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Showing posts from March, 2019

स्वच्छ राजनीति के लिए संज्ञान ले -इ .सी.

बागियों का दौर........ कब खत्म होगा? बेहड़ बागी बनाम पार्टी बागी समाज का सताया हुआ समाज में  बागी बना,उसने अनगिनत नुकसान पहुंचाए सरकार की प्रायोजित कल्याण कारी योजनाओं से ऐसे बागी तो बाकी नहीं बचे। आज बंदूक लिए घोड़े पर धड़म धड़म चलने वाले बागी देखना तो दूर ख़बरों में भी सुनाई नहीं देते। यह शायद कानून का डर,बदलते वक़्त के साथ बेहतर शासन व्यवस्था और सरकार की मंशा से संभव हुआ। बागियों को देखने की ख्वाहिश ,मन को बहलाने ,आंखो को झूठी संतुष्टि देने के लिए खड़क सिंह के खड़कने वाले डाकू बागी आंखों को फिल्मी पर्दे पर दृष्टिगोचर हो जाते है। आखिरकार सरकार के तमाम उपाय सफल हुए। उन बेहड बागियों का स्थान राजनैतिक बागियों ने ले लिया। जो ऊब- ब -हूं पुराने बागियों के जैसे  दिखते है। ये बंदूक से नहीं  लोकतंत्र मजबूती का लुभावना वादा करके राजनीति का सहारा लेकर मतदाताओं को वोटों से लूटते हैं। भोली-भाली जनता को लूटने वाले कभी कभी खुद भी लूट जाते है।और ये भरोसे पर धोखा खा कर अपनो को धोखा देते है। वो बेहड़ों के बागी कहलाते थे,ये पार्टी बागी से पुकारे जाते है। इनकी इतनी उपियोगिता जरूर है कि जनता के लिए

बच्चों की शिक्षा से खिलवाड़

लोकतंत्र समझने का असली औजार शिक्षा,कमजोर ! लोकतंत्र का असली पर्व आते ही सियासी तवा गर्म होने लगा जिस पर सियासी लोग रोटी सेकने का  अपना -अपना हुनर और तजुर्बा दिखाएंगे। सत्ता में आते ही सत्ता तक पहुंचाने वालो की रोटीयों को छीन कर अपना पेट भरने में लग जाते है।  सत्ताधारी खाने में इतने मगरूर हो जाते है कि उन गरीब लोगों के बच्चों की पेट भरने वाली पहली फसल शिक्षा को ही बर्बाद करने पर उतारू हो जाते है । लोकतंत्र को पोषित करने वाला मुख्य औजार शिक्षा उनसे  छीन लिया जाता है । यह वही औजार है जो लोकतंत्र को समझने और उसे सौहार्दय  रूप प्रदान करने में सहायक होता है। भारत जैसे देश में सामाजिक सौहर्दता तभी संभव है जब लोग एक -दूसरे को समझते हुए एक- दूसरे की संस्कृति को सम्मान दें यह बिना शिक्षा ज्ञान के संभव नहीं है। स्कूलों की स्थापना के पीछे गहरी समझ यह है कि यहां बच्चें पढ़ना-लिखना सीखें उनमें अपेक्षित संवैधानिक मूल्य विकसित किए जाए। खेल खेल में सीखने   वाले बच्चों की  शिक्षा  से खिलवाड़ कैसे और क्यों की जा रही है इनसे पूछना जरूरी है?। शिक्षा के स्तर पर अनेकों रिपोर्ट हवा की तरह  आती है और चली जात

एक अनोखी दुनिया पातालकोट

फीका पड़ता पाताल का रंग बोर्ड ऑफिस भोपाल से अपनी पूरी टीम के साथ निकल पड़े देश के दिल की गहराइयों में बसे पातालकोट के बारे में फैली भ्रामक बातो की सत्यता की पुष्टि करने  की पड़ताल और  विकास की नब्ज टटोलने। शहर से ही  लगने लगा कि विकास अपने पैर पसार रहा है। मंजिल तक पहुंचते-पहुंचते ना जाने कितनी मंजिलें धराशाई होते हुए दिखी, ये सीमेंट कंक्रीट की वो मंजिलें थी , जिन्हें पुन: बना सकते हैं। घुमावदार -लहरदार ,ऊंची -नीची सड़कों से होशंगाबाद ,बाबई में बंद्री की चाय की  गर्म- गर्म चुस्कियां पीकर, पिपरिया ,तामिया होते पातालकोट के गांव गैलडूब्बा ,डर भरी रात ,संदेह को मन में पाले हुए , सुनी हुई भ्रामक बातों को ध्यान में रखे हुए रात 10:30 बजे सुख ,सुविधा, संपन्न छाती को चीरती  हुई सड़कों से वहां पहुंचे तो छाती सुकून से भरी और मन प्रकृति की खुशबू से प्रफुल्लित हो उठा ।सीधे-साधे सहज सरल स्वभाव वाले प्रकृति के पुत्रों से परिचय हुआ तो परचम लहरा रहा विकास  मन में समा गया। झाड़ के छोटे-छोटे बेर रूपी  टमाटर की चटनी, बैगन का भरता, मक्का ,गेहूं की रोटी ,दाल- चावल सामूहिक रूप से खाए हुए खाने ने  सतपुड़ा की

गैस त्रासदी की पीड़ा आज भी जिंदा है।

भोपाल गैस त्रासदी 3 दिसम्बर 1984 आधुनिक युग की दुनिया के इतिहास में काली परेड के यूनियन कार्बाइड कारखाने द्वारा कीड़े मकोड़ों को मारने वाले रसायन मिथाइल आइसोसायनाइड के खौफनाक रिसन से भोपाल गैस त्रासदी काले पन्नों में दर्ज हुई है । दुर्घटना गैर जिम्मेदारी, लापरवाही, लोभ,लालच और अनदेखी का परिणाम था। जिसका खामियाजा निर्दोष नागरिकों बच्चों और महिलाओं को भुगतना  पड़ा, आज भी पीड़ा का यह सिलसिला जारी है। यह सब छोटी कमियों का कमजोर विश्लेषण ,प्रबंधन और सुरक्षात्मक उपायों की कमी थी। जो सावधानियां बरतनी थी वे सावधानीपूर्वक नहीं बरती गई । टैंक E 610 में मापदंड के अनुमान 50% (30 टन)से अधिक 75%(45टन) मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का भरना और उसे रखना लालच और साजिश को दर्शाता है ,रखे होने से गैस दूषित हो गई ,साथ ही टैंक में पानी और जंग की पपड़ी चले जाने से पॉलीमराइजेशन की क्रिया शुरू हो गई थी जिसके कारण तापमान  व दबाव खतरे के निशान से कई गुना बढ़ गए, जिसकी वजह से मिक का  द्रव गैस में परिवर्तित हो गया ,गैस बनने के कारण टैंक में दबाव और अधिक बढ़ने से गैस बाहर आने लगी ,इस खतरे की सूचना देने के लिए जो  मापक

आधुनिक भारत में पत्रकारिता की शुरुआत

वैसे तो   विज्ञान कि भाषा में हिकी को  एक छोटी सी सूजन की ऊंचाई कहा जाता है । पत्रकारिता में ऐसी गर्म ऊंचाई आज से 239 साल पहले 1780 में देश के पहले अंग्रेजी भाषा न्यूजपेपर बंगाल गजट कोलकाता के प्रकाशन  से  उठी  ।  29 जनवरी 1780 को प्रकाशित  अंग्रेजी भाषा के  चार पृष्ठ का अकबार सप्ताह में एक बार प्रकाशित होता था इसके प्रकाशन से ब्रिटिश शासन में खलबली मच जाती थी । हिक्की निडर  निष्पक्ष लिखने के लिए जाने जाते थे। उन्होंने आधुनिक भारत   में पत्रकारिता की नींव डाली । अपनी निष्पक्ष लेखनी से किसी भी को नहीं बख्शा। यहां तक की वायसराय जैसे ताकतवर और ओहादागर  वारेन हेस्टिंग के द्वारा किए गए कंपनी के धन का निजी हित में उपयोग किया जाना भी उनकी कलम से नहीं बचा ।उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा एक  निडर अंग्रेज कि सच्ची  निष्पक्ष पत्रकारिता अंग्रेजों को रास नहीं आ रही थी  ।बंगाल गजट भारत और प्रकाशित होने वाला एक अंग्रेजी भाषा का पहला समाचार पत्र था। इस गजट की प्रकाशन का एक कारण बाजार के लिए सूचना उपलब्ध कराना था। साथ ही  अंग्रेजी प्रशासन में  व्याप्त भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के समाचार प्रमुखता से प्रक

नारी की दबी आवाज गूजेंगी नारी दिवस पर

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा, प्यार प्रकट करते हुए  शैक्षणिक ,आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।  इस दिन पूरी दुनिया में महिलाओं के मुद्दों पर चर्चा की जाती है, समाधान खोजे जाते हैं ,और  संकल्प लिए जाते हैं। ये दिन महिला जागरूकता और सशक्तीकरण का आयोजन है ।  जानकारी और जागरुकता जरूरी जानकारी और जागरूकता महिलाओं और पुरुषों में भेदभाव मिटाने के सबसे बड़े हथियार है। महिला दिवस की शुरुआत 1857 में न्यूयॉर्क शहर की पोशाक बनाने वाले एक  कारखाने की  महिलाएं अपने समान अधिकारों ,काम करने की अवधि में कमी ,कार्य अवस्था में सुधार की मांग करते हुए ,जुलूस निकालकर सड़कों पर उतर आई थी । सन 1910 में महिलाओं की समस्यायों के समाधान हेतु बीजिंग में एक विश्व सभा बुलाई गई थी । उसी दिन की स्मृति में प्रतिवर्ष 8 मार्च को महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। महिलाओं में अधिकारो के प्रति जागरुकता जरूरी है। तभी वे  अपनी सुरक्षा खुद कर पाएंगी , तब समाज पुलिस और कानून भी उनकी मदद करेगा। आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बने महिलाएं अंतर्राष्ट्