तीन राज्यों में किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं, मणिुपर में बीजेपी तो गोवा में काग्रेस बहुमत के करीब

पांच राज्यों के चुनावी नतीजों को लेकर एग्जिट पोल के रूझान उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण की वोटिंग खत्म होने के साथ ही आने लगे है। उत्तरप्रेदश उत्तराखंड और पंजाब  उत्तर भारत के तीन राज्य वहीं दक्षिण भारत के गोवा और पूर्वांचल के मणिपुर में विधानसभा चुनाव हुए जिसके नतीजे 10 मार्च को आएंगे। हालांकि अभी तक के चुनावी एग्जिट पोलों में करीब 90 फीसदी तक के पोल सटीक बैठते हुए दिखाई नहीं दिए। ज्यादातर एग्जिट पोल के अनुमान गलत साबित हुए है।
एग्जिट पोल के मुताबिक पंजाब में आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर  उभरती हुई दिखाई दे रही है। हालांकि वह सियासी आंकड़ा छूती हुई दिखाई नहीं दे रही । वहीं कांग्रेस को पहले से नुकसान होते हुए दिखाई दे रहा है। यदि ऐसा होता है तो अकाली दल और बसपा भी बाजी मारते हुए दिखाई दे सकते है। ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र की तर्ज पर कांग्रेस बसपा और अकाली दल तीनों मिलकर सरकार बना सकते है। हालांकि पंजाब में बीजेपी बुरी हालात में नजर आ रही है। 
एग्जिट पोल के अनुमानों में उत्तराखंड में बीजेपी और कांग्रेस में कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। पोल में यहां भी किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलते हुए दिखाई नहीं दे रहा है। 10 मार्च के चुनावी परिणामों में यदि एग्जिट पोल के मुताबिक रिजल्ट आता है तो आप और बीएसपी पार्टी किंगमेकर के रूप में देखने को मिल सकती है। हालांकि पोल के ये सभी आंकड़ें व्यवहारिक नजर नहीं आ रहे है।  पिछले परिणामों की तर्ज पर इस बार भी  पहाड़ी सियासत बदलती हुई नजर आ रही है। कांग्रेस यहां सरकार बनाने के करीब है।
गोवा गद्दी के सियासी रंग बदलते हुए दिखाई दे रहे है। बीजेपी कांग्रेस दोनों की टक्कर के बीच सियासत के लिए  यहां  अन्य तीसरी पार्टी की जरूरत पड़ती हुई दिखाई दे रही है। हालांकि गोवा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में आती हुई दिखाई दे रही  है।
 
पूर्वांचल में आने वाले मणिपुर में मोदी लहर साफ नजर आ रही है। यहां बीजेपी एक बार फिर मुखिया की कुर्सी में पाने में कामयाब होती हुई दिखाई पड़ रही है। कांग्रेस भी पहले की अपेक्षा यहां अच्छा प्रदर्शन करते हुए नजर आ रही है।
बात अगर देश के सबसे बड़े प्रदेश की सियासत की जाए तो चुनावी नतीजों में पेच फंसते हुए दिखाई दे रहा है। मेरे अनुमान के मुताबिक यहां बीजेपी को बहुत ज्यादा नुकसान होते हुए तो दिखाई नहीं दे रहा है। हालांकि 2017 के चुनावी नतीजों की तुलना में बीजेपी की सीटों में काफी गिरावट देखने को मिलने की उम्मीद है।
यहां सपा आरएलडी गठबंधन को पहले की अपेक्षा काफी सीटों का मुनाफा होते हुए दिखाई दे रहा है। लेकिन वह बहुमत के आकड़े से दूर है। यूपी के चुनावी प्रचार के मैदान में भाजपा और सपा ही रही, लेकिन चुनावी मोड़ में साइलेंट मोड़ में रहे हाथी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। चार दशक पहले बीएसपी ने जिस मूल मंत्र के साथ अपनी पार्टी की नींव रखी थी, उसे भूलकर केवल बहुजन की बात करने वाली बसपा ने समय बदलने के साथ अपनी विचारधारा को बदला और बहुजन से सर्वजन की बात की, जिसका फायदा उसे मिलते हुए दिखाई दे रहा है। चार दशक पुरानी जिस विचारधारा को बसपा ने समय बदलने के साथ छोड़ा उस विचारधारा के फॉर्मूले को इस चुनाव में भाजपा ने 80-20 तो सपा गठबंधन ने 85-15 के रूप में पकड़ा। जिसका नुकसान दोनों पार्टियों को होते हुए दिखाई दे रहा है। 2007 की तर्ज पर एग्जिट पोल से बाहर रही बसपा ने सोशल इंजीनियर पॉलिटिक्स पॉलिसी से सत्ता की गद्दी पाई वह इस बार दिखे ऐसा होते हुए दिखाई नहीं दे रहा है। लेकिन बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की तरफ से अंत में बसपा प्रमुख मायावती की तारीफ की तब से चुनावी माहौल में नया मोड़ आया और तब से हाथी मजबूत अवस्था में दिखाई देने लगा। 2017 के चुनावी नतीजों में करीब 100 से अधिक सीटों पर दूसरे नंबर पर रही  बसपा इस बार इन सीटों पर कड़ी टक्कर देती हुई दिखाई दे रही है। ऐसे में किसी एक पार्टी के पक्ष में नतीजे आए ऐसा कम ही देखने को मिलेगा। यूपी में इस बार त्रिकोणीय परिणाम देखने को मिल सकते है।

लेखक 
आनंद जोनवार

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