ब्रिटिश भारत में लोकतंत्र के जन्मदाता, मॉडर्न इंडिया के सबसे महान शूद्र महात्मा फुले-डॉ आंबेडकर

महान भारतीय विचारक, समाज सुधारक, सेवक , दार्शनिक व लेखक ज्योतिराव गोविंदराव फुले  की आज जयंती है, उनका जन्म  11 अप्रैल 1827 को पुणे में  हुआ था।उनकी माता का नाम चिमणाबाई तथा पिता का नाम गोविंदराव था।लोग उनके महत्वपूर्ण सामाजिक योग्दान और  सामाजिक कल्याण के कारण  महात्मा फुले से जानते है। ओबीसी समाज में जन्मे महात्मा फुले जाति से माली थे  जिनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव गोल्हे था।बाद में उनका नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले पड़ गया। 11 मई 1888 के मुंबई की गोली वाड़ा में राव बहादुर विठ्ठलराव वनडेकर ने महात्मा कहा । 

फुले से लेकर महात्मा तक महान कार्य
महात्मा के नाम में फुले फूल बेचने के कारण पड़ा।  धर्म ,समाज और परंपराओं के सत्य को सामने लाने हेतु ज्योतिबा फुले ने गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोंसले का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफ़ियत जैसी अनेक किताब लिखी। उनकी सार्वजनिक सत्य धर्म किताब निधन के बाद 1891 में प्रकाशित हुई। 24 सितंबर1873 में ज्योतिराव फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की। नारी और निर्बल लोगों के कल्याण के लिए अनेक कार्य किए। शिक्षा से वंचित स्त्री और समाज के सभी वर्गों को शिक्षा मिले इसके लिए हमेशा कार्य करते रहे।

स्त्री शिक्षा के प्रबल समर्थक

हजारों सालों से शिक्षा से वंचित दलित और नारी को  शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा जीवनपर्यन्त देते रहे  ।वंचित वर्ग में शिक्षा का स्तर बढ़ाने का प्रयास  करते  रहे। जिसके कारण उन्हें भारत में  शिक्षा का अग्रदूत कहा जाता है ।उनका कहना था बेटा पढ़ता है तो एक परिवार पढ़ता है और यदि बेटी पढ़ती है तो समाज शिक्षित होता है । उन्होंने अपनी  जीवनसंगिनी सावित्री के साथ समाज में अध्यापन का कार्य किया ।सावित्रीबाई भारत की प्रथम महिला शिक्षिका बनी।फुले ने बंधनो की उस दीवार को तोड़ा जिसके कारण स्त्री व दलितों को सदियों से शिक्षा से दूर रखा जाता था ।जिसका उन्हें  भारी विरोध के साथ अपमान झेलना पड़ा । समाज से बहिष्कृत भी हुए । महात्मा फुले जाति भेदभाव के कट्टर विरोधी थे। महात्मा फुले मानव समाज की बात करते थे जिसमें मानवता व समानता के साथ सबको शिक्षा सबको  अधिकार सबकी भागीदारी  सुनिश्चित हो। 

शिक्षा से सुधार और सम्मान
फुले जी  किसान महिलाओं के हालात सुधारने के प्रयास करते रहे। स्त्रियों की दशा सुधारने और नारी शिक्षा के लिए 1848 में स्कूल खोला जो  इस प्रकार का देश का पहला विद्यालय था। आज से 180 साल पहले देश में स्त्री शिक्षा की क्या हालत होगी इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं की  उस वक्त लड़कियों को पढ़ाने के लिए टीचर ही नहीं मिली तब उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री फुले को पढ़ा कर शिक्षिका योग्य बनाया ।इसके बाद उन्होंने तीन और विद्यालय खुलवाए और उनका कहना था कि जब नर नारी समान है तो भेदभाव क्यों ? 

माता जो संस्कार बच्चों पर डालती है उसी में उन बच्चों के भविष्य के बीज होते हैं इसलिए लड़कियों को शिक्षित करना आवश्यक है ।उन्होंने निश्चय किया की स्त्रियों और वंचित समाज के लिए स्कूलों की व्यवस्था करेंगे। उस समय जाति पाती ऊंच-नीच की दीवारें बहुत ऊँची थी। दलितों और स्त्रियों की शिक्षा के रास्ते बंद थे ।

फुले की कल्पना में आज भी महिलाएं पिछड़ी
सविंधान के 70 साल बाद भी महिलाओं की स्थिति कमजोर है ।भले ही महिलाओं के लिए कई  कानून है परन्तु उनकी जानकारी सामाजिक परिवेश के कारण महिलाओं को कम ही हो पाती है । प्रतिनिधित्व की बात की जाए तो आज भी आधी आबादी नेतृत्व और मौके में पिछड़ी हुई है। विधानसभा, सदन, सुप्रीम कोर्ट , मंत्रियों की सूची में महिलाओं की संख्या काफी कम है। आज भले ही सियासत में महिला आरक्षण के जरिए महिलाओं के भागीदारी की बात हो रही है, लेकिन घर , सड़क से लेकर सदन तक  कितनी महिलाएं अपनी  बात रख पाती है,  हमेशा से बना ये बड़ा सवाल सियासत में अभी तक जिद्दा है। आधी आबादी की बात कब पूरी होगी, उन्हें 33 नहीं समान हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। समानता की बात महिलाओं के लिए आज भी अटका हुआ मुद्दा है।

महात्मा फुले मॉडर्न इंडिया के सबसे महान शूद्र-डॉ आंबेडकर
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर महात्मा फुले के आदर्शों से अधिक प्रभावित थे।बाबा साहेब महात्मा  फुले  को अपना गुरु मानते थे। डॉ अंबेडकर कहते थे महात्मा फुले मॉडर्न इंडिया के सबसे महान शूद्र थे जिन्होंने पिछड़ी जाति के हिंदुओं को अगड़ी जाति के हिंदुओं का गुलाम होने के प्रति जागरूक बनाया ।जिससे भारत के लोगों में विदेशी हुकूमत से स्वतंत्रता की तुलना में सामाजिक लोकतंत्र कई अधिक महत्वपूर्ण है
ज्योतिबा फुले समाज के सशक्त प्रहरी थे ।वो  सदैव याद रखे  जाएगे।
उन्होंने कहा था  
भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास तब तक नहीं होगा जब तक खान पान एवं वैवाहिक  संबंधों पर जातीय बंधन बने रहेंगे
महात्मा फुले

फुले के आगे झुका अंग्रेजी शासन
फुले के संघर्ष और संगठन के कारण ही तत्कालीन सरकार ने एग्रीकल्चर  एक्ट पास किया लेकिन आज भी किसानों की बदहाल स्थिति है ।बडे बडे डैम तो सिंचाई के नाम पर बन गए लेकिन किसानों को उनका पानी नहीं मिलता।देश का पेट भरने वाला किसान पर ही गरीबी की मार पड़ हुई है ।उसे फसल के महंगाई के मुताबिक उचित मूल्य नहीं मिलते ।ज्योतिबा मानवीय समाज की कल्पना करते थे ।भले ही भारत ने मानव अधिकारों को सयुक्त राष्ट्र में रेक्टिफाई किया है लेकिन संविधान में आज भी मानव अधिकार सम्मिलित  नहीं है । मानव अधिकार आयोग केवल अनुशंसा कर सकता है। एप्लाई  का अधिकार आयोग को नहीं है ।जिसके कारण  देश में दंगे, अल्पसंख्यकों और  निर्धन वर्ग  को  शोषण की पीड़ा झेलनी पड़ती है ।

लेखक 
आनंद वाणी


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