मॉनीटिरिंग के नाम पर मामा का ठेंगा
मॉनिटरिंग के नाम पर मामा का ठेंगा
वैश्विक महामारी कोरोना में संक्रमण आए दिन निरंतर बढ़ रहा है .मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अनुसार बच्चों के
स्कूल 31 जुलाई तक बंद रहेंगे.इसके बाद क्या स्थिति होंगी इसकी समीक्षा जुलाई के अंत में की जाएंगी तभी निर्णय लिया जाएगा .
लेकिन हाल -फिलहाल
राज्य शिक्षा केंद्र ने सरकारी स्कूलों को घर पर खोलने का प्लान बना लिया है.
इसके लिए केंद्र ने प्रदेश के तमाम जिला शिक्षा केंद्र को फरमान जारी किया है कि कोविड 19 में बच्चे स्कूल नहीं आ पाएंगे ऐसे में घरों में ही स्कूल शुरू किए जाए. घरों में स्कूल जैसा वातारण बनाएं ताकि बच्चा पढ़े तो उसे लगे कि वो स्कूल में पढ़ाई कर रहा है.घर की बास्तविक स्थिति में आभासी क्लास का अनुभव कराया जाएगा.
जिसमें बच्चें की
पढ़ाई शुरू होने से पहले घर का कोई एक सदस्य घंटी या थाली बजाए. हालांकि घण्टी या थाली छज्जे पर या बालकनी में नहीं बजानी पड़ेगी. घर के किसी सदस्य को घण्टी या थाली बच्चे के सामने बजानी होंगी
वहीं बच्चे का जिस स्कूल में दाखिला है वहां के शिक्षक पांच घरों की रोज मॉनिटरिंग करेंगे। राज्य शिक्षा केंद्र ने इसे नाम दिया है हमारा घर, हमारा विद्यालय।
शिक्षकों को बच्चों की मॉनिटरिंग करने का जिम्मा
मॉनीटिरिंग की पूरी डिटेल डिजिटल रूप में एम शिक्षा मित्र पर उपलब्ध रिकॉर्ड फॉर्म के रूप में भरकर राज्य शिक्षा केंद्र को भेजनी होंगी. हर घर हर विद्यालय
अभियान में शिक्षक बच्चों की मॉनिटरिंग करेंगे .और हर सप्ताह पढ़ाई का नया टाइम टेबल बताया जाएगा.
लर्निंग स्तर सुधारने या समाप्त करने 35 हज़ार स्कूल होल्ड पर
नीति आयोग की
‘द सक्सेस ऑफ़ आवर स्कूल्स-स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स’ में 20 बड़े राज्यों की सूची में मध्यप्रदेश की स्थिति 15 वे नम्बर पर थी.यह रिपोर्ट स्कूल जाने वाले बच्चों के सीखने के परिणामों पर राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के सूचकांक पर आधारित है. एसईक्यूआइ का उद्देश्य नीतिगत सुधारों को जारी रखना , जो स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने का प्रयास था.
दो साल पहले नीति आयोग के सर्वे में प्रदेश के कई स्कूल हर स्तर पर फिसड्डी निकले थे सीधे सीधे प्रदेश शिक्षा की इस खस्ता हालत का ढींगरा 15 साल से शासित कर रही शिवराज सरकार पर फोड़ा गया. आयोग ने कहा था ऐसे स्कूलों का उन्नयन किया जाए लेकिन राज्य सरकार ने स्कूलों को समाप्त करने व अन्य स्कूल में मर्ज करने की सूची बना डाली .जिन स्कूलों में बच्चे नहीं आ रहे या 25 से कम बच्चे स्कूल आ रहे है . ऐसे 34 हज़ार स्कूलों को समाप्त कर मर्ज करने की मंशा प्रशासन की है .सरकार ने बच्चों के सरकारी स्कूल में आने पर कतई ध्यान नहीं दिया ,बल्कि ऐसी योजनाओं को बढ़ावा दिया जिससे बच्चे निजी स्कूल में पहुँचे .तभी तो सरकारी स्कूलों की हालत और खस्ता होती चली गई।
प्रदेश में अभी 80,890 प्राथमिक और 30,341माध्यमिक स्कूल है।
" मॉनिटरिंग का अभाव दम तोड़ती योजनाएं और स्कूल "
सरकार सुधारने के लिए हर संभव योजना शुरू करती है .आज से 7 वर्ष पहले शिवराज सरकार में मॉनीटिरिंग
शिक्षा के स्तर में सुधार और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए राज्य शिक्षा सेवा का गठन , मध्यप्रदेश शासन स्कूल शिक्षा विभाग की महत्वाकांक्षी योजनाओं को लागू करने के लिए किया गया था.जिसके अंतर्गत समस्त शैक्षणिक संस्थान को राज्य शिक्षा सेवा के अधीन करके मॉनीटिरिंग तंत्र को मजबूत करना था ।
"AEO को सात साल बाद भी शिवराज से उम्मीद"
वर्ष 2013 में स्कूल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित हो सके इसके लिये एरिया एजुकेशन ऑफिसर (AREA EDUCATION OFFICER - AEO) का पद सृजित किया गया था. जो कि शालाओं के निरीक्षण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए उत्तरदायी रहेंगे.इन पदों के लिये विज्ञापन जारी कर परीक्षा आयोजीत की गई थी.जिसमे माध्यमिक शाला के प्रधान पाठक, शिक्षक और अध्यापकों ने भाग लिया था. इसके बाद कुछ त्रुटियों को लेकर कुछ असफल आवेदक हाई कोर्ट की शरण मे चले गए थे.माननीय हाई कोर्ट ने ऐसी लगभग 200 याचिकाओं का निराकरण करते हुये AEO RECRUITMENT का रास्ता साफ कर दिया था और जनवरी 2015 में पुनः भर्ती प्रकिया प्रारंभ हो गई और लगभग 19860 हजार परीक्षार्थियों का वेरिफिकेशन कराया गया था.
इसके बाद शिक्षक संघ सुप्रीम कोर्ट चला गया और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला देते हुए राज्य सरकार को परीक्षा पास उम्मीदवारों के हितों का संरक्षण करने की बात कही है.लेकिन शिवराज सरकार लंबे समय तक इस मॉनिटीरिंग भर्ती प्रक्रिया को पेंडिंग में डाले रखी .समय गुजरते गुजरते सरकार बदल गई .
15 साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस सरकार ने स्कूलों का जायजा लेकर इस मॉनीटिरिंग सेवा को अति महत्त्वपूर्ण समझा और स्कूल के साथ साथ बच्चों के सीखने के स्तर में इसे सहयोगी माना.जिसे कमलनाथ सरकार ने स्टेट गजट पत्र में प्रकाशित भी करवाया था.कमलनाथ सरकार बनने के कुछ समय बाद ही जनवरी 2019 में असर (ASER)2018 रिपोर्ट आई थी जिसमें राज्य की शिक्षा व्यवस्था,बच्चों का सीखने का स्तर व गुणवत्ता दयनीय स्थिति में निकलें। 50 प्रतिशत से अधिक कक्षा 8 वी के छात्र क्लास 2 की बुक नहीं पढ़ पाते .गणित में प्रतिशत का यह आंकड़ा और भी बड़ा था.
राज्य में पुनः शिवराज सरकार आई है.मॉनीटिरिंग के जरिए 34 हजार सरकारी स्कूलों और उनमें पढ़ने वाले गरीब बच्चों के सपनों लिए सरकार सुधारने के नाम पर क्या प्रयास करती है, जनता को सरकार की सुधारने की उम्मीद का इंतजार है.
चुनावों में क्यों नहीं उठता शिक्षा का मुद्दा
जनता हर बार की तरह चुनाव में शिक्षा पर वोट नहीं करती .क्योंकि राजनैतिक दल हर बार हर चुनाव को जातीय समीकरण के गणित में उलझा देते है .प्रत्येक राजनैतिक पार्टी अपने अपने वर्ग को लेकर चलती है ,वर्ग के राजनीतिक लोग पार्टी को अपना समझकर दूसरे वर्ग को उपेक्षित समझते है, और हर राजनीतिक वर्ग यही भूल कर बैठता है .हर जातीय वर्ग को यह सोचना होगा की पार्टी है तब तक आपकी है, सरकार बनते ही स्वार्थ लालच सत्ता की लालसा में वह उद्योग व्यापारियों की हो जाती है. इसी कारण से देश में निजितत्व ने पैर पसारे है. इसमें हर स्तर से सबसे अधिक नुकसान निर्धन गरीब को उठाना पड़ता है और गरीबी का कोई वर्ग नहीं होता. गरीब भोली भाली जनता को अब जातीय समीकरणों से उठकर जीवन और भविष्य सुधारने वाले मुद्दों पर फोकस करना चाहिए.स्थानीय जनता को इस ओर ध्यान देना होगा की आपके क्षेत्र में कितने स्कूल है ,उन स्कूलों में कितने छात्रों पर कितने टीचर है, हर क्लास के लिए टीचर है या नहीं
,और यदि ऐसा नहीं है तो चुनाव में जनहित मुद्दा बनाए .
अवलोकनार्थ व प्रकाशनार्थ
प्रेषक आनंद जोनवार
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