किसान पहाड़ों के साथ सियासत के आंसू.


 समय समय पर आंसू  क्या बयान कर जाते है ये तो आंसू ही बता सकते है भारत में इस समय सियासत से लेकर विपक्ष ...किसान के रूप में टिकैत रो रहे है तो वहीं पहाड़ अपनी पीडा इंसान की बर्बादी के तौर पर जगजाहिर कर रहे हैं 
सड़क से लेकर संसद तक .इंसानों से पहाड़ो तक  भारत में आंसूओं की गंगा बहने लगी हैं किसान से लेकर देश के प्रधानमंत्री के साथ विपक्ष के नेता आंसू बहा रहे हैं .कभी आंसू भावनाओं में बहते हैं तो कभी पीड़ा के जख्मों में .तरक्की और विकास के नाम पर सरकार और समाज ,प्रकृति से खिलवाड़ करते जा रहे है जो धरती को रास नहीं आया . पहाड़ों को पहाड़ जैसे जख्म हुए तो उनको भी आंसू आ गए उनके आंसूओं ने तो ऐसी तबाही मचायी की कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे जिस्म में जख्म हो गए जिनकी चर्चा पूरे विश्व में शुरू हो गई ..विकास के नाम पर विकास की टिहरी चमोली जैसी प्राचीन बस्ती उजड़ गई ..और भागीरथी जटाओं में इंसानी सेंध लगा दी जिसने  इंसान को सोचने पर मजबूर कर दिया कि इंसानो को ही नहीं पहाड़ों को भी दर्द होता है  .राज्यसभा में मंगलवार को आतंकी घटना का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी रो पड़े, उसी घटना को याद कर गुलाम नबी आजाद भी भावुक हो गए। और उनके भी आंसू छलक पड़े। जो देश में चर्चा का विषय बन गया  .गुलाम नबी आजाद ने बेघर कश्मीरी पंडितो की पीड़ा को संसद मे प्रकट किया .आजाद ने सरकार से कश्मीरी पंडितो के उजड़े आशियाने को फिर से बनाने की अपील की ..लेकिन प्रकृति के उजड़े आशियानों पर कब कौन कहां बात करेगा जिसने सैकड़ो प्राकृतिक आशियानों को उजाड़ दिया   
 .फिलहाल टिकैत के आंसूओं को किसान के रूप में दुनिया देख रही है वैसे राजनीति में राकेश टिकैत दो बार चुनाव हार चुके है शायद तब उनके आंसूओं की कोई कीमत नहीं थी लेकिन अब किसानों की भावनाओं से जुडे होने के कारण टिकैत के आंसूओं की कीमत भीड़ के रूप दिखाई दी.  किसान और 'खाप' पंचायत तक सीमित रहने वाले टिकैत के आंसू अब सरकार को चुनौती दे रहे है ... टिकैत के एक भावुक वीडियो ने चार राज्यों के किसानों में भी आंदोलन की एक नई ऊर्जा पैदा कर दी .जो भीड़ के रूप में सड़क पर देखने को मिली धरती का किसान पुत्र कडक़ड़ाती ठंड में प्रकृति के साथ कष्ट के आंसू बहाता रहा  और ओंस की तरह सरकार को कोसता रहा  .संसद में सियासत के आंसू तो भावना सहयोग सेवा तारीफ के हंसी ठिठोलो में सिमट जाएंगे वहीं किसानों के रूप में टिकैत के आंसू कानून में सिमट जाएंगे लेकिन इंसान की तरक्की से कुदरत को आया गुस्सा .पानी तूफान की तरह आगे बढ़कर विकास को बहाकर ले जाएगा.

लेखक 
आनंद जोनवार

Comments

Popular posts from this blog

रंगहीन से रंगीन टीवी का बदलता दौर और स्क्रीन

हर गुलामी और साम्प्रदायिकता से आजादी चाहते: माखनलाल

ब्रिटिश भारत में लोकतंत्र के जन्मदाता, मॉडर्न इंडिया के सबसे महान शूद्र महात्मा फुले-डॉ आंबेडकर