फीका पड़ता पाताल का रंग बोर्ड ऑफिस भोपाल से अपनी पूरी टीम के साथ निकल पड़े देश के दिल की गहराइयों में बसे पातालकोट के बारे में फैली भ्रामक बातो की सत्यता की पुष्टि करने की पड़ताल और विकास की नब्ज टटोलने। शहर से ही लगने लगा कि विकास अपने पैर पसार रहा है। मंजिल तक पहुंचते-पहुंचते ना जाने कितनी मंजिलें धराशाई होते हुए दिखी, ये सीमेंट कंक्रीट की वो मंजिलें थी , जिन्हें पुन: बना सकते हैं। घुमावदार -लहरदार ,ऊंची -नीची सड़कों से होशंगाबाद ,बाबई में बंद्री की चाय की गर्म- गर्म चुस्कियां पीकर, पिपरिया ,तामिया होते पातालकोट के गांव गैलडूब्बा ,डर भरी रात ,संदेह को मन में पाले हुए , सुनी हुई भ्रामक बातों को ध्यान में रखे हुए रात 10:30 बजे सुख ,सुविधा, संपन्न छाती को चीरती हुई सड़कों से वहां पहुंचे तो छाती सुकून से भरी और मन प्रकृति की खुशबू से प्रफुल्लित हो उठा ।सीधे-साधे सहज सरल स्वभाव वाले प्रकृति के पुत्रों से परिचय हुआ तो परचम लहरा रहा विकास मन में समा गया। झाड़ के छोटे-छोटे बेर रूपी टमाटर की चटनी, बैगन का भरता, मक्का ,गेहूं की रोटी ,दाल- चावल सामूहिक ...