राष्ट्र, मनुष्य और संस्कृति की रीढ़, राष्ट्रीयता : दादा शिक्षा, किसान, कलम पत्रकारिता की आवाज, रोजगार, आज राजनीति, कॉर्पोरेट संस्थाओं के घेरे में पिस रही है ।इस पिसते हुए युग में दादा माखन लाल जी की गुलामी से आजादी दिलाने वाली कलम की आवाज आज भी साहित्य में एक नया श्रेष्ठ मार्ग प्रदान कर रही है । इस साहित्य मार्ग पर नए भारत को चलकर दुनियां में अपना नाम शीर्ष पर दर्ज करना होगा। अन्न नहीं है ,फीस नहीं है, पुस्तक है ना सहायक है हाय, जी में आता है पढ़-लिख लें, पर इसका है नहीं उपाय । कोई हमें पढ़ाओ भाई , हुए हमारे व्याकुल प्राण , हा!हा! यों रोते फिरते हैं भारत के भावी विद्वान। युगपुरुष माखनलाल चतुर्वेदी स्वतंत्रता संग्राम के हरावल दस्ते के नायक,अद्भुत वक्ता,निष्कलुष राजनेता,कालजयी कवि, हिन्दी के ऐसे विरल योद्धा पत्रकार-संपादक और ऐसे साहित्यकार जो कर्म से योद्धा और हृदय से कवि रहे हैं। माखनलाल चतुर्वेदी एक ओर मातृभूमि की सेवा भावना से अभिभूत थे तो दूसरी ओर हिंदी भाषा के स्वरूप निर्धारण के लिए चिंतित, क्रांति में समिधा बनकर निरंतर अपने को होम करके, पीढ़ियों पर छाप ड...