नई शिक्षा नीति
कब कब आई शिक्षा नीति
आजाद भारत में गतहीन समाज को गतिशील समाज में परिवर्तित करने के लिए नवीन शिक्षा नीति 1986 में बनी, जिसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 कहा जाता है ।इस प्रथम शिक्षा नीति के उद्देश्यों में महात्मा गांधी के विचारों के अनुरूप ग्रामीण विश्वविद्यालयों की स्थापना करना था । इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय की पद्धति पर दूरस्थ अध्ययन पर फोकस कर मुक्त विश्वविद्याल खोलना था।नीति में आधुनिकीकरण व्यवसायीकरण के साथ सांस्कृतिक मूल्यों पर शिक्षा की सार्वभौमिक पहुँच केंद्रीय मुद्दा था ।इस नीति में शिक्षकों की शिक्षा को देश के स्तर का पैमाना माना ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992
1992 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में नरसिंहा राव सरकार द्वारा सुधार किया गया तथा वर्ष 2005 में इन सुधारों को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा स्वीकार कर लिया गया जिसे कॉमन मिनिमम प्रोगाम के रूप में जाना गया।1992 शिक्षा नीति के के तहत अखिल भारतीय स्तर पर सभी व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा के लिए देश में एक सामान प्रवेश परीक्षा लागू हुई। इस नीति से जेईई,एआईईईई, एसएलईईई प्रवेश परीक्षाएं आरंभ हुई ।
विश्वसनीय और उच्च प्रदर्शनकारी शिक्षा प्रणाली पर विमर्श करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2016 को प्रस्तुत किया गया ।इसके मुख्य उद्देश्य सभी के लिए समावेशी गुणवत्तायुक्त शिक्षा एवं सीखने के जीवनभर अवसर सुनिश्चित करना है, बदलते वैश्वीकरण ,ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था समाज की जरूरतों के अनुरूप छात्रों को तैयार करना।छात्रों में ज्ञान ,दक्षता, भाव और मूल्यों का विकास करना है।इन उद्देश्यों के आधार पर इस नई शिक्षा नीति में एक भारतीय शिक्षा सेवा की स्थापना करना ,बजट के कुल व्यय का कम से कम जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर व्यय करना जो सैम पित्रोदा समिति 2006 जिसे राष्ट्रीय ज्ञान आयोग भी कहा जाता है कि भी मुख्य सिफारिश थी। प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा का उपयोग अनिवार्य रूप से करना।बारहवीं कक्षा के बाद उच्चतर शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में प्रवेश के लिए एकीकृत परीक्षा की व्यवस्था होना।
प्रत्येक उच्च शिक्षण संस्थान का 2 से 7 तक स्कोरों के आधार पर प्रत्येक 5 वर्ष में मूल्यांकन करना। एकेडमिक परफॉर्मेंस इंडेक्स के स्थान पर किसी अन्य वैज्ञानिक प्रक्रिया को अपनाना। उच्च शिक्षा से सम्बंधित सभी अधिनियमों को रद्द कर एक राष्ट्रीय उच्च शिक्षा संवर्ध्दन और प्रबंधन अधिनियम बनाना ।इसी के तहत नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बनी है ।
नई शिक्षा नीति
नई शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा को 10+2 की जगह 5+3+3+4 कर दिया है।5+3+3+4 में 5 का मतलब है - तीन साल प्री-स्कूल के और क्लास 1 और 2, उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 3, 4 और 5 ,उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 6, 7 और 8 और आख़िर के 4 का मतलब है क्लास 9, 10, 11 और 12 से है।
अब बच्चे 6 साल की जगह 3 साल की उम्र में स्कूल जाएंगे ।6 साल की उम्र में बच्चा पहली क्लास में आएगा। लेकिन पहले के 3 साल की फ़ॉर्मल एजुकेशन या प्ले-स्कूल शिक्षा अब स्कूली शिक्षा में जुड़ेंगी।
भाषा को लेकर नई शिक्षा नीति में 3 लैंग्वेज फ़ॉर्मूले की बात की गई है, जिसमें कक्षा पाँच तक मातृ भाषा/ स्थानीय भाषा में पढ़ाई की बात की गई है।हालांकि यहां गौर करने की जरूरत है असर रिपोर्ट में सबसे ज्यादा स्कूल शिक्षा की बदहाल हालत हिंदी क्षेत्रों की है ।
नई शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा में बोर्ड परीक्षा का पैटर्न बदला है। अब बोर्ड एग्जाम साल में दो बार होंगे। लेकिन इनमें पास होने के लिए कोचिंग की ज़रूरत नहीं होगी। परीक्षा का स्वरूप बदल कर अब छात्रों की क्षमताओं का आकलना किया जाएगा,ना कि उनके यादाश्त का।
इसी तरह उच्च शिक्षा में भी बदलाव किए गए हैं।अब ग्रेजुएशन (अंडर ग्रेजुएट) में छात्र चार साल का कोर्स पढ़ेगें, जिसमें बीच में कोर्स को छोड़ने की गुंजाइश भी दी गई है।
पहले साल में कोर्स छोड़ने पर सर्टिफ़िकेट मिलेगा, दूसरे साल के बाद एडवांस सर्टिफ़िकेट मिलेगा और तीसरे साल के बाद डिग्री, और चार साल बाद की डिग्री होगी शोध के साथ। अब देखना होगा नई नीति कब और कैसे लागू की जाएगी ।जिसका बच्चों के मानसिक स्तर और सीखने की क्षमता पर क्या प्रभाव पड़ेगा ।
जब कि देश में पचास प्रतिशत से अधिक पाँचवीं के छात्र दूसरी की किताब नहीं पढ़ पाते ,आधी से ज्यादा चौथी के बच्चे को जोड़ना और घटाना नहीं आता।अब देखना होगा असर रिपॉर्ट में क्या बदलाव आते है ।इस शिक्षा नीति से ग्रामीण शिक्षा अधिक प्रभावित होने का अनुमान है ।
हालांकि नई शिक्षा नीति में मोहनदास गांधी के उद्देश्यों पर ध्यान नहीं दिया गया है।जिसमें अधिक से अधिक शिक्षा संस्थाए ग्रामीण स्तर पर खुलवाने का गांधी जी का विचार था।नई शिक्षा नीति में इसको दरकिनार कर स्थानीय भाषा व कौशल पर फोकस किया है जो लोकल से ग्लोबल की सोच नहीं है बल्कि लोकल से लोकल तक शिक्षा की सोच है गांधीजी के गहन शिक्षा विचार को विश्लेषण करने पर यह बात सामने आती है कि स्थानीय ग्रामीण लोग शहरी शिक्षा आधुनिकीकरण के विकास से दूर रहे , सीमित से अधिक स्थानीय कौशल मूल निवासियों को शिक्षा से दूर करता जाएगा ।यह उसी तरह साबित होगा जैसे आरटीइ ने वृहद ग्रामीण शिक्षा स्तर को बदहाल कर दिया है ।सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूल और अंग्रेजी टीचरों का क्या होगा ।यदि अंग्रेजी स्कूल बंद होते है तब तो अंग्रेजी टीचरों की बेरोजगारी बढेगी । भारत जैसे देश में जहां नदी का किनारा बदलने के साथ साथ हर कदम पर भाषा बदल जाती है ,ऐसे में स्थानीय भाषा में गुरुजी उपलब्ध कराना एक बड़ी समस्या उभरेगी । स्वामी विवेकानंद ने अंग्रेजी के अध्ययन पर बल दिया था उनकी इस सोच के पीछे का कारण ज्यादा से ज्यादा भारतीय अंग्रेजी भाषा का लाभ उठाकर वर्तमान वैज्ञानिक पध्दति का अधिक से अधिक उपयोग करना था । नैतिक मूल्यों के संरक्षक शिक्षाविद महान धर्मशास्त्र ब्राह्मणवादी ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने तो निर्धन विद्यार्थियों के लिए निशुल्क अंग्रेजी शिक्षा को अनिवार्य किया था। बिना मॉडर्न तकनीक ,बिना मजबूत शिक्षा सिस्टम व सुविधा ,संसाधनों के अभाव और बिना पर्याप्त मॉनीटरिंग के शिक्षा में कितना बदलाव आ सकता है यह शिक्षा तंत्र की परम्परावादी पीड़ित मानसिक सोच को दर्शायेगा शिक्षा में सुधार नाम नीतियों में परिवर्तन करने से नहीं बल्कि सरकार व अफसरों की व्यवहारिक सोच पर निर्भर करता है । कौशलता के आधार पर कहीं जातीय भेदभाव पनपने का डर रहेगा। सर्टिफिकेट डिप्लोमा डिग्री कहीं सरकार की कमाई का जरिया ना बन जाए
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