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Showing posts from April, 2019

तीन सांसद मुरैना से पहुंच सकते है संसद

इस लोकसभा चुनाव में मुरैना से तीन सांसद जीतकर संसद पहुंच सकते है इससे पूर्व भी दो सांसद जीतकर दिल्ली पहुंचे थे दोनों ही सांसद  भारतीय जनता पार्टी के थे । बाद में एक सांसद ने ...

कुपोषित विकास

डरा -सहमा,बेखबर, बेहद कमजोर,ठिठुरता हुआ  सीधा- साधा बच्चा जिसके रूखे बाल, सूखे होंठ, बहते हुए नम आंसू और कोमल  मुट्ठियों की गुहार  विकास की आड़ में धरी रह जाती है। उसकी जिंदगी ...

खामोशी में खुशी कहां

खुश रहो , खामोशी भगाओ खामोशी  में खुशी  सो जाती है । किसी की खामोशी दर्द भरी होती है तो किसी की खामोशी दर्द भरी पीड़ा के कारण होती है ।खामोश होना अच्छी बात है तभी तो कहा गया है अ...

घर की मालकिन, सत्ता की मालकिन बने

सत्ता में बढ़े नारी शक्ति लोकतंत्र पर्व मनाते मनाते करीब 70 साल गुजर गए । इतने साल निकल जाने के बाद भी सत्ता के गलियारों में चिंतित नारी सहमी,डरी, छिपी हुई  बैठी  है। इनकी चिंता सत्ता में बैठे नेताओं को नहीं होती?जो चिंता हुई वह आरक्षण के फंदे में फंस गई या फंसा दी गई। आजादी के समय हमारे संविधान निर्माताओं ने नारी को अधिकार पुरुष समतुल्य ही दिए । फिर  क्यों, और कैसे,इस पल्लू के छोर से सत्ता को भांपने वाली शक्ति  नारी ने घर की रसोई में उठने वाले धुएं से खांसते- खांसते ,घुटते -घुटते  दम तोड़ दिया और उसका सत्ता की सरकारी कुर्सी पर बैठने का सपना घूंघट में रह गया।कुछ जो पढ़ लिखकर देहरी से बाहर आई ,वो डिग्री लेकर सरकारी कार्यलयों में फ़ाइलो में दब गई । पुरुष प्रधान समाज में शिक्षित,धनवान, सम्पन्न बुद्धिमती नारी शक्ति घर की चार दीवारों का प्रतिनिधित्व करते हुए ,झोंपड़ी और खप्पर में रहने वाली अशिक्षित बेपढ़ नारी साथी के आशियाने पर उनकी  नजर ना पड़ती है, ना टिकती है , ना ठहरती है। ये नारी शक्ति यहीं दब जाती है ,विकास के झूठे पकवानों में।   चुनाव में याद आत...

हर गुलामी और साम्प्रदायिकता से आजादी चाहते: माखनलाल

राष्ट्र, मनुष्य और संस्कृति की रीढ़, राष्ट्रीयता : दादा शिक्षा, किसान, कलम  पत्रकारिता की आवाज, रोजगार, आज राजनीति, कॉर्पोरेट संस्थाओं के घेरे में पिस रही है ।इस  पिसते हुए युग में दादा माखन लाल जी की गुलामी से आजादी दिलाने वाली कलम की आवाज आज भी साहित्य में एक नया श्रेष्ठ मार्ग प्रदान कर रही है । इस साहित्य मार्ग पर नए भारत को चलकर दुनियां में अपना नाम शीर्ष पर दर्ज करना होगा। अन्न नहीं है ,फीस नहीं है, पुस्तक है ना सहायक है हाय, जी में आता है पढ़-लिख लें, पर इसका है नहीं उपाय । कोई हमें पढ़ाओ भाई , हुए हमारे व्याकुल प्राण , हा!हा! यों  रोते फिरते हैं भारत के भावी विद्वान। युगपुरुष माखनलाल चतुर्वेदी स्वतंत्रता संग्राम के हरावल दस्ते के नायक,अद्भुत वक्ता,निष्कलुष राजनेता,कालजयी कवि, हिन्दी के ऐसे विरल योद्धा पत्रकार-संपादक और ऐसे साहित्यकार जो कर्म से योद्धा और हृदय से कवि रहे हैं। माखनलाल चतुर्वेदी एक ओर मातृभूमि की सेवा भावना से अभिभूत थे तो दूसरी ओर हिंदी भाषा के स्वरूप निर्धारण के लिए चिंतित, क्रांति में समिधा बनकर निरंतर अपने को होम करके, पीढ़ियों पर छाप ड...