कोरोना डर में परीक्षा का तनाव

कोरोना नामक बीमारी ने तांडव मचा के रखा है । इसके बीच में भी जिंदगी और मौत के बीच परीक्षा का तनाव छात्रों में है जिसका होना स्वभाविक भी है जिसने हर खुशहाली में खामोशी पैदा कर दी है  । जिसमें विदेश से पढ़े लिखे शिक्षित संपन्न लोग व सरकार की लापरवाही साफ जगजाहिर हो रही है ।एपिडेमिक डिसीज एक्ट 1896 व अतर्राष्ट्रीय स्वास्थ नियम 2005 को सरकार और विदेशी शिक्षा पाने गए लोगों ने ताक पर रख दिया ।नियमों के  मुताबिक इन्हें थर्मल स्क्रीनिंग के बाद भी क्वारेंटाइन होना चाहिए था ,ये नहीं हुए  इनकी जानबुझकर की गई लापरवाही खुद और सभी देशवासियों के लिए खतरा बनी है । पूरे देश में फैलती घूमती यह बिमारी सैकड़ो की जान ले गई कइयों की और भी संभावना है।  देर से जागी सरकार ने कड़े प्रतिबंधों के साथ निर्णय लेने में  देरी नहीं और आज दुनियां के अन्य देशों की तुलना में भारत में कम केस है ।भले ही आरोपों में  टेस्ट कम हुए है परंतु संक्रमित टेस्ट संक्रमण परीक्षण दर व मौत प्रतिशत अन्य की अपेक्षा कम है । हालफिलहाल  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बंद में देखभाल पध्दती तारीफ ये काबिल है ।सभी स्कूल कॉलेज अन्य संस्थाएं तत्काल बन्द करवा दी ।जिससे कोरोना संक्रमण कम फैले ।खासतौर पर बच्चों और  युवाओं की जरूरी भी है क्योंकि भारत का भविष्य भी यही वर्ग है । सभी परीक्षाएं स्थगित  कर दीं गई ।अधिकतर स्कूली कक्षाओं में प्रमोशन कर दिया । वहीं बोर्ड व  विश्वविद्यालय परीक्षाओं पर विचार जारी है । 

चूंकि बीमारी भयावह है ऐसे में जिन लोगों की परीक्षा नहीं हुई है या स्थगित होने के बाद आगे होने वाली है ।उन छात्रों में महामारी के वक्त परीक्षा को लेकर तनाव बना हुआ है । तो कई संशय की स्थिति में जी रहे है । सरकार और प्रशासन भी कोरोना  की कहरता और शिक्षितों की लापरवाही से भलीभांति परिचित है । गलतियों से सीखता प्रशासन अब यह गलती नहीं दोहराना चाहेगा कि संक्रमण दोबारा फैले ।ऐसे में यदि विवि परीक्षाएं कराते है जब तक वैक्सीन बन कर तैयार नहीं हो जाती तब तक परीक्षाओं कराने का किसी भी  स्तर पर निर्णय गैर जिम्मेदारी भरा होगा ।जिसमें कितनी भी सावधानी बरती जाए संकमण होने का खतरा बना ही रहेगा ।  वहीं  सेमेस्टर छात्रों का कहना है कि क्लास में पढ़ाई स्टार्ट होकर सुचारू रूप से चल ही रही थी तब तक तालाबंदी हो गई हो क्लास भी नहीं हो पाई ।जिससे सिलेबस भी पूर्ण नहीं हो पाया ।लॉक डाउन में ऑनलाइन क्लास में भी कम ही पढ़ाई होती है व उस रुचि के साथ पढ़ाई नहीं हो पाती जो प्रत्यक्ष क्लास में होती है  ,डाटा खत्म होने के साथ  साथ सुर्खियों में छायी हुई प्राइवेसी खबरों से भी चिंता की स्थिति हमेशा बनी रहती है ।हालांकि समय समय पर सरकार गाइडलाइन जारी कर देती है ।कई गरीब छात्रों की  जिनकी महामारी में नौकरी छूट गई  उन्हें परीक्षा फीस ,  इंटरनेट मोबइल रिचार्ज करने के लाले पड़े हुए है ऐसे में  क्लास अनुपस्थित होना  स्वभाविक है ।कई छात्र व अध्यापकों का कहना है इससे पहले तो कभी ऑनलाइन क्लास नहीं ली ना ही इसका कभी प्रशिक्षण दिया गया ।प्राइवेसी और प्रशिक्षण से छात्रों के साथ साथ अध्यापक भी परेशान है ।करोड़ो रूपये खर्च करने वाली कई  यूनिवर्सिटीओं  के पास सिलेबस कोर्स का रेडीमेड शिक्षा तंत्र की सुविधा नहीं है जिसे छुट्टियों व किसी आपात स्थिति में विद्यार्थियों को सुपुर्द किया जा सकें यूनिवर्सिटीओं के पास खुद की ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली नहीं है ।जिन एप का यूज किया जा रहा है उनमें  इंटरनेट की बाधा  ऑडियो गड़बड़ कभी कभी सुनाई नहीं देता । प्रत्यक्ष प्रणाली से कई दूर ऑनलाइन अप्रत्यक्ष शिक्षा प्रणाली भारतीय संदर्भ में कितनी प्रभावी है इसकी रिसर्च की जरूरत है ।और रिसर्च तब संभव है जब यह प्रणाली विस्तृत अपनाई जाए।एक तरफ कोविड़ महामारी में छात्र परीक्षा चिंता को लेकर जी रहे है वहीं दूसरी और कोरोना मार में जिंदगी और मौत के बीच। वैसे भी वो परीक्षा किस काम की जिसमें भविष्य की जिंदगी रिस्क पर हो ।इस दर्दनाक घड़ी में सरकार को ही छात्रों के जीवन  हित में कड़ा व उचित फैसला जल्दी उठाना चाहिए ।

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