लापरवाही का जिम्मेदार कौन?
15 अप्रैल को जब पूरा देश दूसरे चरण के लॉक डाउन की शुरुआत कर रहा था उसी दिन भारत के इतिहास की एक बड़ी विस्तृत जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई है। जो जिम्मेदारों की जवाबदेही के प्रति लापरवाही और कानून के उल्लंघन से सम्बंधित है ।इसके कारण कोरोना जैसी महामारी देश में फैली और करोड़ो लोगों के जीवन को अस्त व्यस्त कर सड़कों पर भूख बैठा दिया । यह सब तीन लोगो की मनमानी का परिणाम भी हो सकता है जिससे करोड़ो मजदूर गरीब व्यापारी छात्र तकरीबन हर क्षेत्र प्रभावित हुआ है ।देश को अत्यधिक आर्थिक क्षति हुई है ।दाखिल इस याचिका में नागरिकों को कंपनसेशन देने की बात की गई है ।प्रधानमंत्री व भारत सरकार की जवाबदेही को सुनिशिचत करने की मांग व उचित दिशानिर्देश देने की अपील की है।
कोरोना तालाबंदी में मूलभूत अधिकार और मानवाधिकार के उल्लंघन के चलते 135 करोड़ भारतीयों में से जिन लोगों के पास सरकारी कर्मचारियों की तरह महीने का वेतन नहीं है ऐसे 100 करोड़ लोगों को ₹376 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से देने की मांग सर्वोच्च न्यायालय से की है । ऐसे लोगों की कोई गलती नहीं है जो रोज कमा कर खाते है इसमें श्रमिक मजदूर स्वयं रोजगार मझोले उद्योग शामिल है । करोड़ो युवा रोजगार दूसरे राज्यों में फंसे हुए हैं उनकी जेब की राशि समाप्त हो गई है अकाउंट में पैसा नहीं है ऐसी स्थिति में उनके पास खाने को कुछ नहीं है।जिससे 41 हज़ार करोड़ रूपए प्रतिदिन देश को नुकसान हो रहा है जिसका 3 मई तक 17 लाख करोड़ नुकसान होने का अनुमान है। 10,000 से अधिक लोग पॉजिटिव पाए गए हैं और कई और पॉजिटिव पाए जाएंगे सैकड़ो लोगों की मृत्यु हुई है और आगे भी होने की संभावना है। इन स्थितियों के लिए पिटीशन में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की अध्यक्ष है और उनके साथ स्वास्थ्य सचिव गृह सचिव भी है जो कि राष्ट्रीय डिजास्टर मैनेजमेंट की राष्ट्रीय कार्यकारिणी है उनके द्वारा 31 जनवरी 2020 से ही कारगर कदम ना उठाने की वजह से देश भर में कोरोना फैला और अब इस फैले कोरोना की कहर की मार सभी देशवासियों को झेलनी पड़ रही है ।विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 31 जनवरी को विश्व स्तर की स्वास्थ्य इमरजेंसी घोषित की थी जिसके तहत प्रधानमंत्री स्वास्थ्य और ग्रह सचिव को कारगर कदम उठाने की शुरुआत 48 घंटे में करनी थी ऐसा न करते हुए ये 24 मार्च तक इमरजेंसी को अनदेखा करते रहे। सरकार बड़े बड़े प्रोग्राम करने में लगी रही । प्रधानमंत्री ने जब कदम उठाना शुरू किया तब तक करीब 14 लाख लोग विदेशों से भारत आए। जिनकी विधिवत रूप से कोई जांच नहीं की गई और क्वॉरेंटाइन भी नहीं किया गया जिनकी वजह से करोड़ो लोगों की आजीविका समाप्त हो गई जानबूझकर नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने डिजास्टर मैनेजमेंट पॉलिसी 2009, अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य नियम 2005 का उल्लंघघन किया । जो कमेटी का कानूनी तौर पर विशेष जवाबदारी कार्य था।इसलिए इन सब पर इस कानून के प्रावधानों के तहत उचित कार्रवाई की जाना चाहिए था ।पिटीशन में संविधान अनुच्छेद 21 (1) 19 डी ,जी व 14 के साथ अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार कानून 1966 के आईसीसीपीआर व आईसीइएससीआर का उल्लंघन किया है जिन्हें भारत सरकार ने साइन तथा रेक्टिफाई किया है ।इनके उल्लंघन हेतु नेशनल जस्टिस के सिद्धांतों के तहत हर भारतीय जिनकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है उसे ₹376 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से लॉक डाउन के दौरान दिया जाए ।जो करीब 14 हज़ार से अधिक होती है
प्रधानमंत्री नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी, व राष्ट्रीय कार्यपालिका कमेटी के प्रमुख भी है ।प्रमुख की जवाबदेही यदि कानूनी रूप से लापरवाही रूप में सुनिश्चित होती है तो इनकी आय से भी इसकी रिकवरी की जाए एवं उन पर उचित कानूनी कार्रवाई भी हो ।
साथ में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट की संवैधानिकता व वैधानिकता का भी टेस्ट किया जाए क्योंकि यह बहुत सारी गैरजरूरी शक्तियां अथॉरिटी के अधिकारियों को देता है। इन सभी की सुप्रीम कोर्ट से धारा 142 के अंतर्गत संपूर्ण न्याय करने की मांग की गई है।।
अवलोकनार्थ व प्रकाशनार्थ
प्रेषक
आनंद जोनवार
भोपाल
8770426456
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