लॉक डाउन 2 -गलती सबक और सुधार जरूरी

गलतियां छिपाकर जीत हासिल हो जाएंगी मगर क्या स्थाई कामयाबी मिलेंगी!

 भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सलाहकारों की सुझावीय अनुशंसा पर  21 दिन के लॉकडाउन को बढ़ाकर 3मई कर दिया है ।जो कोरोना महामारी से बचने का एक प्रथम स्टेप है ।मंगलवार सुबह देश के नाम संबोधन में पीएम मोदी  ने उन गलतियों को सुधारने का प्रयास किया जो पहले लॉक डाउन में हुई।और उन पीड़ित  गरीबों ,मजूरों  का हिमायती बनने का प्रयास किया जबकि मोदी जी को पहले चरण में इनका बिल्कुल ख्याल नहीं आया ।उनकी एक बात पर और प्रश्न चिह्न लगना चाहिए जो उन्होंने संबोधन में कही की हमने स्क्रीनिंग बहुत पहले कर दी थी । मोदी जी देश को इसके साथ यह  भी बता  देते की राष्ट्रीय मेडिकल इमरजेंसी ने आपसे सतर्क रहने का कब कहा था और आप कब जागे मैं यहां एक सवाल और बता देता हूं कि स्क्रीनिंग और मेडिकल एग्जामिनेशन में अंतर होता है ।इस अंतर की अहमियत और जागरूकता तब ओर बढ़ जाती है जब किसी रोग के लक्षण छिपे होते है जबकी कीटाणु शरीर के अंदर हो और लक्षण दिखाई नहीं दे रहे ।इस समय मात्र थर्मल स्क्रीनिग किसी काम की नहीं रहती जबकि वह बाहरी व्यक्ति  उस जगह से आया हो जिस जगह पर डिसीज़ एपिडेमिक हो ।साथ में उस मेडिकल चेतावनी का जिक्र करते हुए जमातियों के जमाव पर सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी पर प्रकाश डालते ,हालांकि उन लाखों मजदूरों से माफी मांग ली जब वे इस महामारी में
सड़को पर भूखे प्यासे बिलखते हुए चल पड़े थे ।माफी और सहानभूति एक समय तक विश्वास दिलाती है ।सरकार व देश के नागरिकों  को यह भी सोचना चाहिये की आपातकाल स्थिति में क्या पक्की स्थाई सुविधाएँ होनी चाहिए कि इन मजूरों को  भूखा  सड़क पर ना आने पड़े।वरना यह देश नागरिक सरकार  सभी के लिए बहुत बड़ी मुश्किल बनती ।मोदी जी को सहानभूति के साथ मजूर स्थायित्व का सबक लेना चाहिए ।क्योंकि यह स्थायित्व आज की पीढ़ी के साथ साथ आने वाली पीढ़ी के लिए भी जरूरी है।वरना यह समस्या इसी तरह बनी रहेंगी। भला हो उन जमातियों का वरना एक समय तो भूखे पेट सड़क पर चलते इन गरीबों पर कोरोना के फैलने के आरोप लगना शुरू हो गए थे । पहले इन्हें चलता कर दिया अब जब आर्थिक संकट उभरने लगा तो देश अपना बोझ ढोने के लिए इन्हीं कंधो का इंतज़ार कर रहा है ।  आनन फानन में  बिना मुख्यमंत्रियों की सलाह लिए लिया गया लॉकडाउन फर्स्ट  जो पीएम मोदी पर प्रश्न खड़ा कर रहा था उसे भी उन्होंने सादगी से समाप्त कर दिया । प्रधानमंत्री मोदी जी का लॉक डाउन जरूरी के साथ मजबूरी भी बन गया क्योंकि कई राज्यो के मुख्यमंत्री पहले ही इसकी घोषणा कर चुके थे ।मोदी के सम्बोधन से स्वास्थ सुविधायों, जनता ,राज्यो को काफी उम्मीद थी जबकि सशर्त उन्होंने इन्हें इन्हीं पर डाल दिया है ।कई मरीज सुविधाओं की देहरी तक नहीं पहुँच पा रहे तो कई अस्पतालों के आदेशों के चलते यहां वहाँ चक्कर लगाते हुए सड़क के चौराहा पर दम तोड़ रहे है ।चूंकि महामारी है देश के लिए खतरा है लॉक डाउन भी जरूरी है ।परन्तु सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिह्न लगाना  भी उतना ही जरूरी है  ।प्रधानमंत्री को देश को यह भी बताना जरूरी था कि हम टेस्ट करने में इतने पीछे क्यों है।हमारे यहां मेडिसिन और वैक्सीन बनाने पर कितना काम हुआ है? ।कितना चल रहा है? ।कितने मरीजो पर कितने डॉक्टर है?। कितने प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है कितने सरकारी ।जिससे जनता को यह पता लगता कि हमारी सरकारों ने हमारी खातिर  कितनी सर्व सुविधा युक्त हॉस्पिटल बनाए ।या सिर्फ योजनाओं से पैसा प्राइवेट संस्थानों में पहुँचाने का काम किया जा रहा है ।

प्रधानमंत्री जी ने जब  सब की अनुशंसा सुनी है तो मोदी जी सुप्रीम कोर्ट की बेंच के आदेश से सरकार  कुछ सीख भी ले  जिससे नागरिकों के साथ उनकी आने वाली पीढ़ी सुखमयी सुविधायों से वंचित ना रहे ।पहली ये की जिस प्रकार उच्चतम न्यायालय ने प्राइवेट लैब में गरीबों की मुफ्त जांच और अमीरों की पैसे से हो का आदेश दिया है। ।गरीब की आयुष्मान योजना के अंतर्गत जांच करे ।जिसका खर्चा  सरकार देंगी ।सरकार को इस आदेश से सबक सीख लेना चाहिए कि यह सिस्टम सरकारी अस्पतालों में लागू क्यों नहीं हो सकता है । जिससे सरकारी सुविधाएं भी मजबूत हो और सरकार का पैसा भी बचे । कई ऐसे देश है जहां यह सिस्टम लागू है ,और वहां मेडिकल फैसिलिटीज बेहतर है।क्योंकि अमीर अपने खर्चे पर सरकारी तंत्र से सुविधा ले और गरीब मुफ्त ।इससे दो आयामी विकास होता है और सरकारी तंत्र भी जर्जर नहीं होता और सरकारी सुविधाएं भी अधिक संपन्न हो सकती है सरकार इस तरफ ध्यान दे तो ।परन्तु  सरकारें इस तरफ ध्यान कम देती है क्योंकि उन्हें फायदा निजी संस्थानों से मिलीभगत के कारण होता है ।जिसमें राजनेताओं की सहभागिदारी  होती है ।

सुप्रीम कोर्ट के एक जस्टिस को  महामारी के कारण लगे लॉक डाउन में दिल्ली में  तारे और मोरों का झुंड दिख गया ।इस पर सरकारी वकील ने काश लॉक डाउन जुलाई तक हो इसका कयास लगाया ! ।ये वाक्य  पर्यावरण प्रदूषण की दृष्टि से कितने महत्त्वपूर्ण है ।यदि लॉक डाउन होता है तो प्राकृतिक वातावरण कितना सुधरता है सामने उदाहरण के रूप में  पेश हुआ है ।यदि सरकार प्लानिंग कर हर साल समय अंतराल पर बंद की यह प्रोसेस अपनाए तो प्रकृति को भी अपने को स्वच्छ शुद्ध  करने का मौका मिलेगा और नागरिकों को साफ हवा स्वच्छ पानी । हर स्तर पर प्राकृतिक स्रोतों ने अपने आपको फ़िल्टर किया है जब  स्वार्थी मानव गतिविधि रुकी है   ।

प्रेषक 
आनंद जोनवार 

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