विचलित करने वाले होते है मंच और मन, मौका शिक्षा मुकाम मंजिल से मिलता है सम्मानित गौरव

विचलित करने  वाले  होते है मंच और मन, मौका  शिक्षा मुकाम मंजिल से मिलता है सम्मानित गौरव

15 नवम्बर बिरसा मुंडा जयंती पर भारतीय जनता पार्टी  की केंद्र सरकार द्वारा घोषित जनजातीय गौरव दिवस जन जातीय समुदाय में जमने का भाजपा का राजनीतिक कदम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा मंच से इसकी घोषणा देश के दिल में बसे मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करने जा रही है। बीजेपी बिरसा मुंडा जन्म जयंती के शुभ अवसर को  ऐतिहासिक दिन के तौर पर सुर्खिया बंटोरते हुए आदिवासी लोगों के दिलों में बस कर एक शुभ चिंतक और हितैषी पार्टी बनकर उभरने का प्रयास कर रही है। अजब गजब एमपी की जमीन से लाखों आदिवासियों की मौजूदगी में बीजेपी देश के कोने कोने में बसे प्रकृति संरक्षणवादी को ये संदेश देना चाहती है कि बीजेपी  इस समुदाय का ध्यान रखना जानती है। जल जंगल जमीन का पालन पोषण करने वाले लोगों को नरेंद्र मोदी के सानिध्य में भाजपा का मानना है कि देश उनके गौरव  क्रांतिकारी आंदोलन की बिना अनदेखी किये हुए  सम्मान में पीछे नहीं हटेगा। आजादी के आंदोलन में छिपे आदिवासी वीरंताओं के क्रांतिकारी पन्नों से जनजातीय समुदाय में गौरव सम्मान की सामूहिक भावना जागृत की जायेगी। खबरों से मिली जान कारी के मुताबिक इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आदिवासी नेताओं के साथ मंच साझा करेंगे।  मोदी मंच  से आदिवासी  समुदाय में ये संदेश देने का प्रयास करेंगे की बीजेपी सत्ता में आदिवासियों की बराबर भागीदारी हैं। उनके सम्मान गौरव का हमेशा ख्याल  रखा जायेगा।
मंच ही नहीं पीएम मोदी ने उन तमाम अगड़ी जाति के बीजेपी नेताओं की मांग को ठुकरा दिया जो हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम पूर्व पीएम स्व अटल बिहारी बाजपेयी के नाम पर रखने की मांग कर रहे थे। प्रदेश की शिवराज सरकार ने भी  सोशल मीडिया और बयानों की मांग को नकारते हुए सरकारी कागज की अनुशंसा पर भोपाल की अंतिम जन जातीय वर्ग गोंड की रानी कमलापति करवाने के साथ ये आदिवासी  समुदाय में संकेत दे दिया की बीजेपी के मन और मंच में आदिवासी कल्याण सेवा सहयोग संगठन और भागीदारी समायी हुई है।  

बीजेपी को क्यों जरूरत पड़ी आदिवासियों के गौरव और सम्मान की
दरअसल बीजेपी का चुनावी राजनीतिक कुनबा ये जानता है कि एसटी वोट को बीजेपी पक्ष में किये बिना सत्ता पर काबिज नहीं हुआ जा सकता। 2018 के विधानसभा  चुनावों में  एससी एसटी  एट्रोसिटी एक्ट के विवाद के चलते राजस्थान छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश समेत कई प्रदेशों में  बीजेपी  को पटकनी मिली और उन राज्यों में जहाँ आदिवासी वोट बैंक अधिक है वहाँ बीजेपी सत्ता से दूर हो गई। जन जातीय समुदायों में दोबारा पैठ बिठाने के लिए बीजेपी एक बार फिर पुर जोर कोशिश कर रही है। ताकि आने वाले आगामी चुनावों में  इसका फायदा बीजेपी को मिल सकें। 
कई स्थानों पर बिरसा मुंडा जयंती  को आदिवासी अधिकार दिवस के रूप में भी मनाया जा रहा हैं। 

मंचीय मन से नहीं मौका मुकाम मंजिल से मिलता है सम्मानित गौरव 
राजनीतिक चुनावी गलियारों के चुनावी विशलेषकों के मुताबिक  मध्यप्रदेश में अभी हाल ही हुए चार सीटों के उपचुनावों में बीजेपी के पसीने छूट गए थे। इन सीटों पर आदिवासी वोट बैंक प्रमुख था। इस वोट बैंक को रिझाने के लिए कोविड संक्रमण  को नजर अंदाज कर बीजेपी ऐसे बड़े बड़े मंचीय कार्यक्रम करने जा रही  है। जबकि कोविड महामारी में प्रकृति की गोद में बसे इन लोगों के यहाँ कोरोना पहुँच भी नहीं सका, ऐसे में लाखों आदिवासी लोगों को एक जगह इकट्ठा करना किसी खतरे से कम नहीं है। क्योंकि अभी भी कोविड पूरी तरह गया नहीं है। ऐसे में जिन आदिवासी  इलाकों में आज भी स्वास्थ्य सुविधाएं गोते लगा रही है , हेल्थ सिस्टम जर्जर पड़ा है। वहाँ सावधानी की जरूरत अधिक पड़ सकती है। और मात्र वोट के गौरव के चक्कर में अपनी और अपने परिवार की जिंदगी खतरे में  डालना है।
वैसे भी माना जाता है की आत्म  सम्मान शिक्षा ज्ञान और लक्ष्य  के बिना गौरव प्राप्त नहीं किया जा सकता। जो बिना मौके मिले हासिल नहीं  होता। प्रदेश के मुखिया को उपचुनावों की मंच से ये घोषणा  क्यों करनी पड़ी की छुट पुट मामलों में  आदिवासियों पर दर्ज मामले वापस लिए जाएँगे। सूबे के  सीएम का यह चुनावी स्टंट दो इरादों की ओर संकेत करता है। पहला ये की आदिवासियों के केस वापस कर इनका वोट प्राप्त किया जाए। दूसरा सत्ता पहले इन पर अपनी लाल फीताशाही के सहारे इन पर जान  बूझकर  मुकदमा ठुकवाएं।आदिवासियों पर लगा छोटे से छोटा केस उनके और उनके परिवार का जीवन तबाह कर देता है। प्रकृति के पालनकर्ता जब कोर्ट कचेरी की सीढ़ियों पर चढ़ते है तो वोट रिझाने वाली ऐसी सत्ताओं को सिर्फ कोसते ही हैं। सूबे के मुखिया को कौन समझाए की मामले की गंभीरता उस  खाकी सोच और न्याय की अंधी कलम पर निर्भर होती है जो सत्ता के इशारों पर चलती है। क्या बीजेपी शिक्षा  और मौका छीनकर बिना मुकाम मंजिल हासिल किए हुए आदिवासियों को सिर्फ मनीय मंच से सम्मान और गौरव दिला सकती है।  क्या लोकतंत्र सिर्फ वोट तक सीमित  होता है।  सत्ता की चमक दमक  डेमोक्रेसी को केवल मत तक सीमित रखना चाहती है। जबकि असली डेमोक्रेसी तब है जब निर्णय फैसले कानून नियम बनने में हर समुदाय की सार्वजनिक सामूहिक साझेदारी शामिल हो। मन और मंच सिर्फ विचलित करने वाले होते है वो किसी को गौरव नहीं दिला सकते। 

आँखों के सामने कैसे लिखा जा रहा है भगवान का इतिहास 
बिरसा मुंडा जयंती पर सरकार के तमाम विज्ञापनों के पोस्टरों  में  क्रांतिकारी  बिरसा के आगे भगवान लिखा है। दरअसल इस पर सवाल उठाना इसलिए जरूरी है क्योंकि भारतीय संविधान में धार्मिक आजादी नागरिक को मिली है ना कि सरकार को। भले ही आदिवासी समुदाय महान  स्वतंत्रता संग्रामी बिरसा को महापुरुष के तौर पर पूजते है प्रेरणा लेते है। लेकिन सरकार की भगवान नाम की योजना भविष्य में क्रांतिकारी  के महान कार्यों से मिलने वाली प्रेरणा के वजह सिर्फ पूजने तक सीमित हो सकते है।  स्वामी विवेकानंद,  महात्मा गांधी, डॉ अंबेडकर, भगत सिंह, चंद्रशेखर जैसे कई महापुरुषों को अलग  अलग समुदाय वर्ग की पीढी़ में पूजा जाता है,उनके नाम के आगे आज तक भगवान जैसे शब्द से सरकार बचती रही है तो इस सीधे साधे समुदाय के  क्रांतिकारी महापुरुष का भगवानीकरण इस दौर में क्यों किया जा रहा है। क्या  भविष्य में वर्तमान दौर को भगवान का नया युग पुकारा जायेंगा।

बिरसा जयंती पर युवा आदिवासी नेता क्या कहना है? 
भास्कर हिंदी  संवाददाता आनंद जोनवार ने बिरसा जयंती पर जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन के अध्यक्ष विधायक डॉ हीरालाल अलावा से बात कि उनका कहना है कि  स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनकारी क्रांतिकारी  बिरसा मुंडा सभी आदिवासियों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत है, जिन्हें सभी मूलनिवासी पूजते है और उनके जीवन से प्रेरणा लेते है। उनका मानना है कि  बिरसा मुंडा न केवल आदिवासी बल्कि सभी देशवासियों के जीवन के लिए संसाधनों के अभाव में कैसे संघर्ष किया जाए इसकी प्रेरणा देने वाले क्रांतिकारी  महापुरुष है। उनका मानना है कि बिरसा जी शक्ति संघर्ष  संगठन सेवा सहयोग सामर्थ्य के प्रतीक है। बीजेपी के जनजातीय गौरव  दिवस को लेकर विधायक का मानना है कि  आदिवासियों ने या यूं कहे  बीजेपी ने इस समुदाय को  ऐसी कौन सी उपलब्धि हासिल करवा दी जिसके चलते है बीजेपी जनजातीय गौरव दिवस मना रही है। उनका मानना है कि भाजपा का ये प्रोग्राम न सिर्फ आदिवासी संस्कृति से खिलवाड है बल्कि उसे धीरे धीरे  बदलने की साजिश है। उन्होंने कार्यक्रम के नाम पर भी सवाल खडा कर दिया। उनका कहना है बीजेपी शासन और प्रोग्राम स्तर पर आदिवासी शब्द की जगह जनजातीय  और वनवासी शब्द का इस्तेमाल करती है। ऐसा कर वह आदिवासियों की संस्कृति को न केवल नुकसान पहुँचा रही है बल्कि उसे बदल भी रही है। चाहें आदिम जाति कल्याण विभाग हो या आदिवासी छात्रावास बीजेपी नाम बदलती है। ऐसा करके बीजेपी  आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान मिटाने में  जुटी है। आगे उन्होंने प्रदेश की शिवराज सरकार पर निशाना साधते हुए क्या कि शिवराज पहले आदिवासियों पर झूठी एफआईआर करवाते है और फिर चुनावों में वोट बंटोरने के चलते उन मुकदमों को वापस करने का झूठा वादा करते है। वर्तमान में हजारों आदिवासियों पर मनगढ़त मामले लगे हुए है। जिनके चलते आदिवासी युवा पढ़ाई नहीं कर पा रहे। ऐसे में बीजेपी सरकार उनसे मौका और शिक्षा छीनकर  गौरवान्वित महसूस कर रही है न कि आदिवासी। 
जनजातीय गौरव दिवस पर बीजेपी विधायक कुछ कहने से बचे
जयसिंह नगर से अनुसूचित जनजाति विधायक जयसिंह मरावी से जब भास्कर हिंदी संवाददाता आनंद जोनवार ने जन जातीय गौरव दिवस पर बीजेपी शासन  में आदिवासी वर्ग ने  कौन सी उपलब्धि हासिल कर ली जिससे भाजपा को एसटी समुदाय के लिए  गौरव दिवस मनाने की जरूरत पड़ रही है। सवाल के जवाब में विधायक कुछ बोलने से बचे।  वहीं  जब कांग्रेस विधायक डॉ हीरालाल अलावा के आरोप के जवाब में विधायक मरावी  का मानना है कि कांग्रेस तो प्रोग्राम का विरोध कर रही है। वहीं कार्यक्रम को लेकर विधायक मरावी से पूछा गया कि जनजातीय गौरव दिवस प्रोग्राम पर आगे क्या कहना चाहेंगे तो विधायक ने जवाब देने के बजाय चुप्पी नहीं तोड़ी और कॉल डिसकनेक्ट कर दिया।  जबकि उनके ही जिले शहड़ोल में बिरसा जयंती पर  आदिवासी अधिकार दिवस धूम धाम से मनाया जा रहा है।

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