षा विज्ञान एवं अनुसंधान विकास संस्थान की एक्सप्लोसिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैबोरेट्री में अनुसंधान सहायक के पद पर कार्यरत हो गए। पूना की रक्षा अनुसंधान संस्थान ने बुद्ध जयंती और अंबेडकर जयंती की दो अवकाश को समाप्त कर, प्रशासन ने एक अवकाश दिवाली में ऐड कर दिया और अंबेडकर जयंती के स्थान पर तिलक जयंती की छुट्टी घोषित कर दी ।जिसका विरोध प्रयोगशाला की वर्क्स कमेटी के 1 अनुसूचित जाति के कर्मचारी दीनाभाना ने किया जो राजस्थान का रहने वाला था ।जिसके कारण उसे निलंबित कर दिया । इस घटना ने कांशीराम को झकझोर कर रख दिया। कानूनी मदद के लिए कांशीराम मामले को न्यायालय में ले गए जिसमें उनकी जीत हुई और छुट्टी भी घोषित हुई। इस लड़ाई को जीतने के बाद कांशीराम ने बाबा साहब की लिखी कई किताबों का अध्ययन किया और उनके संघर्ष को समझा और यही से कांशीराम ने भारतीय समाज की जातिवादी संरचना ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था को नष्ट कर बहुजन समाज की मुक्ति को अपने जीवन का ध्येय व लक्ष्य बना लिया । डी के खापर्डे ने काशीराम को अम्बेडकर की बुक एनिहिलेशन ऑफ कास्ट दी। जिससे प्रभावित होकर कांशीराम समझ गए कि जातिवाद ही सामाजिक व्यवस्था की सभी बुराइयों की जड़ है । इससे उनके विचारों में चट्टानी द्रढ़ता और संकल्पों में अडिगता आ गई । उन्होंने ब्रिटिश गेल ओम्बेट की कल्चरल रिवोल्ट इन कोलोनियल इंडिया बुक को गहनता से पढ़ने के बाद गुरुग्रंथ साहब भी पढ़ें। इन सब से प्रभावित होकर 1964 में मां को 24 पृष्ठ का एक लंबा पत्र लिखा इस पत्र में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त करते हुए कई घोषणाएं लिखी जिनमें बहुजन समाज ही मेरा परिवार है,घर वालों के लिए मैं मर चुका हूं,मैं घर के किसी भी प्रोग्राम में शरीक नहीं होऊंगा।लिखकर भेजा। 1963 में कांशीराम अपने पिता के देहांत में भी नहीं गए।
6 दिसंबर 1978 को कांशीराम ने अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय के कर्मचारियों को संगठित किया और बामसेफ नामक गैर राजनीतिक संगठन की स्थापना की। और इसका प्रसार करने में आशातीत सफलता मिली। इससे उन्होंने शिक्षित और जागृत वर्ग का राष्ट्रीय संगठन बनाया। बामसेफ ही वह संगठन है जिसने वो जमीन तैयार की जिस पर आज बीएसपी की फसल खड़ी है। बामसेफ ही बसपा का ब्रेन बैंक , टैलेंट बैंक, आर्थिक बैंक है । कांशीराम ने राजनीतिक शक्ति का निर्माण तथा परंपरागत दासता के विरुद्ध 6 दिसम्बर 1981 को दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डी एस फोर) गैर राजनीतिक संगठन बनाया । मान्यवर साहब ने बहुजनों में चेतना जागृत करने के लिए देश व्यापी तथा देश के हर कोने में सभाएं यात्राएं की ।इन सौ दिनों की यात्रा सभाओं से (6/12/1983-15/3/1984) कार्यक्रम में तीन लाख लोगों ने हिस्सा लिया।डी एस4 ने सरकार को शराब बंदी, दलित बस्तियों से शराब के ठेके हटाने के लिए विवश किया। तथा बामसेफ ,डी एस4 के द्वारा बहुजन चेतना के विस्तार को राजनीतिक संघर्ष से जोड़ने, बहुजन समाज को राजसत्ता पर काबिज करने के लिए काशीराम ने 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। मान्यवर ने बसपा के विस्तार के लिए सामाजिक न्याय से ज्यादा सामाजिक अन्याय को महत्त्वपूर्ण माना था ।
कांशीराम पूंजीवाद समाजवाद मार्क्सवाद साम्यवाद गांधीवाद का भारतीय समाज में कोई महत्व नहीं है ना वो इसके लिए है ।उनके अनुसार देश में पसरी समस्त सामाजिक राजनीतिक समस्याओं के लिए ब्राह्मणवाद दोषी है, और दुनिया के सारे वाद यहां आकर उसमें विलीन हो जाते हैं। इसलिए कांशीराम ने डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसवाद की तर्ज पर गैर ब्राह्मणवाद को अपना राजनैतिक मिशन बनाया है।
कांशीराम भारतीय समाज को दो हिस्सों में देखते हैं एक अल्पजन जिसमें सर्वण हैं दूसरा बहुजन जिसमें दलित पिछड़े अल्पसंख्यक आते हैं।
कांशीराम छुटपुट सरकारी सुविधा और आरक्षण को सिर्फ झुनझुना समझते थे इसी आधार पर वे गांधीवाद का विरोध करते थे । गांधीवाद को कांशीराम ब्राह्मणवाद का दूसरा रूप मानते हैं उनके अनुसार यह हिंदू धर्म के पुराने सिद्धान्तों का नवीन संस्करण ।
कांशीराम का एक ही नारा है बहुजन समाज को राजसत्ता पर नियंत्रण
कांशीराम का एक ही नारा है बहुजन समाज को राजसत्ता पर नियंत्रण चाहिए इसलिए बीएसपी चुनावों में कोई घोषणा पत्र भी जारी नहीं करती। बीएसपी ने सामाजिक परिवर्तन के पांच लक्ष्य निर्धारित किये है, आत्म सम्मान के लिए संघर्ष, मुक्ति के लिए संघर्ष ,समानता के लिए संघर्ष ,जाति प्रथा के उन्मूलन और विभाजित समाज में भाई-चारे के लिए संघर्ष ,छुआछूत अन्याय और अत्याचार और आतंक के विरुद्ध संघर्ष। वो मानते थे बिना राजसत्ता पर नियंत्रण पाए सामाजिक बदलाव संभव नहीं है।
संवैधानिक तरीकों से व्यवस्था परिवर्तन
साहब संविधान और संसदीय लोकतंत्र पर पूरा विश्वास करते थे ,उन्हें संविधानवादी क्रांतिकारी की संज्ञा दी जा सकती है, जो संवैधानिक तरीकों से व्यवस्था परिवर्तन करना चाहते थे।
जब वे बहुजन समाज को एक वोट और एक नोट देकर संगठन को मजबूत करने की अपील कर रहे थे ,तो वे राजनैतिक फ्रंट जीतने के लिए आर्थिक फ्रंट की जरूरत को रेखांकित कर रहे थे। संगठन चलाने के लिए कर्मचारी संगठनों को " पे बैक टू द सोसाइटी "का मंत्र दिया। शुरुआती दौर में ही इस संगठन को नेस्तनाबूद करने के लिए कवायद हुई तथा विरोधियों ने इसकी जमकर खिल्ली उड़ाई, आलोचना हुई, लांछन लगाए ,पार्टी फंड पर सरकार ने लगाम कसी ।किंतु सभी बाधाओं को पार कर मान्यवर पार्टी को एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने में कामयाब हुए । जिसका समर्थन पाने के लिए सारी पार्टियां इसका मुँह जोहने लगी ।
मान्यवर इस बात से मुतमईन थे कि बिना राजनीतिक सत्ता प्राप्त किए सामाजिक परिवर्तन की गति में सकारात्मक तेजी नहीं लाई जा सकती। सामाजिक संगठन अपनी जगह काम करते हुए राजनीतिक सत्ता प्राप्ति हेतु खाद पानी बनकर ऊर्जा देते रहें। उनका मानना था कि सामाजिक संगठन जागरूकता पैदा कर सकते हैं किंतु इस जागरूकता को ट्रांसफर करके सत्ता प्राप्ति और उस सत्ता के जरिए आर्थिक विकास तदोपरांत सामाजिक उत्थान किया जाना ही क्रमवार और समयानुकुल तरीका है।
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या कांड के बाद कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने समझौता कर सपा बसपा गठबंधन स्थापित किया और दलित पिछड़ा अल्पसंख्यक समीकरण की सरकार का गठन किया। उन्होंने महात्मा फुले ,डॉक्टर अंबेडकर के चिंतन के कारवां को आगे बढ़ाया । कांशीराम के सामाजिक दबाव का परिणाम ही है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह को मंडल आयोग की सिफारिश लागू करनी पड़ी ।
मजबूत नहीं मजबूर सरकार चाहिए
उन्होंने गरीब के मन में स्वाभिमान और सम्मान का जज्बा जगाया और इसे ही लड़ाई का मुद्दा बनाया । जाति को समाप्त करने के नारों के बजाय जातीय स्वाभिमान जगाने का काम कांशीराम की व्यवहारिक तथा अनुभवी सोच का नतीजा है। मान्यवर ने ऐतिहासिक महापुरुषों को उत्प्रेरक की भांति इस्तेमाल करके लोगों को वोट की कीमत समझाई। तथा हजार खानों में बंटी बहुजन जातियों को एक माला में पिरोकर एक साथ लेकर चले। जिससे जलती सामंतवादी ताकतें इस बात को लगातार हवा दे रही थी इस संगठन में कुछ खास जातियों का बोलबाला है, हालांकि अब इस विरोधी आवाज को मायावती ने पार्टी में सवर्ण को पद देकर शांत कर दिया ।लेकिन शुरुआत में इन चुनौतियों का सामना करने के लिए साहब का निर्विवादित निर्लिप्त और भेदभाव विहीन विद्वान व्यक्तित्व ही था, जो बहुजनों को एकता के सूत्र में बांधे रखा ।बहुजनों के हितों को ध्यान में रखकर इनके वोटों की कीमत मजबूर सरकार से वसूली जा सके जब हम अपनी सरकार बनाने की स्थिति में ना हो तब उन्होंने नारा दिया मजबूत नहीं मजबूर सरकार चाहिए और इसी नारे के साथ अपना एजेंडा लागू करवाया। वे व्यक्तिगत रूप से सत्ता के मोह और शक्ति के लालच से ऊपर थे तभी उन्होंने भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से आए राष्ट्रपति के उम्मीदवार का प्रस्ताव ठुकरा दिया ।कांशीराम ने अपना पूरा जीवन दलितों पिछड़ों के उत्थान के लिए समर्पित किया।
उन्होंने बाबा साहब द्वारा व्यक्त दुख को महसूस किया जिसमें भारतीय संविधान द्वारा राजनीतिक समानता दिए जाने और सामाजिक असमानता बरकरार रहने के विरोधाभास का जिक्र किया । इसे मिटाने का तरीका भी बाबा साहब द्वारा ही "सत्ता सभी तालों की कुंजी है" कहकर दिया जिसे कांशीराम पूरी तरह आत्मसात कर इस" मास्टर की" को पाने की कोशिश में लगे रहे और ऐसा हुआ भी मान्यवर की सूझबूझ ,त्याग, मेहनत, लगन से बहुजन समाज को सम्मान स्वाभिमान और गौरवमयी रास्ता प्रदत्त किया । और कहा जिन लोगों के पास गैर राजनैतिक जड़े नहीं होती वे लोग राजनीति प्रभुत्व प्राप्त नहीं कर सकते। संविधान सभा में बाबा साहेब ने कहा हम आर्थिक असमानता लाने में असफल रहे बल्कि राजनीतिक समानता भी हम से मुंह चुरा रही है। हर पीढ़ी का नैतिक कर्तव्य है कि वह उसमें सुधार करे जो कुछ उसे अपनी पहली की पीढ़ी से मिला है तथा आने वाली पीढ़ी के लिए वह कुछ ऐसा छोड़े ,जिस पर आने वाली भविष्य की पीढ़ी अपने पूर्व की पीढ़ी पर गर्व करें। हमेशा ऐसा कार्य करें जिससे हमारे समाज का हौसला बढे। हमारे समाज की दयनीय स्थिति का प्रमुख और मूल कारण निर्भरता है ।जो संसाधनों के अभाव और कमजोर आर्थिक हालात के कारण है । समाज में जब तक निर्भरता खत्म नहीं होगी तब तक सामाजिक असमानता अन्याय होता रहेगा। उन्होंने कहा था
"वी आर डिपेंडेंट इन इंडिपेंडेंट इंडिया"। उन्होंने सत्ता नियंत्रण से एक विकलांग समाज को स्वस्थ समाज में बदलने की कोशिश की।
आनंद जोनवार
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