देशप्रगति में पढ़े बढ़े और चले महात्माओं के महात्मा पेरियार विचार पर
पेरियार के विचार ,काम के नहीं राम
राम मंदिर भूमिपूजन के शुभ अवसर पर यदि पेरियार होते तो वे इसे देश हित में अकल्याणकारी बताते ।वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की बिल्कुल परवाह नहीं करते । इसके पीछे वो अपनी राम के प्रति गहन अध्ययन और उससे निकले तर्कवाद तथ्य रखते । पेरियार की हिंदुत्व की आलोचना शायद ही कभी नकारात्मक थी। उन्होंने एक श्रेष्ठ और न्यायपूर्ण समाज के प्रगतिगामी सपने को निरंतर प्रचारित किया था वो मोहनदास गांधी के अस्पृश्यता उनमूलन से कई अधिक वर्ण व्यवस्था को खत्म करने में विश्वास रखते थे ।गांधी जी से मोहभंग ने ई वी रामासामी पेरियार जी को जाति और अस्पृश्यता से टकराव तथा श्रेष्ठ समाज हेतु अपने सिध्दांतों की रुपरेखा तैयार करने के लिए प्रेरित किया ।उन्होंने सदैव बेहतर जीवन और उसकी संभावना पर फोकस किया ।पेरियार ने गांधीवादी धर्मनिष्ठा के मुकाबले विशेषकर सत्याग्रह राष्ट्रवाद के सापेक्ष आत्मसम्मान के दर्शन का पाठ पढ़ाया।जिसकी नींव संवाद प्रोत्साहन और तर्क पर ऱखी । भारतीय समाज को भी श्रेष्टता बेहतरीन भविष्य के लिए पेरियार के विचारों पर चलना चाहिए ।पेरियार ने नेताओं पर जनता को शिक्षित करने की बजाय मामले को लेकर उसकी भावनाओं और संवेदनाओं को भड़काने के आरोप लगाए।धर्म में अतीत को लेकर जो पूर्वाग्रह और धारणाएं प्रचलित है उनके अनुसार समाज संसार को तर्क बदलाव के साथ प्रतिक्षण आगे की ओर बढ़ना चाहिए । उन्होंने कहा परंपरा नएपन की उपेक्षा करती है।परंपरा परिवर्तन की विरोधी होती हैजो लोगों को तर्क और मुक्त चिंतन की अनुमति नहीं देती है। लोगों को नएपन में विश्वास के साथ पुरातन की अच्छाईयों का स्वागत सदैव करना चाहिए।आज जीवन के सभी क्षेत्रों में आसानी से मशीनों से काम हो रहा है।युवाओं और बुध्दिवादियों के लिए उचित अवसर है कि वे नए भारत की रचना हेतू अपने प्रयासों को अपने विचारों,ऊर्जा और सपनों से समर्पित कर दें। जो लोग प्रसिध्दि पैसा पद पसंद करते है ,वे सदैव समाज के हितों के विराधी होते है । पेरियार के अनुसार नफरत ना करना और सभी से प्रेम करना यहीं आज की जरुरत है ।जो लोगों को अज्ञान में रखकर राजनीति में प्रमुख स्थिति प्राप्त कर चुके है,उनका ज्ञान के साथ कोई संबंध नहीं माना जा सकता ।दुनिया के लिए एक ऐसा धर्म आवश्ययक है जो प्रेम, सहायता,सत्य का सम्मान कराना सिखाता हों । हमें संस्कृति सभ्यता से कई अधिक भारत भविष्य के लिए चिंतित होना चाहिए जिसके लिए अधिक से अधिक तकनीक शोध की सोच रखना होगा ।धार्मिक गुरूओं को जनता के बीच जाकर यह बताना चाहिए कि रामायण में किस तरह से लोगों का जनहित है ।सामाजिक कार्यों में राजनीति को नहीं घसीटना चाहिए। पेरियर लिखते है मनुष्य ने ईश्वर की खोज प्राकृतिक विधि विधान से की है मोदी ने इसी विधि विधान से राममंदिर भूमिपूजन किया।पेरियार ने कम्ब रामायण ,तुलसीदास रामायण, बौध्द रामायण, जैन रामायण ,अयोध्याकांड ,सुंदरकांड कई राम आधारित ग्रंथों का 40 वर्ष तक निरंतर सम्यक अध्ययन किया,जिनकी चर्चा मोदी ने अपने संबोधन में की थी । लेकिन मोदी ने उत्तरप्रदेश के ही ललई सिंह की सच्ची रामायण की चर्चा नहीं की।1967 में सुप्रीम कोर्ट ने ललई सिंह यादव की सच्ची रामायण के खिलाफ तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार की याचिका को खारिज कर दिया था । स्वामी विवेकानंद से लेकर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पेरियार के विचार की तरह ही रामायण को मिथक ग्रंथ बताया था। लेकिन अब इस पर राजनीतिक परिदृश्य बिल्कुल बदला हुआ है । जो देशहित में सही नहीं है ।तकनीक के दौर में धर्म राजनीति हर वर्ग के गरीब समाज के लिए भी घातक है
सत्ता के लिए धर्म का इस्तेमाल ना हो
कोई भी पार्टी हो यदि वह धर्म का यूज सत्ता पाने के लिए करती है तब यह ना केवल लोकतंत्र बल्कि उस धार्मिक समाज और राजनीति के साथ साथ राष्ट्र के लिए भी खतरनाक होती है।क्योंकि अधिकतर सत्ता और सरकार पूंजीपतियों के ही इर्द गिर्द घूमती है,और जिसे चलाते है बुध्दिवादी लोग । पूंजीपति और बुध्दिवादी लोग कतई गरीब जनता का ख्याल नहीं रखते है ।फिर चाहें वे उस समाज से हो जो धार्मिक राजनीति का समर्थन करते है या धार्मिक नेताओं की भड़काऊ भावनाओं में बहते है। राम मंदिर आंदोलन की मुख्य नींव रखने वाले लालकृष्ण आडवाणी को ही पूंजी और बुद्धि वादियों ने कैसे नजरअंदाज कर दिया भविष्य के नए भारत को इस ओर ध्यान देना होगा कि कैसे हमसे अधिक जनसंख्या वाला देश चीन जो हमारे साथ आजाद हुआ तकनीक शोध के दम पर आज विश्वशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। 135 करोड़ भारतीयों को देशहित के लिए मन में प्रण लेना चाहिए जो भी पार्टी राजनीति में धर्म घूसेड़ेगी उसे सत्ता से बेदखल करेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही कई रामायण के नाम लिए लेकिन उन्होंने उत्तर प्रदेश के ललई सिंह यादव की पेरियर विचार आधारित सच्ची रामायण की चर्चा नहीं की जिसे उच्चतम न्यायालय ने उचित ठहराया है।जबकि उच्चतम न्यायालय के आदेश पर ही राम मंदिर निर्माण हो रहा है।
Comments
Post a Comment