शिक्षाविद् आचार्य रामदेव भारद्वाज,शिक्षा शोध और सृजनात्मक लेखनी से दुनियाभर में बनाई पहचान

महान शख्सियत की पहिचान उनके कार्यो से होती है, मध्यप्रदेश के ग्वालियर में जन्में पले पढ़ें महान व्यक्तित्त्व के धनी रामदेव भारद्वाज ने शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। प्रारम्भिक शिक्षा के दौरान से ही रामदेव शिक्षा के प्रति बेहद चिंतनशील, गंभीर, होशियार परिश्रमी और आज्ञाकारी थे ,बाल शिक्षा से ही उनमें प्रतिभा स्पष्ट तौर पर दिखाई देने लगी थी। जो उनके पूरे जीवन में प्रदत्त होती हुई नजर आई।
स्कूली शिक्षा के बाद महान शिक्षाविद् आचार्य भारद्वाज ने पॉलिटिकल साइंस में गोल्ड मेडल प्राप्त कर स्नातकोत्तर की डिग्री जीवाजी यूनिवर्सिटी ग्वालियर से 1980 में उत्तीर्ण की। 1985 में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली से एम फिल एवं 1992 में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर से उन्होंने पीएचडी की।
आचार्य रामदेव भारद्वाज, अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल में कुलपति रहे। इससे पहले आचार्य भारद्वाज ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में कुलाधिसचिव एवं म.प्र. भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय, भोपाल में निदेशक के दायित्व का निर्वहन किया। आचार्य भारद्वाज, राजनीति विज्ञान के आचार्य एवं समाज विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता रहे हैं। 
अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय में कुलपति रहते हुए आपने स्टूडेंट के हितों में कई नवाचार काम किए। आपने मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में अहम भूमिका निभाई। आपके सहयोग से ही  सूखी सेवनिया के मुगालिया कोट में हिंदी विश्वविद्यालय को अपना परिसर मिल पाया।
मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी भोपाल ने 2006 में सम- समयिक विषयों के सिद्धहस्त लेखक आचार्य भारद्वाज को राजनीतिक विज्ञान एवं लोक प्रशासन में सृजनात्मक लेखन के लिए डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा सृजन सम्मान प्रदान किया था। म.प्र. उच्च शिक्षा अनुदान आयोग की राधाकृष्ण सम्मान समिति ने आचार्य भारद्वाज के दो आलेखों को पुरस्कृत किया है
आचार्य भारद्वाज द्वारा प्रमुख 14 पुस्तकों का शोधपूर्ण लेखन किया गया है - (1) चाइनाज़ इकनामिक लिब्रलाइज़ेशन (2) सुकार्नो एण्ड इण्डोनेशियन नेश्नलिज़्म (3) क्राइसिस ऑफ़ मोरलिटी इन लीडरशिप (4) इंटरनेशनल पालटिक्स: कंटेम्प्ररेरी ट्रेन्डस् एण्ड इश्यूज़ (5) भारत और आधुनिक विश्व (6) कारगिल संकट और समाधान (7) भारत और अंतर्राष्ट्रीय संबंध   (8) अंतर्राष्ट्रीय राजनीति: सिद्धांत और समसामयिक समस्याएँ  (9) राजनय एवं मानवाधिकार (10) विवेकानंद, सुकार्नो एवं इण्डोनेशियाई राष्ट्र निर्माण एवं (11) कन्फ़लिक्ट, टेरर एण्ड वोइलैस इन इण्डियन सोसाइटी एण्ड पॉलिटी प्रमुख हैं।
इंडोनेशियाई सरकार की ओर से मिली अंतर्राष्ट्रीय शोध के तहत आचार्य भारद्वाज ने गजामडा यूनिवर्सिटी जकार्ता में इंडोनेशियाई, इतिहास, संस्कृति, साहित्य एवं भाषा अकादमी सत्र 1984-85 में अध्ययन किया। इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकानो पर किए शोध के लिए आपको गोल्ड मेडल से नवाजा गया। 
आचार्य भारद्वाज 1999 के लिए सालजवर्ग फैलो भी रहे, स्लासलियोपोलडरकोन के आमंत्रण पर सालजवर्ग इन्सुवर्ग तथा वियाना विश्वविद्यालय एवं आस्टिन इंस्टीट्यूट आफ इन्टरनेशनल अफेयर्स लेकसमवर्ग में आपने भारत की विदेश नीति व अंतरराष्ट्रीय संबंध पर व्याख्यान दिया। आपको निप्पाने फाउंडेशन जापान द्वारा 1999 -2000 में अकादमिक नेतृत्व के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की गई।
आचार्य भारद्वाज के निर्देशन में 12 शोधार्थियों ने शोध-कार्य किया है। आचार्य जी के सैकड़ों आलेख अंतर्राष्ट्रीय ,राष्ट्रीय समाचार पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके है। आपके अधिकतर शोध आलेख इण्डोनेशियन क्वाटरली, पेइचिंग रिव्यू, चाइना टुडे, गांधी मार्ग, स्ट्रेटिजिक एनालिसिस, पॉलिटिकल साइंस रिव्यू, इंडियन जनरल ऑफ़ पॉलिटिकल साइंस, रिव्यू ऑफ़ पॉलिटिक्स मध्यभारती, जर्नल्स् ऑफ़ द इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन राइट्स गगनांचल आदि में प्रकाशित हुए हैं।
आचार्य भारद्वाज ने चीनी समाज विज्ञान अकादमी में प्रो बाग शूइंग के साथ तीन पुस्तकों का हिंदी भाषा में सफल संपादन किया, इन पुस्तकों के नाम (1) सिनो-इण्डियन कल्चरल एक्सचेंज एण्ड काम्पेरेटिव स्टडी (2) बुद्धिज़्म एण्ड चाइनीज़ कल्चर एवं (3) रिलीजन एण्ड इण्डियन सोसायटी है। इनके संपादन के साथ-साथ पोट्रेट्स ऑफ़ ऑडिनरी चाइनीज़ का हिंदी अनुवाद भी किया।
विदेशी भाषा प्रकाशन गृह, पेइचिंग, चीन में अकादमिक सत्र 1991-92 में आप इण्डियन स्कॉलर रहे तथा एशिया-प्रशान्त अध्ययन संस्थान, चीनी समाज विज्ञान अकादमी, पेइचिंग से सम्बद्ध रहकर चीन की खुले द्वार की नीति व आधुनिकीकरण, चीन में विवेकानंद , महात्मा गांधी तथा कन्फ्यूशियस एवं भारत-चीन संबंधों पर शोध कार्य किया। 
आपके आलेख चीनी, जापानी, स्पेनिश एवं  फ़्रेंच भाषा में भी अनूदित एवं प्रकाशित हुए हैं। भारत-चीन सांस्कृतिक आदान-प्रदान से संबंधित बारह खण्डों में प्रकाशित हो रही पुस्तक की संपादन समिति में आप मनोनीत भारतीय सदस्य भी रहे।
वे मूलत: ग्वालियर के रहने वाले थे। और करीब दो दशक से मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में रह रहे थे। लेकिन अपनी शिक्षा, शोध कार्य और सृजनात्मक लेखनी के बलबूते उन्होंने अपनी छाप प्रदेश के साथ साथ देश विदेश में भी छोड़ी। कुछ समय पहले ऐसी पवित्र ईमानदार आत्मा हम सभी को छोड़कर परलोक गमन प्रस्थान कर गई। लेकिन शिक्षा के रूप में वो आज भी हमारे बीच मौजूद है। जो युगों युगों तक बनी रहेगी।

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